समय की करवट (भाग ३५) – ‘बर्लिन वॉल’ के निर्माण की शुरुआत

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।
इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।

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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’

हेन्री किसिंजर

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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

सोव्हिएत रशियापरस्त सरकार रहनेवाले पूर्व जर्मनी में अपनायी गयी कम्युनिस्ट राज्यपद्धति से ऊबकर पूर्व जर्मनी के अधिक से अधिक नागरिकों ने देशत्याग कर पश्चिम जर्मनी में पलायन करने की शुरुआत की थी। सन १९५१ से १९५४ के बीच उनकी संख्या इतनी बढ़ गयी कि वहाँ की सरकार ने घोषित की हुई पहली पंचवार्षिक योजना के लक्ष्यों को साध्य करने के लिए आवश्यक होनेवाला माहिर तंत्रज्ञों का मनुष्यबल ही कम पड़ने लगा। सन १९५३ के पहले छः महीनों में पश्चिम जर्मनी भाग जानेवाले नागरिकों की संख्या दो लाख तक पहुँच चुकी थी। मूलतः एक ही देश के दो हिस्सें होनेवाले पूर्व एवं पश्चिम जर्मनी के बीच निश्चित सीमारेखा की कोई दीवार या बाड़ा न होने के कारण या फिर अलग व्हिसा आदि जैसीं कोई राजनयिक पाबंदियाँ न रहने के कारण यह मुमक़िन हो रहा था।

रशियन गुप्तचरयंत्रणाओं की जब यह समझ में आ गया, तब जाकर कहीं सरकार की नींद खुली और इस समस्या पर सोचविचार होना शुरू हुआ। सबसे पहले सोव्हिएत्स ने पूर्व जर्मन सरकार को, पूर्व तथा पश्‍चिम जर्मनी की सीमारेखा पर सैनिकी चौ़क़ियों का निर्माण करने के लिए तथा बाड़े का निर्माण करने के लिए कहा। साथ ही, बर्लिन के ज़रिये पूर्व जर्मनी में आनेवाले लोगों को प्रवेश-लायसन्स जारी करने का कदम उठाने के लिए कहा। फिर पूर्व जर्मन सरकार ने पश्चिम जर्मनी में प्रवेश करने की सीमारेखा तार के बाड़े का निर्माण करके बन्द कर दी। लेकिन बर्लिन यह मूलतः एक शहर होने के कारण और उसका विभाजन होने के बाद भी उसका नियंत्रण चार राष्ट्रों के हाथों में मिलकर होने के कारण बर्लिन शहर में इस सीमारेखा को एकदम से बन्द नहीं किया गया था; लेकिन उस शहर के पूर्व तथा पश्चिम भाग की यातायात पर पाबंदियाँ लगायीं गयीं थीं।

सन १९५५ में सोव्हिएत रशिया ने पूर्व जर्मन सरकार को – ‘पश्‍चिमी पूँजीवाद का पूर्व जर्मनी के समाजवादी वातावरण पर बुरा असर न पड़ें इसलिए’ पूर्व-पश्चिम जर्मनी के बीच की यातायात को बन्द करने के लिए कहा। उसके अनुसार सन १९५६-५७ तक पूर्व जर्मन सरकार ने पासपोर्ट के नये स़ख्त क़ानून जारी कर लोगों का देश से बाहर जाना कम किया। लेकिन फिर भी बर्लिन में से भाग जानेवालों की संख्या कम नहीं हुई। भाग जाते समय यदि पकड़े गये, तो बहुत स़ख्त जुरमाना तथा कारावास की सज़ाएँ थीं। मग़र फिर भी इस शासनपद्धति से ऊब चुके लोग अपनी जान पर खेलकर कुछ भी करने के लिए तैयार थे। मुख्य रूप में, उनमें युवाओं की संख्या, उसमें भी इंजिनियर, तंत्रज्ञ, डॉक्टर, वकील, अध्यापक ऐसे कुशल नागरिकों की संख्या अधिक थी। सन १९६१ तक तक़रीबन ३५ लाख यानी पूर्व जर्मनी की तत्कालीन लोकसंख्या के २० प्रतिशत इतने नागरिक पश्चिम जर्मनी में स्थलांतरित हुए थे। इस मनुष्यबलहानि के कारण पूर्व जर्मनी का हुआ – शैक्षणिक निवेश आदि बातों पर का ठेंठ नुकसान तब तक लगभग ७ से ९ अरब (बिलियन) डॉलर्स तक पहुँच चुका था।

इस बात से पूर्व जर्मन सरकार के पैरों तले की ज़मीन ही मानो खिसक गयी थी। उन्होंने सोव्हिएत नेतृत्व को हालाँकि यह जताया था कि नागरिकों का इस तरह देश छोड़कर चला जाना यह आर्थिक कारणों के लिए है; मग़र फिर भी सोव्हिएत द्वारा किये गये स्वतंत्र सर्वेक्षण से उन्हें इस बात का पता चल गया था कि उसके पीछे ‘सोव्हिएत-स्टाईल शासनपद्धति पसंद न होना’ यह राजनीतिक कारण है।

समस्या ज्ञात थी – राजनीतिक शासनव्यवस्था मान्य न होने के कारण लोग देशांतर कर रहे हैं।

समस्या का माध्यम यानी देशांतर का मार्ग ज्ञात था – पूर्व बर्लिन में से पश्चिम बर्लिन में।

इसपर अब उनकी दृष्टि से एक ही उपाय बचा था – बर्लिन का बँटवारा करनेवाला बाड़ या दीवार का निर्माण करना। लेकिन अभी भी इस बात पर पश्‍चिमी प्रतिक्रिया क्या होगी, इसका अँदाज़ा न होने के कारण ठेंठ कदम उठाये नहीं जा रहे थे।

आख़िरकार १ अगस्त १९६१ को सोव्हिएत्स ने फ़ैसला कर दिया और तब तक स्टॅलिन की मृत्यु के पश्‍चात् सोव्हिएत रशिया की सत्ता हाथ में आये निकिता ख्रुश्‍चेव्ह ने बर्लिन के बीचोंबीच दीवार खड़ी करने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया।

रातोंरात – १३ अगस्त की भोर से जर्मन पुलीस तथा सेना द्वारा बाड़ का निर्माण करने की शुरुआत भी हो गयी।

१२ अगस्त की रात को यह निर्णय पूर्व जर्मन सरकार के नेताओं को सूचित कर दिया गया।

रातोंरात – १३ अगस्त की भोर से जर्मन पुलीस तथा सेना द्वारा बाड़ का निर्माण करने की शुरुआत भी हो गयी। बर्लिन शहर में लगभग २७ मील के बाड़ का निर्माण किया गया। पश्चिम बर्लिन में जानेवाली सड़कों का बाड़ से सटा हिस्सा ही उखाड़ दिया गया। यह कदम उठाते समय, कहीं पश्‍चिम जर्मनी पूर्व जर्मनी पर अतिक्रमण का इलज़ाम न लगा दें, इसलिए पूर्व बर्लिन की सीमा से थोड़ा अंदर ही इस बाड़े के निर्माण की शुरुआत की गयी।

१७ अगस्त से काँक्रीट ब्लॉक्स डालने के शुरुआत होकर, बाक़ायदा दीवार के निर्माण की शुरुआत हो गयी।

‘बर्लिन वॉल’ का निर्माण शुरू हो गया था!

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