श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३६)

साईनाथएक दिन सुबह के समय मुखप्रक्षालन एवं दंतधावन करने के बाद साईनाथ गेहूँ महीन पीसने बैठ गए । हाथ में एक सूप लेकर बाबा गेहूँ की बोरी पास पहुँच गये और आधे सेर के नापक (अनाज को नापने का साधन) से गेहूँ निकाल कर सूप में भर लिये । दूसरी खाली गोनी सामने फैलाकर उसपर जाँता रखकर खूंटा ठोककर मज़बूत किया ताकि पीसते समय कहीं ढीला न पड जाये। फिर आस्तीन (सिले कपडे का बाँह पर का भाग) ऊपर करके कफनी को ठीक से समेट लिया और जगह बनाकर जाँते के पास पैर पसारकर साईनाथजी बैठ गए ।

महज़ इन चार पंक्तियों में हेमाडपंत से साईनाथजी ने भावार्थ के रहस्य का कितना अप्रतिम उद्घाटन करवाया है ना! साईनाथ के आचरण का हम जितना अध्ययन करते जाते हैं, उतना ही अधिक भावार्थ का रहस्य उजागर होता रहता है । अब तक हमने इन मुद्दों का अध्ययन किया- बाबा ने कार्य के लिए आवश्यक रहनेवाली सभी प्रकार की पूर्व तैयारी कितनी सूक्ष्मता के साथ कर रखी थी । मुख्य सामग्री, उपसामग्री एवं साधन इन सब की तैयारी। स्वयं इन सभी बातों की पूरी तैयारी करके ही बाबा कार्य का आरंभ करते हैं ।

पीसाई की मुख्य सामग्री रहने वाला गेहूँ जिस तरह तैयार था, उसी तरह गेहूँ नापकर लेने के लिए नापक, बोरी, पच्चड (पच्चर), खूंटा ठोठकर मज़बूत करने के लिए पत्थर भी तैयार रखा था । जाते के दोनों तह एवं खूंटा जिस प्रकार व्यवस्थित रखा था, उसी प्रकार पहले गेहूँ भरने के लिए और बाद में आटा रखने के लिए सूप भी तैयार था । हर एक कार्य शुरू करने से पूर्व इस पूर्व तैयारी की सिद्धता हमें करनी ही चाहिए । उचित आचरण के इस चौथे मुद्दे का अध्ययन हमने किया ।

अब हम जिस पाँचवे मुद्दे का अध्ययन करनेवाले हैं, वह है- कार्य का अध्ययन, कार्य पूर्ण करने के लिए स्वयं की भूमिका का पूर्ण अध्ययन एवं सिद्धता । पीसने के लिए पीसाई की क्रिया करनेवाला जो व्यक्ति है यानी जो ‘कर्ता’ है, उस स्वयं की भूमिका का अध्ययन करके पूरी सिद्धता कर लेनी चाहिए ।

‘पीसाई का कार्य करने के लिए मैं पूर्णत: सक्षम हूँ ना’, इस बात पर सबसे पहले विचार करना चाहिए । कोई भी कार्य आरंभ करने से पहले मैं उसे कर सकता हूँ क्या? उसे पूर्ण करने की ताकत मुझमें है क्या? इस बात का विचार करना चाहिए । मैं कोई सेवा करने का निश्चय करता हूँ अथवा किसी एक व्यवहार में, व्यापार में नया काम आरंभ करता हूँ , तो सबसे पहले अपनी ताकत का अंदाजा मुझे होना चाहिए ।
अपनी क्षमता का सही आकलन होने के लिए, जो कार्य मुझे करना है, उसका अध्ययन पूरी गहराई तक करना चाहिए, उस काम में रहनेवालीं छोटी-बडी सभी बातों का एवं कार्य में बाधा डाल सकने वालीं सभी बातों को पहले ही समझ लेना चाहिए। बाबा ने पीसने का कार्य आरंभ करते समय स्वयं की पूरी सिद्धता करके ही पीसना आरंभ किया ।

परंतु हम क्या करते है? हमें यदि कोई बात अच्छी लगी या कोई काम अच्छा लगा, उसे करने की इच्छा हुई, तो बस उसे बिना सोचे-समझे करना शुरू कर देते हैं । मु़झे किसी दिन कोई गाना सुनकर गाने की इच्छा हो गयी और मैं यदि तुरंत ही किसी महफिल में जाकर गाना गाने बैठ जाता हूँ तो क्या यह ठीक होगा?

मेरे भगवान के सामने, मेरे साई के सामने मुझे जैसे आता है, वैसे अपने साई का भजन यदि मैं गाता हूँ, तो इस में कोई हर्ज नहीं है, उलटे वहाँ पर ‘मेरी आवाज़ अच्छी है या नहीं, मुझे गाना आता है या नहीं’ आदि बातों का विचार न करते हुए प्रेमपूर्वक अपने साई का भजन गाना चाहिए । परन्तु जब दूसरे लोगों के सामने कोई गीत प्रस्तुत करना है, तो उसके लिए उस गाने का अच्छी तरह से कार्य का अध्ययन करके, गायक की भूमिका में स्वयं को सिद्ध करना चाहिए । हर कार्य में सबसे पहले यह देखना अत्यन्त आवश्यक है कि मेरी भूमिका क्या है और फिर उसके अनुसार तैयारी करके ही उस कार्य के लिए आगे बढ़ना चाहिए ।

