श्‍वसनसंस्था- ४

हम अभी अपनी श्‍वसनसंस्था के ऊपरी भाग के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। लॅरिन्क्स अथवा स्वरयंत्र की संक्षिप्त जानकारी हमनें प्राप्त की। स्वरयंत्र हवा का मार्ग ही है। जब हम नाक के द्वारा श्‍वास लेते हैं तो अंदर ली गयी हवा स्वरयंत्र से ही श्‍वसननलिका में जाती है। जब हवा बाहर निकाली जाती है तो इसके विपरीत क्रिया होती है। स्वरयंत्र, नाक और श्‍वसन-नलिका के बीच का महत्त्वपूर्ण अंग है। क्या इस स्वरयंत्र के लिए भी खतरा निर्माण होता हैं? यदि खतरा हुआ तो उसके क्या परिणाम होते हैं, इसकी संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं।

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१) यदि किसी भी कारण से लॅरिन्क्स में से जानेवाली हवा के मार्ग में अवरोध (obstruction) उत्पन्न होता है तो क्या होगा? यदि पूरा रास्ता ही बंद हो जायेगा तो व्यक्ति की मौत हो जायेगी। यदि किसी प्रकार की कोई बड़ी चीज अंदर घुस जाती है तो लॅरिन्क्स की हवा का पूरा मार्ग ही बंद हो जाता है। यदि वस्तु छोटी होती है तो वो श्‍वसननलिका की किसी छोटी शाखा में अटक जाती है। कभी-कभी ऐसी वस्तु लॅरिन्क्स में ही अटक जाती है। यदि इस प्रकार की कोई बाहरी वस्तु (foreign body) श्‍वसनमार्ग में कहीं पर भी अटक जाती हैं तो शरीर की कुछ निश्‍चित प्रतिक्रियाएँ होती हैं। व्यक्ति को ज़ोर से खाँसी आती रहती है। अटकी हुई वस्तु को शिथिल करके शरीर से बाहर निकल देने का यह एक प्रयत्न होता है। इतने पर भी यदि वस्तु वहीं पर अटकी रह जाए तो वह व्यक्ति लगातार खाँसता रहता है। उस वस्तु के बाहर निकलने तक व्यक्ति को खाँसी आती ही रहती है। महीनों-महीनों तक आनेवाली खाँसी ऐसी वस्तु के कारण भी हो सकती है।

जिवाणुबाधा के कारण श्‍वसन नलिका और सारे श्‍वसनमार्ग में सूजन आ जाती है। यह अंदरूनी सूनन भी श्‍वसनमार्ग को बंद करती है। इसे inflamation कहते है। जीवाणु बाधा के कारण यहाँ पर आनेवाली सूजन व्होकल फ़ोल्डस् के ऊपरी भाग तक ही सीमित रहती है। जीवाणु बाधा होने के बाद जो सूजन आती है वह स्वरयंत्र की म्युकस मेंब्रेन की निचली ओर आती है। वोकल फ़ोल्डस् के ऊपरी भाग की म्युकस मेंब्रेन ङ्गैली हुई होती है। उसके नीचे सूजन ङ्गैल जाती है। परन्तु व्होकल फ़ोल्डस् के ऊपर म्युकस मेंब्रेन एकदम मजबूती से लगी होती है, इसी लिए उसके नीचे सूजन नहीं फ़ैलती। यदि असीमित जिवाणुबाधा हो गयी होगी और समय पर उपचार ना किया जाए तो वहाँ की सूजन हवा का संपूर्ण मार्ग बंद कर सकती है। व्होकल फ़ोल्डस् के ऊपरी भाग पर सूजन आ जाने पर उस व्यक्ति को लगातार बुखार/खांसी आती रहती है। धीरे-धीरे हवा का मार्ग बंद होने लग जाने पर श्‍वास के साथ अंदर-बाहर आने जाने वाली हवा की सींटी जैसी आवाज़ आने लगती है। वैद्यकीय भाषा में इसे क्रुप (croup) कहते हैं। छोटे बच्चों में यह विकार ज्यादा मात्रा में होता है। ऐसी परिस्थिति में यदि प्राणों को खतरा उत्पन्न हो जाये तो हवा का मार्ग बंद होने के कारण ङ्गौरन हवा का मार्ग खोलना पड़ता है। इसके लिए स्वरयंत्र अथवा श्वसननलिका में बाहर से छेद करके वहाँ से हवा अंदर-बाहर जाने की व्यवस्था करनी पड़ती है। इस शस्त्रक्रिया को लॅरिंगोस्टोमी (स्वरयंत्र पर छेद) अथवा ट्रॅकिओस्टोमी (श्‍वसन नलिका पर छेद) कहते हैं।

२) चेतातंतु में दोष : स्वरयंत्र और व्होकल फ़ोल्डस् में चेतासंस्था से जो चेतातंतु आते हैं, उन्हें Laryngeal nerves कहते हैं। इन चेतातंतुओं में से यदि कोई चेतातंतु काम करना बंद कर दे तो व्होकल फ़ोल्डस् में असंतुलन निर्माण हो जाता है। इसके कारण व्यक्ति के आवाज पर इसका असर होता है।

३) व्होकल फ़ोल्ड अथवा कॉर्ड पर गॉंठें : व्होकल कॅार्ड की म्युकस मेंब्रेन उस पर चिपकी होती है। इसके ऊपरी भाग पर सूजन आने पर यह सूजन वोकल कार्डस् पर नहीं आती, परन्तु पहले से चिपकी म्युकस मेंब्रेन पर और भी तनाव आ जाता है। फ़लस्वरूप इस तनी हुयी मेंब्रेन के नीचे रक्तस्राव होता है और उसकी गा़ँठें व्होकल कॉर्ड पर बन जाती हैं। वोकल कॅार्ड पर अति तनाव और उसका अति उपयोग करनेवाले व्यक्तियों में ऐसा विकार पाया जाता है। उदाहरणार्थ – गायक, गायिकाओं में यह विकार बार-बार हो सकता है। इसीलिए इसे सिंगर्स नोड़स् भी कहा जाता है।

उपरोक्त आकृति स्वरयंत्र की ही है। श्‍वासोच्छ्श्‍वास के दौरान व्होकल और वेस्टिब्युलर दोनों फ़ोल्डस् एक दूसरे से दूर होते हैं। इसी लिए हवा आसानी से आया जाया करती रहती है। जाँच करते समय डॉक्टर गले से स्वरयंत्र देखते हैं तो उन्हें स्वरयंत्र उपरोक्त आकृति के अनुसार ही दिखायी देता है। इस प्रकार से उसमें आए विकारों को पहचाना जा सकता है।
(क्रमश:-)

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