९०. मुआवजा….

‘ऑस्टेरिटी मेझर्स’ यानी मितव्ययिता के उपाय एक हद तक व्यवहार्य साबित होनेवाले थे, उसके आगे नहीं| जागतिक ज्यूधर्मियों से और ज्यू-मित्रों से सहायता हालॉंकि जारी थी, लेकिन ज्यू स्थलांतरितों का प्रवाह तो अव्याहत रूप में चालू ही था|

गत कुछ महीनों से बेन-गुरियन के दिमाग में कुछ तो वैकल्पिक योजना बनाने के विषय में विचार चल रहा था| ख़ासकर जर्मनी से आनेवालीं ख़बरों के कारण इस विचार ने ज़ोर पकड़ा|

‘हिटलर का कालखंड यह जर्मन लोगों को ही उनके इतिहास का ‘काला अध्याय’ प्रतीत हो रहा है और नाझी जर्मनी में वंशविद्वेष के द्वारा अन्यवंशियों पर, ख़ासकर जर्मनीस्थित ज्यूधर्मियों पर जो अनन्वित अत्याचार हुए, उसको लेकर जर्मनों के मन में अपराधीपन की भावना है और वह सरकारी स्तर पर से भी व्यक्त होने लगी है’ यह देखने के बाद बेन-गुरियन के दिमाग में एक योजना आकार धारण करने लगी| तत्कालीन वेस्ट जर्मनी के चॅन्सेलर कॉनरॅड ऍडॅनॉर की ओर से इस्रायल को भेजे गये इस आशय के अधिकृत पत्र के बाद तो बेन-गुरियन ने अधिक वक़्त ज़ाया न करते हुए अपनी योजना प्रस्तुत की| लेकिन उससे पहले एक साल भर उनके प्रतिनिधियों की जर्मनी के साथ इस विषय पर बारिक़ी से चर्चा हुई थी| ‘नाझी जर्मनी में ज्यूधर्मियों पर हुए अनन्वित अत्याचारों के बदले जर्मनी इस्रायल को मुआवजा दे दें’ (‘जर्मन रिपॅरेशन टू इस्रायल’) ऐसी वह योजना थी|

तत्कालीन पश्‍चिम जर्मनी के चॅन्सेलर कॉनरॅड ऍडॅनॉर

लेकिन ‘यह केवल उन अत्याचारों का शिकार हुए ज्यूधर्मियों की मालमत्ताओं का, व्यवहारिक दृष्टिकोण से, केवल बतौर एक समझौता किया हुआ मुआवजा है; यह उनकी जानों की क़ीमत हरगिज़ नहीं है| उन अत्याचारों में से बचे ज्यूधर्मियों के मन पर और उसमें मारे गये लोगों के रिश्तेदारों के दिल पर उसके जो ज़़ख्म हुए हैं, उन्हें किसी भी मुआवज़े से भरा नहीं जा सकता’ यह भी बेन-गुरियन ने अपनी योजना में स्पष्ट किया था|

दरअसल दूसरा विश्वनयुद्ध ख़त्म होने के बाद जब पराभूत जर्मनी का कब्ज़ा चार विजयी दोस्तराष्ट्रों के पास गया, तभी ज्युईश एजन्सी ने इन चार राष्ट्रों के पास यह मुद्दा उठाकर मुआवजे की यह मॉंग की थी; इतना ही नहीं, बल्कि पराभूत और विजयी राष्ट्रों के बीच जो समझौते की अंतिम चर्चाएँ चल रही थीं, उन्हीं में – अर्थात् विजयी राष्ट्रों ने जर्मनी से मॉंगे हुए मुआवज़े में ही यह ज्यूधर्मियों की मॉंग अंतर्भूत करें, ऐसी विनती की थी| लेकिन वह उस समय मान्य नहीं हुई थी और ‘ज्यूधर्मीय जर्मनी के पास अलग से मुआवज़ा मॉंगें’ ऐसा दोस्तराष्ट्रों ने ज्यूधर्मियों से कहा था|

सोव्हिएत ने और पूर्व जर्मनी की सोव्हिएतपरस्त सरकार ने ज्युईश एजन्सी की इस मॉंग को कुछ भी प्रतिसाद न दिया होने के कारण, यह मॉंग आगे चलकर स्वतंत्र इस्रायल से पश्चिेम जर्मनी के पास प्रस्तुत की गयी थी| (अर्थात् आगे चलकर सन १९९० के दशक में जब दोनों जर्मनियों का पुनः एकत्रीकरण हुआ, उसके कुछ समय पहले पूर्व जर्मनी ने, ज्यूधर्मियों को जो मुआवज़ा देना है, उसमें उनका (पूर्व जर्मनी का) भी उत्तरदायित्व क़बूल किया था और मुआवज़े में हिस्सा उठाने का भी मान्य किया था|)

इस मॉंग में, युरोप से स्थलांतरित हुए लगभग ५ लाख ज्यूधर्मियों के, इस्रायल में किये जानेवाले पुनर्वास के लिए आवश्यक रक़म (प्रतिव्यक्ति खर्चा तक़रीबन ३ हज़ार डॉलर्स), अर्थात् लगभग १.५ अरब डॉलर्स मुआवज़े के रूप में जर्मनी से वसूल करने की योजना डेव्हिड बेन-गुरियन ने प्रस्तुत की|

