रशिया की ‘एस-400’ जल्द ही भारत के बेड़े में दाखिल होगी

मॉस्को – रशिया भारत को एस-400 इस हवाई सुरक्षा यंत्रणा की आपूर्ति शुरू कर रहा है। जल्द ही यह यंत्रणा भारत के बड़े में दाखिल होगी। सन २०१८ के अक्तूबर महीने में भारत और रशिया के बीच ‘एस-400 ट्रायम्फ’ की खरीद का लगभग ५.४ अरब डॉलर का समझौता संपन्न हुआ था। अमरीका के प्रतिबंधों की परवाह न करते हुए, भारत ने रशिया के साथ यह समझौता संपन्न करने की हिम्मत दिखाई थी। यह व्यवहार करनेवाले भारत पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा बायडेन प्रशासन ने अभी तक नहीं की है। इस पृष्ठभूमि पर, भारत और रशिया के बीच संपन्न हो रहा एस-400 का समझौता यही दिखा रहा है कि दोनों देशों के इस सामरिक सहयोग का आधार मज़बूत है।

‘एस-400’अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया इन देशों के साथ ही अब भारत रशिया के साथ भी टू प्लस टू चर्चा करने वाला है। टू प्लस टू चर्चा में दोनों देशों के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री सहभागी होते हैं। आज के दौर में भारत और रशिया के बीच होने जा रही यह चर्चा अहम साबित होती है। उसी के साथ, दिसंबर महीने में रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमिर पुतिन भारत के दौरे पर आनेवाले हैं। रशिया ने राष्ट्राध्यक्ष पुतिन के इस दौरे की घोषणा की। एक तरफ अमरीका और मित्र देशों के मोरचे के विरोध में रशिया चीन को पूरी तरह सहायता कर रहा होकर, अमरीका की नीतियों का कड़ा विरोध कर रहा है। लेकिन चीन भारत की सुरक्षा को चुनौती दे रहा होने के बावजूद भी, रशिया ने यह संदेश दिया है कि रशिया-चीन मित्रता का भारत-रशिया संबंधों पर असर नहीं होने देंगे। एस-400 की भारत को बिक्री करके रशिया ने चीन को नाराज़ किया है। भारत-रशिया के इस व्यवहार से चीन खुश नहीं है। ऐसा होने के बावजूद भी, रशिया भारत के साथ संबंधों का स्वतंत्र रूप में विचार करता है, यह बताकर रशियन राजनीतिक अधिकारियों ने ऐसे संकेत दिए थे कि रशिया भारत के संदर्भ में चीन का दबाव नहीं स्वीकारेगा। लद्दाख की एलएसी पर भारत और चीन के लष्करों में संघर्ष होने के बाद भी रशिया ने एस-400 समेत भारत को आवश्यक शस्त्र सामग्री की सप्लाई करने की तैयारी दर्शाई थी।

ऐसा होने के बावजूद भी रशिया ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत, अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के क्वाड सहयोग का विरोध किया था। रशिया के विदेश मंत्री सर्जेई लॅव्हरोव्ह ने क्वाड में भारत के सहभाग की आलोचना करके भारत की नाराज़गी मोल ली थी। कुछ समय बाद विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह ने हालांकि उस पर दिलगिरी जाहिर की, फिर भी क्वाड में भारत का सहभाग और भारत का अमेरिका के साथ सामरिक सहयोग इस कारण रसिया बेचैन होने की बात बार-बार स्पष्ट हुई थी। लेकिन भारत ने इस बात का यकीन समय-समय पर दिया था कि अमरीका के साथ अपने सहयोग का असर, रशिया के साथ के मित्रतापूर्ण संबंधों पर नहीं होने देंगे ।

ऐसे कुछ मुद्दों पर हालाँकि भारत और रशिया के बीच मतभेद हैं, फिर भी दोनों देशों के आपसी संबंध, सहयोग और विश्वास इसकी तुलना अन्य किसी भी बात से नहीं की जा सकती, ऐसा दोनों देशों के नेता बार-बार बता रहे हैं। अफगानिस्तान से अमरीका ने सेना वापसी करने के बाद, अफगानिस्तान में तालिबान का हुआ उदय यह भारत और रशिया की चिंता का विषय बना है। हाल ही में भारत ने आयोजित की अफगानिस्तान विषयक बैठक में इसका प्रतिबिंब दिखाई दिया था। रशिया और ईरान समेत, रशिया का प्रभाव होनेवाले मध्य एशियाई देश भी इस बैठक में सहभागी हुए थे और उसी के कारण यह बैठक सफल हुई ऐसा बताया जा रहा था। खासकर भारत को इस बैठक से मिली सफलता पर पाकिस्तान में चिंता ज़ाहिर की जा रही है। रशिया और ईरान की सहायता से क्या भारत फिर से अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल होगा? ऐसे सवाल पाकिस्तान के पत्रकार पूछने लगे हैं।

इस पृष्ठभूमि पर, भारत-रशिया सहयोग को बहुत बड़ा सामरिक महत्व प्राप्त हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसी परिस्थिति में, एस-400 के बारे में आई यह ख़बर, भारत और रशिया के बीच का मित्रतापूर्ण सहयोग अधोरेखांकित कर रही है।

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