प्रयाग भाग- ३

आज के इंटरनेट के आधुनिक युग में खत भेजनेवालों की संख्या का घट जाना यह स्वाभाविक बात है। बदलते जमाने के साथ साथ बदलनेवाले विज्ञान ने आज इंटरनेट, एस्.एम्.एस्. जैसे इन्स्टंट मार्ग उपलब्ध कराए हैं, इसीलिए खत लिखना यह बात दुर्लभ होती जा रही है।

Prayag- प्रयाग

फिर  भी हमारे मन में एक सवाल उपस्थित होता है कि खत लिखने की शुरुआत भला कैसे हुई होगी? कबूतरजैसे पंछी द्वारा संदेश भेजने से लेकर पोस्टमन द्वारा खत पहुँचाने तक का यह संदेशवहन का सफर गत कुछ सदियों में घटित हुआ है। आगे चलकर फिर  रेल्वे, बस आदि वाहनों के द्वारा भी एक जगह से दूसरी जगह तक खतों को पहुँचाया जाता था और फिर  ‘एअर मेल’ की मुहर लगाकर खतों को हवाई जहा़ज द्वारा भी भेजा जाने लगा। अब शायद आप सोच रहे होंगे कि खत, विमान और प्रयाग इन तीनों का आपसी सम्बन्ध न होते हुए भी यह सब वर्णन क्यों? तो इस प्रयागनगरी में ही विमान द्वारा डाकसेवा का प्रथम यशस्वी प्रयोग किया गया। इसके बारे में अब हम विस्तारपूर्वक जानकारी हासिल करते हैं।

१८ फरवरी १९११, शनिचर को प्रयाग में यह ऐतिहासिक घटना हुई। इस दिन प्रयाग से अर्थात् अलाहाबाद से एक विमान ने उड़ान भर ली और अलाहाबाद के पास में स्थित नैनी तक जाकर वहाँ खतों को पहुँचाया।

दर असल इसकी शुरुआत इसवी १९१० में हुई। १९१० के दिसम्बर महीने की शुरुआत में एस्. एस्. पर्शिया नामक ब्रिटन की एक व्यापारीय नौका विमान के अलग अलग हिस्सों को लेकर मुम्बई में दाखिल हो गई। विमान के इन हिस्सों को हंबर मोटर कंपनी, इस इंग्लैंड स्थित कंपनी ने अलाहाबाद में संपन्न होनेवाले एक औद्योगिक एवं कृषि प्रदर्शन के लिए भेजा था। इस सामान के साथ ही ‘वॉल्टर जॉर्ज विंडहॅम’, ‘हेन्री पिकेट’ ये फ्रेंच  विमानचालक, ‘किथ डेव्हिस’ यह अंग्रे़ज विमानचालक और दो तन्त्रज्ञ ये सभी ट्रेन से अलाहाबाद पहुँच गए। इन सबने मिलकर चंद ५ दिनों में ही विमान के सभी हिस्सों को जोड़कर दो विमानों को प्रदर्शन में रखने के लिए सुसज्जित किया।

इसी समय अलाहाबाद में वहाँ के छात्रों के लिए होस्टल का निर्माणकार्य चल रहा था। उसके लिए आवश्यक फण्ड  इकट्ठा करने के लिए इस हॉस्टेल के वॉर्डन एवं होली ट्रिनिटी चर्च के प्रमुख धर्मोपदेशक कॅप्टन विंडहॅम से मिले। उसी समय विंडहॅम के मन में एक ख़याल आया। अलाहाबाद से नैनी तक उनके द्वारा लाये गये दो विमानों में से एक विमान के द्वारा खतों को पहुँचाना और इससे होस्टल के लिए फण्ड  इकट्ठा करना और इस विशेष कार्य के लिए एक विशेष स्टँप तैयार किया जाना चाहिए और उसके द्वारा इस फण्ड  को इकट्ठा किया जाना चाहिए।

