६७. ‘पील कमिशन’ के सुझाव

सन १९३६ में अरब-ज्यू दंगों की तहकिक़ात करने पॅलेस्टाईन के दौरे पर आये ‘पील कमिशन’ इस ब्रिटीश शाही खोजसमिति ने अपने अहवाल में पॅलेस्टाईन के संदर्भ में कई सुझाव दिये थे। लेकिन उनमें से मुख्य सुझाव –

सन १९३६ के अरब-ज्यू दंगों के तहकिक़ात करने नियुक्त किये गए ‘पॅलेस्टाईन रॉयल कमिशन’ ने प्रस्तुत किये अहवाल में पॅलेस्टाईन का ‘अरब राष्ट्र-ज्यू राष्ट्र’ ऐसा विभाजन करने का प्रस्ताव सुझाया गया था।

‘परस्परविरोधी माँगें होनेवाले दोनो पक्षों को इन्साफ़ देने के ब्रिटीश सरकार ने पूरे प्रयास किये। लेकिन वे असफल हुए होकर, ब्रिटीश मँडेट नाक़ाम हुआ दिखायी दे रहा है। इस कारण, फिलहाल निर्माण हुए इस गतिरोध को हल करना हो, तो पॅलेस्टाईन प्रान्त का विभाजन कर अरबों को और ज्यूधर्मियों को अलग अलग राज्य स्थापन कर देने होंगे’ यह था

और इस मुख्य सुझाव के उपलक्ष्य में कमिशन ने कुछ उपसूचनाएँ की थीं –

  • ‘इन दो राज्यों की सीमाएँ अचूकता से निश्‍चित कीं जायें;
  • इन राज्यों के परस्परसंबंधों के सन्दर्भ में, साथ ही, उन राज्यों में ब्रिटिशों की भूमिका क्या होगी इस सन्दर्भ में एक निश्‍चित ऐसा समझौता किया जायें;
  • यदि हो सके तो इनमें से अरब राज्य को ट्रान्सजॉर्डन में विलीन किया जायें;
  • वैसे ही विभिन्न धर्मो को आदरणीय ऐसे धार्मिक स्थान होनेवाले जेरुसलेम के बारे में भी स्वतन्त्र समझौता किया जायें;साथ ही, इन राज्यों के लोगों की राष्ट्रीयता;
  • इन राज्यों की प्रशासकीय सेवाओं का स्वरूप;
  • इन राज्यों की करनिर्धारण पद्धति;
  • इन राज्यों में उद्योगों को दीं जानेवालीं औद्योगिक रियायतें;
  • और सबसे अहम बात यानी ज़मीनों का आदानप्रदान;

और अरब तथा ज्यूधर्मीय आबादी का एक-दूसरे के प्रदेशों से स्थानान्तरण इन बारे में भी निश्‍चित स्वरूप के समझौते किये जाये।’

अहवाल में उल्लेखित विभाजन का प्रस्ताव, ज्यूधर्मियों को दिये गए अन्याय्य हिस्से के कारण हालाँकि ज्यूधर्मियों द्वारा ठुकराया गया, मग़र फिर भी ‘यदि उचित विभाजन हुआ, तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं है’ ऐसे संकेत कैम वाईझमन और डेव्हिड बेन-गुरियन इन दोनों प्रमुख नेताओं ने दिए।

उसीके साथ इस अहवाल में कमिशन ने ऐसा भी नमूद किया था कि ‘पॅलेस्टाईन के कुल सरकारी आय में वृद्धि करने में अरबों की तुलना में ज्यूधर्मियों का अमूल्य हिस्सा है, जिसके बलबूते पर यहाँ की विभिन्न समाजकल्याण योजनाओं को, विभिन्न सरकारी सेवाओं को अखंडित रूप में चलाना सरकार के लिए संभव होता है और जिसका फ़ायदा ज्यूधर्मियों की तुलना में अरबों को अधिक होता है। अब जब पॅलेस्टाईन का इस प्रकार विभाजन किया जायेगा, तब ज़ाहिर है, अरबों के विभाग के समाजकल्याण की ज़िम्मेदारी ज्यूधर्मियों की न रहने के कारण, इस फ़ायदे से अरब राज्य के लोग वंचित रहेंगे। साथ ही, अरबों के पास फिलहाल होनेवालीं ज़मीनें प्रायः अनुपजाऊ होने के कारण आनेवाले समय में यहाँ पर बड़े पैमाने पर जलसंधारण, पाटबंधारे आदि योजनाओं पर अमल करना होगा। उसके लिए, विभाजन होने के बाद ज्यू-राज्य से अरब राज्य के लिए आर्थिक सहायतास्वरूप कुछ रक़म वसूली जाये’; और अपनी इस सूचना की पुष्टि में कमिशन ने, उस समय ब्रिटीश साम्राज्य का हिस्सा होनेवाले भारत में या अन्य स्थानों पर उससे पहले किये गये इसी प्रकार के आर्थिक प्रबंधों की मिसालें दीं थीं।

विभाजन किया, तो पॅलेस्टाईन की राजनीति में अपना महत्त्व कम होगा इस डर से अल हुसैनी ने इस प्रस्ताव को ठुकराया।

उसी के साथ – ‘महज़ सीमाएँ निश्‍चित करके कुछ नहीं होगा; मुख्य सवाल खड़ा रहेगा, वह दोनों धर्मियों के, एक-दूसरे के भागों से खुद को प्रदान किये भाग में स्थलांतरित होने का’; ऐसी भी चेतावनी कमिशन ने अपने अहवाल में दिया था और अपनी इस चेतावनी के समर्थन में ‘ग्रीस’ और सन १९२३ में जन्में ‘तुर्की’ इन देशों के बीच हुए इसी प्रकार के, आबादी के आदानप्रदान का उदाहरण दिया था। इस प्रकार से स्थलांतरित करना पड़नेवाले अरबों की संख्या लगभग २ लाख २५ हज़ार और ज्यूधर्मियों की संख्या लगभग १ हज़ार २५० तक होगी, ऐसा अंदाज़ा कमिशन ने व्यक्त किया था।

