श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-२ (भाग-३६)

काकासाहब दीक्षित के आग्रह करने पर हेमाडपंत ने शिरडी जाने का निश्‍चय तो किया था, परन्तु अपने मित्र के जीवन में हुई घटना के कारण ‘आख़िर गुरु की आवश्यकता ही क्या है’ यह प्रश्‍न मन में उठते ही उन्होंने शिरड़ी जाने का विचार रद कर दिया। परन्तु साईबाबा की इच्छा थी कि वे हेमाडपंत को शिरडी में ले ही आयेंगे। बाबा की लीला अपरंपार है और उनकी इच्छा को कोई भी रोक नहीं सकता हैं। साई जो करना चाहते हैं, वह तो बाबा अचिंत्यलीला कर दिखाते ही हैं। यह सब करने में उनका अपना यत्किंचित् भी स्वार्थ न होकर भक्त के प्रेमवश ही वे परिश्रम करते ही रहते हैं। हेमाडपंत ने शिरडी जाने की योजना रद कर दी थी, फिर भी बाबा उन्हें शिरड़ी में खींचकर ले ही आये। बाबा की इसी लीला का वर्णन हेमाडपंत यहाँ पर कर रहे हैं।

हेमाडपंत के शिरडी जाने का विचार बदलते ही ऐसी घटना घटी कि नानासाहब चांदोरकर से अचानक उनकी मुलाकात हो गई। हुआ यूँ कि नानासाहब चांदोरकर जो उस समय प्रांताधिकारी थे। वे थाना से वसई के लिए निकले थे। चांदोरकर थाना में रहते थे और इसीलिए वसई जाने के लिए वे थाना से दादर आ गये और वहाँ से गाड़ी बदलकर वे वसई जाने वाले थे। परन्तु वसई की गाड़ी के लिए एक घंटे का समय था। फिर यह एक घंटे का समय किसी अच्छे कार्य में लगाने हेतु उनके मन में विचार चल ही रहा था कि बांदरा की एक गाड़ी आ गई और वे उसी में बैठ गए, बांदरा पहुँचते ही उन्होंने हेमाडपंत को संदेशा भेजा।

साईबाबा की इच्छाचांदोरकर के आने का पता चलते ही हेमाडपंत प्रसन्नतापूर्वक तुरन्त ही उन से जा मिले स्वाभाविक है कि उनसे मिलते ही उन दोनों के बीच शिरडी के संदर्भ में चर्चा हुई। चांदोरकर ने हेमाडपंत को साईमहिमा, साईकथाएँ बताईं। अब तक तुम शिरडी कैसे नहीं गए? शिरडी जाने के प्रति आलस क्यों कर रहे हो? शिरडी जाने से कतरा क्यों रहे हो? अब तक तुम्हारे मन में शिरडी जाने का निश्‍चय क्यों नहीं हो पा रहा है? नानासाहब चांदोरकर के मन में उनके प्रति रहनेवाली आत्मीयता को देखकर हेमाडपंत का दिल भर आया। उस समय उन्होंने नानासाहब को अपने मित्र के जीवन में घटित हुई उस घटना के बारे में बताया और खेद प्रकट किया।

वह सुनकर नानासाहब ने हेमाडपंत के मन में उठनेवाले प्रश्‍न के संदर्भ में अपना मन्तव्य प्रकट किया और उनसे निवेदन किया कि चाहे जो भी हो, आप केवल एक बार स्वयं जाकर बाबा के दर्शन कीजिए। इसके पश्‍चात् आपके मन में उठने वाली सारी शंका-कुशंकाओं का शमन अपने आप ही हो जायेगा। आप स्वयं प्रत्यक्ष इस बात का अनुभव कर लीजिए। नानासाहब की इस तड़प को देखकर, उनका शिरडी जाने का आग्रह देखकर हेमाडपंत को अपार आनंद हुआ। नानासाहब ने हेमाडपंत से ‘तत्काल ही शिरडी जाने की तैयारी करता हूँ’ ऐसा वचन लेकर वहाँ से प्रस्थान किया। हेमाडपंत भी अपने घर लौट आये और सारी तैयारी कर उसी दिन शाम के समय शिरडी के लिए रवाना हो गए।

नानासाहेब को बांदरा जाने की स्फूर्ति देकर, उनकी हेमाडपंत के साथ मुलाकात करवाकर, हेमाडपंत के मन में उठनेवाले तर्क-कुतर्क को दूर करवाकर उनसे शिरडी जाने का वादा लेकर, साथ ही उन्हीं के मुख से ‘तत्काल ही शिरडी के लिए निकलता हूँ’ ऐसा वचन नाना के द्वारा लिया जाना और उसी के अनुसार हेमाडपंत का शिरडी के लिए प्रस्थान करना ये सारी घटनाएँ क्या साई की ही लीला नहीं थीं?