उस समय प्रयाग यह युनायटेड प्रोव्हिन्स का एक हिस्सा था। विमान द्वारा इस तरह खत ले जाना और फण्ड  इकट्ठा करना, इस कार्य के लिए युनायटेड प्रोव्हिन्स के पोस्टमास्टर जनरल और जी.पी.ओ. भारत के संचालक इन्होंने मंजूरी दे दी। इस कार्य के लिए बाय-प्लेन का रेखाचित्र रहनेवाले एक विशेष स्टँप का निर्माण किया गया और यह स्टँप या पोस्टमार्क सिर्फ उसी दिन के लिए उसी विमान से ले जाये जानेवाले खतों के लिए ही था और इसीलिए उसका अपना एक महत्त्व था।

इस योजना में बड़ी तादाद में लोग सम्मीलित हुए और लगभग ६००० खत तथा पोस्टकार्ड इकट्ठा हो गए। इन खतों एवं पोस्टकार्डों को छाँटने का कार्य उड़ान के पूर्व के दिन सुबह से लेकर मध्यरात्रि तक चलता रहा। इन खतों पर जो मुहर लगायी गयी, वह थी ‘फर्स्ट  एरियल पोस्ट’ (पहला हवाई डाक)।

….और वह दिन आ गया। १८ फरवरी १९११ का शनिचर। इसी समय प्रयाग में कुम्भमेला समारोह संपन्न हो रहा था। इसीलिए संगम पर भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी और विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान की इस पहली उड़ान को देखने के लिए भी काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी।

हेन्री पिकेट यह विमानचालक दाहिने हाथ में समय सूचित करनेवाली घड़ी पहनकर और बायें घुटने में अल्टीमीटर बाँधकर बाय-प्लेन में बैठ गया और ६००० खतों को लेकर नैनी के लिए विमान ने उड़ान भर ली। १३० फ़ीट की ऊँचाई से ४० मील प्रति घण्टे की रफ़्तार के साथ निकला यह बाय-प्लेन अलाहाबाद से ८ कि.मी. की दूरी पर स्थित नैनी तक पहुँच गया और वहाँ के पोस्टमास्टर के पास वे सभी खत सौंपकर उसी विमान को वापस अलाहाबाद ले आया। यह पूरी हवाई यात्रा कुल २७ मिनिटों की थी। फिर  नैनी से उन खतों को रवाना कर दिया गया। ऐसी थी यह खतों की पहली हवाई यात्रा।

नेहरू-गांधी परिवार का अलाहाबाद के साथ काफी क़रीबी रिश्ता है। अलाहाबाद में नेहरूजी का पैतृक निवासस्थान है, जिसे ‘आनन्द भवन’ इस नाम से जाना जाता है। मोतीलालजी नेहरू, पं. जवाहरलालजी नेहरू तथा इन्दिराजी गाँधी इनका इस घर के साथ काफी निकट का सम्बन्ध था। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के साथ जुड़े कईं महत्त्वपूर्ण फैसले  इस घर में किये गए, साथ ही इस घर में उस अवधि में कईं महत्त्वपूर्ण घटनाएँ भी घटित हुईं। भारत की भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय श्रीमती इन्दिराजी गाँधी ने इस घर को भारत सरकार को सौंप दिया और आज इस घर का जतन एक म्युजियम के तौर पर किया गया है। इस घर की कईं वस्तुएँ, कईं कक्ष इनके माध्यम से नेहरूजी और इन्दिराजी की स्मृति को जतन किया गया है।

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में अलाहाबाद की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसवी १८५७ की आ़जादी की लड़ाई में अलाहाबाद भी शामिल था और उसके बाद भी अलाहाबाद ने स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी भूमिका को भली-भाँति निभाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चौथा अधिवेशन इसवी १८८८  में अलाहाबाद में सम्पन्न हुआ। अलाहाबाद के ही अल्ङ्ग्रेड़ पार्क में १९३१  के फरवरी के महीने में चन्द्रशेखर आ़जादजी अंग्रे़जों के शिकंजे में न फसते हुए शहीद हो गए।

जिस तरह अलाहाबाद स्वतन्त्रतासंग्राम के साथ जुड़ा हुआ है, इसी तरह साहित्यक्षेत्र के साथ भी अलाहाबाद का क़रीबी रिश्ता है। इतना ही नहीं, बल्कि भारतीय क्रीडा तथा विज्ञान के क्षेत्र की बड़ी बड़ी हस्तियों के साथ भी अलाहाबाद का गहरा रिश्ता है।

