परमहंस-१३०

रामकृष्णजी के उस स्त्रीभक्त द्वारा दिये गए आमंत्रण के अनुसार, उनके कुछ शिष्यगण उसके पास जब भोजन के लिए गये थे, तब ‘वह’ सँदेसा आया था – ‘रामकृष्णजी के गले से से रक्तस्राव शुरू हुआ होने के कारण वे वहाँ नहीं आ सकते।’

उपस्थितों के दिल की मानो धडकन ही रुक गयी और भोजन को छोड़कर, ‘निश्‍चित रूप में क्या हुआ होगा?’ इसपर ही चिंतायुक्त चर्चा शुरू हुई। उनके दिलों में ऐसी घंटी बज रही थी, मानो कोई अनामिक संकट नज़दीक आ रहा हो। क्योंकि अब यह अस्वास्थ्य की परेशानी शुरू हुए कुछ महीनें बीत गये थे और वह कम होने के बजाय बढ़ती ही चली जा रही थी। आख़िरकार चर्चा के अन्त में ऐसा तय किया गया कि कोलकाता में ही भरी बस्ती में कोई मक़ान किराये पर लेकर वहाँ रामकृष्णजी के ठहरने का प्रबन्ध किया जाये, ताकि विशेषज्ञ डॉक्टर और अन्य वैद्यकीय सुविधाएँ आसानी से और जल्द प्राप्त हों।

रामकृष्ण परमहंस, इतिहास, अतुलनिय भारत, आध्यात्मिक, भारत, रामकृष्णजल्द ही शिष्यों ने कोलकाता के बागबाज़ार इला़के में दुर्गाचरण मुखर्जी स्ट्रीट पर एक दोमंज़िला मक़ान किराये पर ले लिया। लेकिन वहाँ जाने के बाद – दक्षिणेश्‍वर में खुली हवा के आदी होने के कारण – वह बंदिस्त जगह रामकृष्णजी को कुछ ख़ास पसन्द नहीं आयी। ‘मृत्युशय्या पर होनेवाले बीमार को जैसे उसके अन्तिम दिनों में रखा जाता है, वैसे तुम मुझे यहाँ ले आये हो क्या?’ ऐसा सवाल पूछकर वे वहाँ से ठेंठ, नज़दीक ही होनेवाले बलराम बोसजी के घर चले गये। बलराम बोसजी के लिए तो यह सुखपर्व ही था। कम से कम दूसरा अच्छा इन्तज़ाम होने तक तो आप मेरे ही घर में रहें, ऐसी बलराम बोसजी ने रामकृष्णजी से विनति की, जो उन्होंने मान ली और वे बोसजी के घर रहने चले आए।

इसी बीच, रामकृष्णजी की बीमारी का निदान करने के लिए शिष्यों ने कोलकाता के कुछ सुविख्यात आयुर्वेदिक डॉक्टरों (वैद्यों) को पाचारण किया। अपने क्षेत्र में माहिर माने जानेवाले उन सभी अनुभवी वैद्यों का, रामकृष्णजी की बीमारी पर एकमत हुआ – ‘गले का कर्करोग’ – ‘थ्रोट कॅन्सर’!

यह सुनकर तो रामकृष्णजी के शिष्यों के पैरों तले से मानो ज़मीन ही खिसक गयी थी। लेकिन ‘बुरी ख़बर पर विश्‍वास होने में व़क्त लगता है’ और ‘आशा (उम्मीद) मरती नहीं’ इन तत्त्वों के अनुसार, कई शिष्यों को इसपर विश्‍वास ही नहीं हो रहा था और उन्होंने होमिओपथी आदि अन्य क्षेत्रों के नामचीन डॉक्टरों को रामकृष्णजी की बीमारी का पुनर्निदान करने के लिए बुलाने का तय किया।

इस दौरान, ‘फ़िलहाल रामकृष्णजी का वास्तव्य कोलकाता में बलराम बोसजी के घर में है’ यह ख़बर अल्पावधि में ही कोलकाता में फैल गयी और फिर दर्शनेच्छुक लोगों का ताँता ही बोसजी के घर में लगने लगा। दोपहर के भोजन का थोड़ासा समय छोड़कर, सुबह से लेकर रात तक लगातार लोगों की भीड़ वहाँ जमा हुआ करती थी।

सांसारिक समस्याओं से परेशान उन सामान्यजनों को देखकर रामकृष्णजी का दिल तिलमिलाता था और वे उन्हें उपदेश करते थे, उनकी समस्याओं पर उपाय भी बताते थे। डॉक्टरों ने मना करके भी और शिष्यों द्वारा बार बार अनुरोध करने पर भी, वे आये हुए लोगों से बात करना बन्द नहीं करते थे। यदि आध्यात्मिकता की ओर रूझान होनेवाले भक्त आये, तो फिर भजन-सत्संग भी होता था। उस समय भजन के ताल पर नाचते हुए बेभान होकर रामकृष्णजी भावसमाधि को भी प्राप्त करते थे, जो आये हुए लोगों के लिए सुखपर्व ही होता था। दक्षिणेश्‍वर से भी ज़्यादा, यहाँ उनमें स्थित आध्यात्मिक शक्ति अधिक प्रकर्ष से जागृत हुई भक्तों को प्रतीत हो रही थी।

रामकृष्णजी को भावसमाधि को प्राप्त करते हुए और भावसमाधि में होते हुए निहारना, यह उनके शिष्यों के लिए भी दरअसल आनंदोत्सव ही था; लेकिन अब चूँकि शिष्यों को उनकी बीमारी के बारे में पता चला था, वे रामकृष्णजी की भावसमाधि का आनंद उठाने के बजाय चिन्ता में पड़ जाते थे।

बलराम बोसजी के घर रामकृष्णजी केवल आठ दिन ही थे; लेकिन ये आठ दिन अलग ही, भारित अवस्था में होनेवाले और संस्मरणीय साबित हुए।

आठ ही दिनों में कोलकाता के श्यामापुकुर स्ट्रीट पर रामकृष्णजी के लिए, जैसी उन्हें चाहिए थी वैसी जगह का इन्तज़ाम हुआ और वे उस मक़ान में रहने के लिए गये।

उनपर पहले एक बार इलाज किये विख्यात विशेषज्ञ डॉ. महेंद्रलाल सरकार, यहाँ पर उनका इलाज करनेवाले थे।

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