हमें यहाँ पर चांदोरकर से एक गुण सीखना चाहिए। दादर स्टेशन पर पहुँचने पर वसई की गाड़ी आने में एक घंटे की देर थी। इस एक घंटे के समय को किसी अच्छे कार्य में व्यतीत करना चाहिए, यह इच्छा नानासाहब के मन में उत्पन्न होना, यह एक आदर्श भक्त का, एक सच्चे श्रद्धावान का विशेष गुण है। यहाँ पर ‘समय व्यर्थ न गवाँकर साईनाथ की भक्ति हेतु किसी सत्कार्य में लगाना चाहिए’ यह नानासाहब की सहजस्फूर्ति हमें यही दर्शाती है कि नानासाहब का मन साई-प्रेम से ओतप्रोत था। नानासाहब को साई के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था। अपना कार्यालयीन काम-काज छोड़ वे साईमहिमा का ही गुणगान करते थे ऐसा भी नहीं था। बल्कि कार्यालय के समय में सरकारी काम-काज करके जो समय उनके पास बचता था, उस समय का सदुपयोग साई के गुणसंकीर्तन के लिए करते थे।

अपने काम-काज की ज़िम्मेदारी भली-भाँति संभालते हुए जो समय हमें मिलता है, उस समय को हमें इस भगवान की भक्ति में व्यतीत करना चाहिए। इतना तो हम कर ही सकते हैं। नानासाहब भी अपने काम से वसई जा रहे थे। परन्तु उनके पास इस बीच का एक घंटे का जो समय उन्हें मिला था, उसे यूँ ही न गँवाते हुए उन्होंने हेमाडपंत से मुलाकात करके उन्हें भी शिरडी जाने के लिए उन्होंने प्रेरित किया। नानासाहब ने अपने इस खाली समय का कितना अच्छा उपयोग किया! स्वयं साईनाथ का गुणसंकीर्तन कर परमेश्‍वरी उर्जा के स्पंदन प्राप्त करते हुए स्वयं का विकास तो साध्य किया ही, साथ ही हेमाडपंत को साईभक्ति की दिशा दिखलाकर उनके जीवनविकास में सहायता कर अधिक परमेश्‍वरी उर्जा प्राप्त की।

हम जब अपनी क्षमता के अनुसार सद्गुरु साईनाथ की भक्ति की दिशा दूसरों को दिखाने का प्रयास करते हैं, तब दूसरे लोगों के जीवनविकास में सहकार्य करने से भगवान प्रसन्न होकर हमारे खाते में पुण्य की पूँजी जमा कर देते हैं। जो भी कोई हमसे मिलता है हम उसे अपने इस साईनाथ की लीला के बारे में बतायेंगे और उसे भी साई के भक्तिमार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे। स्वाभाविक है कि यह कार्य दोनों की ही सहुलियत के अनुसार ही होगा। ऐसा नहीं होना चाहिए कि सामनेवाला अपने कार्यालयीन काम में व्यस्त है अथवा अन्य किसी महत्त्वपूर्ण कार्य में व्यस्त है। ऐसे में उसका समय लेना सर्वथा अनुचित ही होगा। परन्तु मुझे जब भी समय मिलेगा अथवा अवसर मिलेगा, तब मैं उसका लाभ अवश्य उठाऊँगा।

‘समय’ यह मानवीय जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। एक बार हाथ से निकल जाने के बाद समय  लौटकर वापस नहीं आता है। ‘समय का अपव्यय करना यह एक बहुत बड़ा प्रज्ञापराध है’ यह ग्रंथराज श्रीमद्पुरुषार्थ का कहना है। चांदोरकर ने यह नहीं सोचा कि चलो, घंटे भर के लिये कहीं चलकर गपशप करूँ  अथवा आराम ही कर लूँ। उन्होंने ऐसा न करते हुए, उस समय का सदुपयोग एक अच्छे कार्य के लिए किया। उन्होंने अपने साथ-साथ हेमाडपंत का भी जीवनविकास किया। हमें भी इसी तरह जब भी खाली समय मिलता है, तब उसे इसी तरह सत्-कार्य में लगाना चाहिए। निरर्थक बातों में समय व्यतीत करने की अपेक्षा, टी.व्ही. आदि में समय बिताने की अपेक्षा उसे भक्तिकार्य में, अध्ययन-अध्यापन में, सेवाकार्य में लगाना चाहिए। हमें अपना खाली समय दूसरों के अच्छे कार्य में लगाना चाहिए।

हम अकसर अपने ही बारे में सोचते हैं, अपने ही दायरे में सीमित रहते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। जब हम दूसरों की मुसीबत में उनका साथ देते हैं, अपना समय देते हैं, तब परमात्मा पुण्य की राशी हमारे खाते में जमा करते रहते हैं। और जब जीवन में मुझे किसी के मदद की ज़रूरत पड़ती है तब वह परमात्मा मुझ पर कभी भी असहाय स्थिति नहीं आने देते। जो लोग समय का भली-भाँति उपयोग यानी सदुपयोग करते हैं, उन पर नाउम्मीदी की, असहाय होने की नौबत कभी नहीं आती। वहीं, जो लोग स्वयं दूसरों का समय गँवाते हैं, ऐसे लोगों को ज़रूरत के समय पर कोई सहायता नहीं मिलती है। दूसरों को दिए गए समय का ध्यान रखना चाहिए, व़क्त का पाबंद रहना चाहिए। साथ ही अपना भी और दूसरों का भी समय बर्बाद नहीं होने देना चाहिए। और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब भी समय मिले तब साईनाथ का गुणसंकीर्तन करते हुए अपने सद्गुरु साईनाथ की महिमा सबको बताते रहना चाहिए।

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