बाबा पीसने बैठते समय भी किस तरह अचूक ‘पोझिशन’ साधकर बैठते हैं, इस बात का हेमाडपंत बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णन करते हैं । जिस तरह हवाई जहाज उड़ान भरने से पहले दौड़नेवाले स्थान के एक छोर पर खडा रहता है और फिर वहाँ से तेज़ रफ्तार के साथ दौड़ते दौड़ते एक विशिष्ट पल में ‘टेक-ऑफ’ करता है, ठीक उसी प्रकार हर कार्य से पहले यह ‘पोझिशन’ लेना जरूरी है ।

बाबा ने पीसाई का कार्य आरंभ करते समय क्या किया, इस बात की जानकारी हेमाडपंत के द्वारा लिखी गयीं पंक्तियों के माध्यम से करने पर ऊपर दिया गया ‘मर्म’ हमारे लिए बिलकुल स्पष्ट हो जायेगा । पीसाई की तैयारी कर लेने पर बाबा आस्तीनों को ऊपर सरका लेते हैं, कफनी को ठीक से समेटकर सीधा कर लेते हैं, फिर जाँते के पास बैठने के लिए जगह  बनाकर अपनी ‘पोझिशन’ साधते हैं, साथ ही कार्य में बाधा उत्पन्न कर सकनेवाली बातों को बाबा पहले से ही आडे आने नहीं देते ।

यही छठा मुद्दा है, जिसे समझ लेना ज़रूरी है । कार्य में विरोध उत्पन्न करनेवालीं या बाधा डालनेवालीं सभी बातों को हमें पहले ही दूर कर देना चाहिए । उचित प्रकार से तैयारी कर लेने से कार्य और भी अधिक आसान एवं निष्कंटक बन जाता है । बाबा के आचरण से हमें यही छठी बात सीखनी चाहिए कि कार्य के लिए बाधक साबित होनेवालीं सभी बातों को दूर रखकर, पहले ही आवश्यक तैयारी कर लेनी चाहिए ।

पीसाई के कार्य में बाधा उत्पन्न करनेवाली बातें थीं-
१)    ढीला होनेवाला खूंटा ।
२)    आस्तीन को ऊपर नहीं किया तो हाथों की गति में बाधा उत्पन्न हो सकती है ।
३)    कफनी का फैलाव

बाबा ने पीसाई का काम शुरू करने से पहले ही ‘इन बातों के कारण कार्य में बाधा उत्पन्न न हो’, इसका ध्यान रखा है ।
१)    खूंटा ठोककर मज़बूत करना ।
२)    आस्तीन ऊपर खींचना ।
३)    कफनी के फैलाव को समेट कर रखना ।

पीसाई की क्रिया का मुख्य आधार खूंटा है और वही यदि ढिला हो गया, तो फिर ठीक से पीसाई का काम नहीं हो सकेगा । इसी लिए बाबा ने  पहले ही खूंटा ठोककर मज़बूत कर लिया । और फिर हम देखते हैं कि आगे चलकर उन चारों स्त्रियों के द्वारा गेहूँ पीसने का कार्य पूरा हो जाने तक एक बार भी वह ढीला नहीं होता। हमें भी अपने कार्य के मुख्य ‘आधार’ रहनेवाले खूंटे को इसी प्रकार से ठोककर मज़बूत करना चाहिए ।

आस्तीन को ऊपर की ओर खींच लेने से पीसने की क्रिया में वस्त्र आडे भी नहीं आयेगा और साथ ही हाथों की कुहनी तक वह फिसलेगा भी नहीं, इस बात का ध्यान भी बाबा रखते ही हैं । संकल्पित कार्य के रास्ते में किसी भी प्रकार की अड़चन उत्पन्न ही न हों, इस बात का ध्यान बाबा रखते हैं । हमें भी अपने कार्य में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न ही न हो, कार्य की रफ़्तार कम न हो इसका ध्यान रखते हुए बाधक बातों को यदि वे उत्पन्न होती भी हैं, तो तुरंत ही दूर कर देना चाहिए ।

कफनी के फैलाव को ठीक से समेटे बगैर अच्छी तरह से बैठा नहीं जा सकता है और साथ ही पीसाई का कार्य भी ठीक से नहीं किया जा सकता है । इस बाधा को दूर करने के लिए बाबा अपनी कफनी के विस्तार को समेटकर जाँते के पास ही स्थान ग्रहण करते हैं । हमें भी कार्य आरंभ करने से पहले जो हमारे अन्य ‘विस्तार’ होते हैं, उन्हें ठीक से मर्याद में रखकर बैठना चाहिए ताकि काम में बाधा या रुकावट उत्पन्न ही न हो । बाधा उत्पन्न करनेवालीं बातों को पहले ही दूर हटा देना चाहिए ।

व्यवहार हो अथवा परमार्थ हो, कार्य-विरोधी एवं कार्य-बाधक बातों की तैयारी पहले से ही कर लेने से कार्य सफलतापूर्वक संपूर्ण होता है, निर्विघ्न रूप से पूरा होता है । निश्चय का खूंटा मज़बूत कर लेना, अंहकाररूपी बाधा को दूर कर देना और मन में रहनेवाले षडरिपुओं के फैलाव को, कल्पनाओं के जंजाल को पहले ही एक तरफ कर देना आदि बातें हमें बाबा के इस आचरण से सीखनी चाहिए ।

2 Responses to "श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३६)"

  1. Seema Karkhanis   July 17, 2016 at 4:03 am

    Khup chhan ma hiti milali

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  2. Seema Karkhanis   July 17, 2016 at 4:08 am

    Bahut sahi dhang se samzaya aapne iske aage vala adhyay kab aane vala hiii

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