पील कमिशन का यह अहवाल हालाँकि अरब और ज्यूधर्मीय दोनों ने भी नकारा था, उसकी बहुत ही अहमियत है, क्योंकि बाद के समय में सोचे गये सारे हल यह अधिकांश रूप में इसी कमिशन के अहवाल पर आधारित थे।

सन १९३७ के अगस्त महीने में आयोजित की गयी बीसवीं झायॉनिस्ट काँग्रेस में हालाँकि इस अहवाल को, ज्यूधर्मियों को बहुत ही कम प्रदेश प्रदान किया गया होने के कारण से नकारा गया, लेकिन ज्युइश एजन्सी के अध्यक्ष डेव्हिड बेन-गुरियन और दूसरे महत्त्वपूर्ण नेता कैम वाईझमन ने चर्चा के दरवाज़ें खुले रखने का और ‘यदि विभाजन उचित रूप में किया गया, तो उसके लिए ज्यूधर्मीय तैयार हैं’ ऐसा संकेत देने का मशवरा दिया। ‘पील कमिशन ने सूचित कीं हुईं सीमाएँ ज्यूधर्मियों के लिए हमेशा के लिए बंधनकारक हैं ऐसा मानने की ज़रूरत नहीं है। साथ ही, इसके द्वारा पहली ही बार ज्यूधर्मियों को आधुनिक समय में आन्तर्राष्ट्रीय मान्यता होनेवाली हक़ की भूमि मिल रही है। आज जितना पल्ले पड़ रहा है, उतने समेत लो, शुरुआत तो होने दो….अधिक के लिए बाद में संघर्ष करेंगे’ यह भूमिका डेव्हिड बेन-गुरियन ने इस काँग्रेस के सामने प्रस्तुत की।

अरबों को तो विभाजन चाहिए ही नहीं था, वे पूरा का पूरा पॅलेस्टाईन प्रान्त बतौर ‘अरब राज्य’ चाहते थे और उसमें ज्यूधर्मियों का समावेश ही नहीं चाहते थे। इसके अलावा स्थानिक अरबी नेताओं ने इस प्रस्ताव को नकारने के कई कारण थे।

जैसे कि, इस प्रस्तावित विभाजन के बाद, ज्यूधर्मियों ने अपनी मेहनत और संशोधन से समृद्ध बनायी पॅलेस्टाईनस्थित सारी ऊपजाऊ ज़मीन ज्यूधर्मियों के मालिक़ियत की होगी और अरबों के पास पुनः पहले जैसी ही अनुपजाऊ-बंजर ज़मीन आयेगी, यह हुसैनी जानता था। दरअसल ज्यूधर्मियों की मालिक़ियत की ज़मीन भी मूलतः अनुपजाऊ ही थी; अपने परिश्रमों से और संशोधन से ज्यूधर्मियों ने उसे ऊपजाऊ बनाया था और खेती को अपने मुख्य व्यवसायों में से एक बनाया था। इस कारण उस ज़मीन पर ज्यूधर्मियों का ही हक़ था। लेकिन स्थानिक अरब इस सत्य को मान्य नहीं कर रहे थे। इस कारण हुसैनी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

ट्रान्सजॉर्डन के राजा ‘किंग अब्दुल्ला’ के साथ भी कमिशन की बैठकें हुईं।

लेकिन केवल यही कारण नहीं था। हुसैनी द्वारा किये जानेवाले विरोध का एक और कारण – ‘हो सके तो पॅलेस्टाईन के विभाजन के बाद तैयार होनेवाले अरबी राज्य को ट्रान्सजॉर्डन में विलीन करने की पील कमिशन की सलाह’ यह था। इससे पॅलेस्टाईन की अरब राजनीति में अपना महत्त्व कम होगा ऐसा डर हुसैनी को लग रहा था। इस प्रस्तावित अरबी राज्य को यदि ट्रान्सजॉर्डन में विलीन किया गया, तो उसका फ़ायदा मुझसे ज़्यादा ट्रान्सजॉर्डन के राजा ‘किंग अब्दुल्ला-१’ को ही अधिक होगा, ऐसा हुसैनी को लगा। क्योंकि तत्कालीन ट्रान्सजॉर्डन की हालत पॅलेस्टाईन से भी बदतर थी। साथ ही, हुसैनी के कुछ अंतर्गत दुश्मनों के किंग अब्दुल्ला के साथ अच्छे समीकरण थे। उसका फ़ायदा उठाकर वे लोग मुझपर हावी होंगे ऐसा डर हुसैनी को लग रहा था। इस कारण उसने प्रस्ताव को मान्यता नहीं दी।

लेकिन आगे चलकर बीस साल बाद इस सारे घटनाक्रम के बारे में अपनी राय ज़ाहिर करते हुए डेव्हिड बेन-गुरियन ने ऐसा कहा था कि ‘यदि इस विभाजन के प्रस्ताव पर उस समय अमल किया गया होता, तो शायद अगले दशक में कुछ अलग ही चित्र दिखायी देता। अगले दशक में महायुद्धकाल में युरोप में इतने ज्यूधर्मियों को मार दिया गया, वे शायद बच जाते, क्योंकि वे सारे ज्यूधर्मीय इस्रायल में स्थानान्तरित हो चुके होते।’(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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