श्‍वसनसंस्था – १७

हमारी नाक से लेकर फेफड़ों तक हवा का महामार्ग किस तरह खुला रखा जाता है, हम इसका अध्ययन कर रहे हैं। इस व्यवस्था का पहला भाग हमने पिछले लेख में देखा। आज हम इसके अगले भाग की जानकारी प्राप्त करेंगें।

श्‍वसनमार्ग की म्युकस और सिलिआ : नाक से लेकर अलविलोय तक जो श्‍वसनमार्ग है, उसमें म्युकस नामक चिपचिपा, गाढ़ा पदार्थ स्रवित होता है श्‍वसनमार्ग में जगह-जगह पर गॉबलेट पेशियाँ होती हैं। इन पेशियों (कोशिकाओं/सेल्स) एवं म्युकस स्रावी ग्रंथी में से यह स्राव स्रवित होता है। इसका एक परदा श्‍वसनमार्ग के अंदरुनी भाग में बन जाता है। हवा के विभिन्न कण इसमें अटक जाते हैं। ये कण अलविओल्स तक पहुँचते ही नहीं है। म्युकस एवं म्युकस में फँसे हुए कणों को निकालने में सिलिआ मदद करते हैं। श्‍वसनमार्ग की अंदरुनी पेशियों पर ये सूक्ष्म केशतंतु होते हैं। इन्हें सिलिआ कहते हैं। इनकी गतिविधियाँ निरंतर चलती रहती हैं। साधारणत: हर मिनट में बीस बार इनमें गति होती है। सिलिआ की गति की दिशा गले की ओर होती है। फेफड़ों से लेकर गर्दन तक के सिलिआ की गति ऊपर की ओर होती हैं। फलस्वरूप यहाँ पर उपस्थित म्युकस, गले की ओर धकेला जाता है। गले में जमा हुआ म्युकस, खांसी के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है या निगल लिया जाता है। एक सेमी. प्रति मिनट की गति से म्युकस गले की ओर धकेला जाता है। म्युकस ग्रंथी एवं गॉबलेट पेशी से लगातार म्युकस स्रवित होता रहता है। इसे ही हम कफ कहते हैं। यह प्रतिदिन बनता है और गले में जमा होता रहता है। इसी लिए खाँसकर इसे बाहर निकाल दिया जाता है? या फिर निगल लिया जाता है। हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि श्‍वसन के लिए यह कफ लाभदायी होता है।

खाँसना अथवा कफ रिफलेक्स : गले में जमा हुए कफ को हम खाँसी के द्वारा बाहर निकालते हैं। यहाँ पर हम कफ रिफलेक्स का उपयोग करते हैं।

हमारा श्‍वसनमार्ग स्पर्श (touch) की अनुभूति के प्रति ज्यादा ही संवेदनशील है। इसके अंदरुनी भाग को हुआ हलका-फुलका स्पर्श भी कफ रिफलेक्स शुरू करने के लिए पर्याप्त होता है। हवा के साथ यदि कोई बाह्य पदार्थ (foreign matter) श्‍वसनमार्ग में प्रवेश करता है तो फौरन हमें खाँसी आने लगती है। बाह्य पदार्थ यानी किसी भी पदार्थ के छोटे-बड़े कण हो सकते हैं, जैसे धुआँ, धूल, अन्नपदार्थ। क्लोरिन, सल्फर डायऑक्साइड जैसे वायु, जो इरिटंट होते हैं, वो भी खाँसने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है। कफ रिफलेक्स का यानी खाँसी का मुख्य उद्देश्य होता है, श्‍वसन मार्ग के अनावश्यक पदार्थों को बाहर निकलाना तथा श्‍वसन मार्ग को खुला रखना। बाह्य पदार्थों के श्‍वसन मार्ग में प्रवेश करते ही श्‍वसनमार्ग के चेतातंतु सजग हो जाते हैं। इन चेतातंतुओं द्वारा मस्तिष्क के मेड्युला नामक भाग को संदेश पहुँचाया जाता है। मेड्युला द्वारा शरीर के विभिन्न अवयवों को संदेश पहुँचाया जाता है। इन संदेशों के आधार पर शरीर में कुछ क्रियाएँ होती हैं। इन सभी क्रियाओं से निष्पन्न कफ रिफ्लेक्स होता है। खाँसने से पहले शरीर में क्या-क्या घटित होता है, अब हम इसकी जानकारी प्राप्त करेंगे।

१) लगभग २.५ लीटर हवा शीघ्रता से फेफड़ों में ली जाती है।

२) पड़जीभ (epiglotis) और वोकल कॉर्डस मजबूती से बंद हो जाते हैं। इस प्रकार से अंदर ली गयी हवा फेफड़ों में बंद हो जाती है।

३) पेट के स्नायु शीघ्रता से एवं ज़ोर से आकुंचित होते हैं तथा द्विभाजक परदे पर नीचे से ऊपर छाती की ओर दाब बढ़ाया जाता है। साथ ही साथ दो पसलियों के बीच के स्नायु आकुंचित होते हैं।

४) उपरोक्त घटनाओं के फलस्वरूप फेफड़ों में बंद दबाव काफ़ी मात्रा में बढ़ जाता है। यह दाब १०० mm of Hg (mercury) तक बढ़ जाता है।

५) एपिग्लॉटिस एवं स्वरयंत्र पल भर में खुल जाते हैं। अंदर बंद उच्च दबाव वाली हवा तेज़ी से बाहर निकलती है। यह वेग ८० से १०० मील प्रतिघंटा तक हो सकता है। तेज़ गति से बाहर आने वाली यह हवा अपने साथ अंदरूनी पदार्थ, कण इत्यादि जो कुछ भी होगा, उसे बाहर ले आती है।

कफ रिफलेक्स अथवा खाँसी, एक नैसर्गिक स्वसंरक्षण (protective) की क्रिया है। यदि किसी व्यक्ति की खाँसी काफ़ी दिनों तक ठीक ना हो रही हो तो ऐसे व्यक्ति के श्‍वसनमार्ग में कोई बाह्य पदार्थ के (foreign body) चिपकने की संभावना रहती है।

छिंकना अथवा sneeze reflex : छींकों का अनुभव हम लोग हमेशा ही लेते रहते हैं। छींकने का तरीका भी उस व्यक्ति के अनुसार अलग-अलग होती है। उससे उस व्यक्ति का स्वभाव भी जाना जा सकता है। हमें कई बार छींकें आ जाने से कष्ट होता है। यदि अलग-अलग होता है। उससे उस व्यक्ति का स्वभाव भी जाना जा सकता है। हमें कई बार छींके आ जाने से कष्ट होता है। यदि अगल-बगल में कोई लगातार छींकता रहता है?तो हम गुस्सा हो जाते हैं। छींकना भी स्वसंरक्षण की क्रिया है। कफ रिफ्लेक्स की तरह ही घटनाएँ होती हैं। नाक में अटका हुआ पदार्थ बाहर निकालने में मदद होती है।(क्रमश:)

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