भारतीय वैज्ञानिकों में से मेघनादजी साहा का नाम उनके ‘साहा इक्वेशन’ के लिए प्रसिद्ध है। इस ‘साहा इक्वेशन’ की सहायता से सितारों की भौतिक एवं रासायनिक स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। मेघनादजी साहा अलाहाबाद युनिव्हर्सिटी में अध्यापन का कार्य करते थें और इस युनिव्हर्सिटी के फिजिक्स इस विभाग के विकास में उनका प्रमुख योगदान रहा है।

मेजर ध्यानचन्दजी सिंग का नाम हॉकी के क्षेत्र में मशहूर है। मेजर ध्यानचन्दजी का जन्म प्रयाग में हुआ था।

सुमित्रानन्दनजी पन्त, हरिवंशरायजी बच्चन, महादेवीजी वर्मा, उपेन्द्रनाथजी, सूर्यकान्तजी त्रिपाठी और कमलेश्‍वरजी ये हिन्दी साहित्यक्षेत्र के अग्रसर नाम हैं। इन साहित्यिकों का भी इस नगरी के साथ सम्बन्ध था।

‘मधुशाला’ के रचयिता हरिवंशरायजी बच्चन ने कुछ समय तक अलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में अध्ययन किया था और आगे चलकर उन्होंने कुछ वर्षों तक यहीं पर अंग्रे़जी इस विषय का अध्यापनकार्य भी किया था। साथ ही कुछ समय तक उन्होंने इसी शहर में ‘ऑल इंडिया रेडियो’ में भी काम किया।

साहित्यक्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान रहनेवाले ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार को प्राप्त करनेवालीं हिन्दी की प्रमुख छायावादी कवयित्री महादेवीजी वर्मा ने भी अलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और कुछ समय बाद उन्होंने आजीवन अलाहाबाद में ही निवास किया।

क्या आप ‘द जंगल बुक’ के बारे में जानते हैं? कम से कम आप ‘मोगली’ से तो परिचित रहेंगे ही। इस मोगली नामक पात्र के जनक यानि कि ‘द जंगल बुक’ इस पुस्तक के लेखक ‘रुडयार्ड किपलिंग’ का व्यवसाय के कारण अलाहाबाद के साथ सम्बन्ध प्रस्थापित हुआ था। इसवी १८६५ में जॉर्ज अ‍ॅलन नामक अंग्रे़ज ने अलाहाबाद में ‘द पायोनियर’ इस समाचारपत्र की शुरुआत की। शुरू शुरू में यह समाचारपत्र हफ़्ते में तीन दिन प्रकाशित होता था, जो इसवी १८६९ के बाद हर रो़ज प्रकाशित होने लगा। इसी समाचारपत्र के सहायक संपादक के तौर पर रुडयार्ड किपलिंग ने इसवी  १८८७  से लेकर इसवी १८८९  तक काम किया।

अलाहाबाद का म्युजियम भारत के बेहतरीन म्युजियमों में से एक माना जाता है। यहाँ के लगभग १८ दालानों में कईं वस्तुओं को रखा गया है। इसवी १९४७

में भारत के पहले प्रधानमन्त्री ने इस म्युजियम का उद्घाटन किया। यहाँ पर संग्रहित हर एक वस्तु की अपनी एक विशेषता है। यहाँ का सबसे प्राचीन संग्रह है, सिन्धु संस्कृति का अस्त होने के कईं शतकों बाद किये गए उत्खनन (खोदाई) में प्राप्त हुई उस संस्कृति के बारे में जानकारी देनेवालीं कईं वस्तुएँ।

प्रयाग में गंगाजी, यमुनाजी और गुप्त रूप में रहनेवालीं, दिखायी न देनेवालीं सरस्वतीजी इन तीन नदियों का संगम होता है। साथ ही कला, क्रीडा, साहित्य, विज्ञान, तन्त्रज्ञान और देशप्रेम इनका भी एक अनोखा संगम हमें यहाँ दिखायी देता है।

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