रॉबर्ट गोडार्ड (१८८२-१९४५)

‘ऐसा एक साधन बनाना चाहिए कि जिस के जरिए मंगल ग्रह पर भी पहुंचना संभव होगा’ – (रॉबर्ट, उम्र १७ साल)

‘कल के सपने आज की उम्मीद और कल का वास्तव होते हैं; और जब वह बात भौतिक नियमों के विरुद्ध नहीं होती तब वह वास्तविक रूप ले ही लेती है – (रॉबर्ट, उम्र २२ साल)

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उम्र के बीसवें साल में ही अंतरिक्ष में जाने के केवल सपने ही नहीं देखे बल्कि दृढ संकल्प कर उस राह पर अग्रसर होनेवाले इस युवक का नाम था रॉबर्ट हचिंग्ज गोडार्ड।

रॉबर्ट गोडार्ड का जन्म अमेरिका के मैसैच्युसेट्स स्थित वुर्स्टर गांव में हुआ। बचपन से गणित उनका पसंदीदा विषय रहा। बोस्टन में प्राथमिक शिक्षा पाने के बाद उन्होंने वुर्स्टर कें पॉलिटेक्निक में दाखला लेने का निर्णय लिया। उन्हीं दिनों उन के हाथों में एच.जी.वेल्स द्वारा लिखित किताब ‘द वॉर ऑफ द वर्ल्डस’ पडी। मंगल की प्रगत जीवनसृष्टि धरती पर आक्रमण करती है इस कहानी वाले किताब से रॉबर्ट प्रभावित हो गए और उसी वक्त उन्होंने ठान लिया कि वे रॉकेट का संशोधन करेंगे। वे निष्ठापूर्वक इस कार्य में जुट गए।

दुबला-पतला शरीर और चुपचाप रहनेवाले रोबर्ट ने अभियांत्रिकी डिग्री पाने के बाद क्लार्क युनिवर्सिटी में संशोधक के पद पर कार्य करने लगे। सन १९०८ के दौरान डॉक्टरेट का निबंध लिखते हुए ही रॉबर्ट ने रॉकेट का प्रयोग शुरु किया। प्रिस्टन में ही उनके ध्यान में आया कि थोडासा इंधन इस्तेमाल करके रॉकेट बहुत ऊपर भेजा जा सकते हैं। उत्साहित हुए रॉबर्ट अपने खर्च से प्रयोग करने लगे। इस दौरान ही उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री पाई।

अथक मेहनत करते हुए रॉबर्ट ने सन १९१४ में रॉकेट की रचना का पेटेन्ट भी कर लिया। सन १९१६ तक लगभग ८०० डॉलर खर्च करने के बाद रॉबर्ट को आर्थिक मुश्किल सताने लगी। इस संबंध में खोजनिबंध छपने के बाद स्मिथ्सोनियम नामक संस्था ने उन्हें पांच हजार डॉलर्स की आर्थिक सहायता की। इस सहायता के बल पर रॉबर्ट गोडार्ड ने आधुनिक रॉकेट विज्ञान का अध्ययन शुरु किया। सन १९२० में रॉबर्ट ने ‘अ मेथड ऑफ रीचिंग एक्स्ट्रीम अल्टीट्यूड्स’ नामक खोज पुस्तिका छपवाया। रॉकेट लॉन्च करने के लिए प्रबंध और उस के इंधनपूरती में निरंतरता रखकर धरती का गुरुत्वाकर्षण लांघकर कैसे जाया जाए इस बात की जानकारी इस पुस्तिका में थी।

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मानव निर्मित रॉकेट चांद तक पहुंच पाएगा रॉबर्ट के इस आश्‍वासन की वजह से अमेरिकी सरकार सतर्क हो गई। रॉबर्ट को दोनों तरह की प्रतिक्रियाओं का सामना करना पडा। अखबारों ने रोबर्ट को ‘मून मैन’ की उपाधी दी। पर कुछ लोगों ने यह कहकर उन की आलोचना भी की कि, ‘प्राध्यापक महोदय का चांद पर जानेवाले रॉकेट के संशोधन का मज़ाकी दावा।’

goddardrocket-Pg10सन १९२०-२२ के दौरान रॉबर्ट ने द्रवइंधन इस्तेमाल करके उडान सिढी के स्थिर टेस्ट किए। तरल ऑक्सिजन के साथ, द्रवप्रॉपेन, पेट्रोल, केरोसिन और अन्य इंधनों की सहायता से इंजिन सही तरह से कार्य करता है या नहीं, यह प्रयोग करके देखा। सन १९२३ तक उन्हें यह विश्‍वास हो गया कि रॉकेट उडाया जा सकता है। १६ मार्च १९२६ के दिन रॉबर्ट द्रव इंधनवाले रॉकेट की पहली टेस्ट मैसेच्युसेट्स स्थित आबर्न के मैदान में की। ९६ कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से १० फुट लंबे रॉकेट ६० मीटर तक ऊंचा उडा। इस प्रयोग से द्रवरूप इंधन वाला रॉकेट सफल उडान भर सकता है यह बात साबित हो गई।

इस सफलता से उत्साहित हुए रॉबर्ट ने सन १९३० में रॉसवेल, न्यू मेक्सिको में प्रति घंटा ५०० मैल की रफ्तारवाले रॉकेट की टेस्ट सफल कर दिखाई। दूसरे महायुद्ध के दौरान रॉबर्ट ने अमेरिकी नवदल के लिए संशोधन किया। निरंतर कार्य करनेवाले रॉबर्ट ने रॉकेट के संबंध में कुल २१४ पेटेन्टस हासिल करने का सम्मान प्राप्त किया। युद्धोत्तर समय में आकाश संशोधन की शुरुआत करनेवाली अमेरिका ने यह सभी पेटेन्ट्स खरीद लिए।

आज अमरिका सहित विश्‍व के लगभग २० से २५ देशों कें अंतरिक्ष-संशोधन कार्य रफ्तार से चला रहे हैं। मगर इसकी नींव डालने का श्रेय निश्‍चित रूप से रॉबर्ट गोडार्ड को ही दिया जाता है। उनके संशोधन पर गौर करनेवाली अमरिका ने सन १९५९ में ‘द गोडार्ड स्पेस फ्लाईट सेंटर’ की स्थापना की।

१० अगस्त १९४४ के दिन रॉबर्ट गोडार्ड का बाल्टीमोर में गले के कैंसर की वजह से निधन हो गया।

‘द न्यूयॉर्क टाईम्स’ ने रॉबर्ट गोडार्ड की खोज पर सन १९२० में गौर न करने पर खेद व्यक्त करनेवाली खबर सन १९६९ में छपवायी और इसके द्वारा अमरिका ने इस संशोधक को श्रद्धांजली अर्पण की।

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