उनके विरोधकों को तो यह योजना एक हास्यास्पद प्रतीत हुई और उन्होंने उसका मज़ाक उड़ाना शुरू किया| इतना ही नहीं, बल्कि इस योजना का भावनिक दृष्टि से भी प्रचंड विरोध किया गया|

मार्च १९५२ में इस्रायल और पश्‍चिम जर्मनी के बीच हुई ‘रिपॅरेशन ट्रीटी’ के खिलाफ़ मेनाकेम बेगिन ने प्रदर्शन किये|

‘ज्यूधर्मियों के इतिहास में, उन्हें दुनिया से हमेशा मिला तिरस्कार, ख़ासकर युरोपीय समाजों से वांशिक भेद के तहत किया गया अनन्वित उत्पीड़न, इस उत्पीड़न के कारण चली गयीं ज्यूधर्मियों की जानें – यह अत्यधिक काला अध्याय है और वह ज्यूधर्मियों के दिल पर हुआ, कभी भी न सूखनेवाला गीला ज़़ख्म है| उसकी क्षतिपूर्ति कागज़ के टुकड़ों (नोटों) में कैसे की जा सकती है? क्या यह हमारे ज्यूबांधवों के बहे खून की क़ीमत है?’ ऐसा भावनिक सवाल मेनाकेम बेगिन जैसे इस संकल्पना के विरोधकों ने उपस्थित किया|

पूरे ३ दिन तक, इस्रायली संसद में – नेसेट में यह घमासान चर्चा दिनरात चल रही थी| यह चर्चा जब चालू थी, तब विरोधक, अपना मुद्दा जनता तक पहुँचाने के लिए नुक्कड़ों में सभाएँ लेकर उनमें भावनिक भाषण कर ही रहे थे| उसके चलते तेल अवीव्ह में जनमानस भड़क उठा और इस योजना के खिलाफ़ ज़ोरदार प्रदर्शन शुरू होकर उन्होंने हिंसक मोड़ भी ले लिया| बीच बीच में संसद पर भी पथराव हो रहा था| प्रदर्शनकारियों को क़ाबू में रखने के लिए अश्रुगैस का इस्तेमाल भी किया जा रहा था| प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई करते समय अधिक से अधिक संयम बरतने के आदेश दिये गये पुलीसकर्मियों के लिए, प्रदर्शनकारियों को क़ाबू में रखने के लिए बेहद प्रयास करने पड़ रहे थे|

जेरुसलेम के लिए पानी की पाईपलाईन का निर्माण

आखिरकार संसद में काफ़ी ‘भवति न भवति’ होने के बाद यह योजना थोड़ेसे मताधिक्य से पास की जाकर जर्मन सरकार को प्रस्तुत की गयी| जर्मनी से १.५ अरब डॉलर्स का मुआवज़ा मॉंगा गया था| लेकिन पूर्व जर्मनी ने मुआवज़े के इस प्रस्ताव को कुछ भी प्रतिसाद (रिस्पॉन्ज़) नहीं दिया था| अतः पश्चिाम जर्मनी के साथ हुई बातचीत में अंतिम ऱकम ८४.५ करोड़ (०.८४५ अरब) डॉलर्स निश्चिनत की गयी, जिसे जर्मनी अगले चौदह वर्षों में विभाजित कर इस्रायल के पास सुपूर्द करनेवाली थी|

यह रक़म, इस्रायल को उसके जन्म से लेकर गत चार सालों में – डोनेशन्स, अनुदान, सहायता, निजी तथा सरकारी कर्ज़े आदि सभी उपलब्ध मार्गों से जो पैसा प्राप्त हुआ था, उससे अधिक थी| उन पैसों के बलबूते पर – इस्रायल ने स्वतन्त्रतायुद्ध जीता था, सेना का पुनर्गठन किया था, सैंकड़ों बंजर ज़मीनों में ख़ेतज़मीनें विकसित कीं थीं, स्थलांतरितों को उन जगहों में बसाया था, हज़ारों पाईपलाईन्स की सहायता से जलसिंचन योजनाएँ साकार कीं थीं, हैफ़ा आदि बंदरगाहों का विकास किया था|

अब इन मुआवज़े के नये पैसों से बुनियादी सुविधाओं का विकास संभव होनेवाला था, खेती को और भी व्यापक मात्रा में करना संभव होनेवाला था, नेगेव्ह रेगिस्तान का खेती की दृष्टि से विकास करना संभव होनेवाला था, परिवहन-पोतनिर्माण-फिशरी आदि उद्योगों का विकास करना संभव होनेवाला था, स्थलांतरितों के लिए और ज़्यादा प्रमाण में गृहनिर्माण संभव होनेवाला था|

यह घटनाक्रम यानी समय ने करवट बदली होने का ही निर्देशक था| जिस जर्मनी में ज्यूधर्मियों का नामोनिशान तक मिटा देने की हरसंभव कोशिशें की गयीं थीं, उसी जर्मनी को ज्यू-राष्ट्र के साथ ही, उसका मुआवज़ा देने का क़रारनामा करना पड़ा था|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.