कोची भाग-२

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कोची की यानि कि कोचीन की सरज़मीन पर सुव्यवस्थित रूप से अपने हाथ पैर फैलानेवाले पुर्तग़ालियों ने धीरे धीरे कोची की हुकूमत पर कब्ज़ा करना शुरू किया। वैसे कोची का राजवंश सत्ता की बाग़डोर सँभाल तो रहा था; लेकिन असल में सत्ता का सूत्र तो पुर्तग़ालियों के हाथ में था। कोची के शासकों के साथ बने रिश्ते को दोस्ती का नाम देकर पुर्तग़ालियों ने इसवीसन १५०३ से लेकर इसवीसन १६६३ तक कोची पर राज किया। इसवीसन १५१० तक कोची यह पुर्तग़ालियों की राजधानी थी। इसका अर्थ यह है कि पुर्तग़ालियों ने लगभग सौ सालों से भी अधिक समय तक कोची पर राज किया।

इसवी १६६३ के आसपास कोची में डचों का आगमन हुआ। इनके आने का उद्देश्य भी कोची के बंदरगाह से चलनेवाला मसालों का व्यापार यही था।

व्यापार करने आये डच भी सत्ता की लालसा से अछूते नहीं थे। कहते हैं कि कुछ विद्रोहियों ने कोची के शासक और साथ ही पुर्तग़ाली इनसे सत्ता हथियाने के लिए डचों से सहायता ली। अब डच कोची के शासक बन गये। उन्होंने भी कोची पर लगभग सौ साल तक शासन किया। कहा जाता है कि उनके कार्यकाल में एक बंदरगाह के रूप में कोची काफ़ी विकसित हुआ। केरल की इस भूमि पर कहीं भी नज़र डाली जाये, तो दिखायी देते हैं नारियल, नारियल के छिलके की रेशाओं से बनी रस्सियाँ और ताँबा। फिर मसालों के साथ साथ इनका भी व्यापार यहाँ से होने लगा।

१६वी सदी की शुरुआत से लेकर १८वी सदी तक पुर्तग़ाल और डच इन्होंने कोची पर शासन किया। इसके बाद कुछ वर्षों तक म्हैसूर के हैदरअली का यहाँ पर शासन रहा। उसने मलबार प्रांत पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। कोची के राजा को अब म्हैसूर के शासक को टैक्स और सालाना निर्धारित रक़म देना अनिवार्य हो गया।

फिर १९वी सदी के पूर्वार्ध में डच और अँग्रेज़ इनके बीच हुए एक सुलहनामे के अनुसार डचों ने किसी ‘बंका’ नामक टापू के बदले में कोचीन की यह ज़मीन अँग्रेज़ों के हवाले कर दी।

संक्षेप में १६वी सदी से लेकर भारत के आज़ाद हो जाने तक कोची पर विदेशियों का राज रहा है। कहा जाता है कि अँग्रेज़ भी १९वी सदी से पहले ही कोची में आये थे, लेकिन उनकी हुकूमत स्थापित हुई १९वी सदी के पूर्वार्ध में।

२०वी सदी के पूर्वार्ध में कोची से होनेवाले व्यापार में इतनी बढ़ोतरी हुई कि अब उसे सुसज्जित एवं विकसित करना ज़रूरी हो गया। इसी काम के लिए ‘रॉबर्ट ब्रिस्टोव्’ नामक एक इंजिनियर को कोची भेजा गया। ‘लॉर्ड विलिंग्डन’ नाम के मद्रास के गव्हर्नर के मार्गदर्शन में इस काम की शुरुआत हुई। कोची के इस विकासकार्य के पूरे हो जाने में २१ साल का व़क़्त लगा था।

अँग्रेज़ों के शासनकाल में कोची में कई परिवर्तन हुए। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन था, इसवीसन १८६६ में फोर्ट कोची को म्युनिसिपालटी में रूपांतरित करना।

अब फोर्ट कोची की बात चली ही है, तो आइए इस संदर्भ में थोड़ीबहुत जानकारी प्राप्त करते हैं। फोर्ट कोची यानि कि कल के और आज के भी कोची शहर का एक महत्त्वपूर्ण विभाग। दर असल इसके ‘फोर्ट’ इस नाम को सुनकर यह कोई क़िला होगा, ऐसा हमें प्रतीत हो सकता है और इस ‘फोर्ट’ नाम का संबंध पुर्तग़ालियों द्वारा कोची में बनाये गये फोर्ट के साथ है, ऐसा माना भी जाता है। कोची पर राज करनेवाले पुर्तग़ाली, डच और अँग्रेज़ इनकी स्थापत्यशैली का प्रभाव इस फोर्ट कोची विभाग की स्थापत्यशैली पर पड़ा हुआ साफ़ साफ़ दिखायी देता है।

फोर्ट कोची की इस जानकारी के बाद आइए फिर झाँकते हैं, कोची के इतिहास में।

अँग्रेज़ों के शासनकाल में कोची यह एक रियासत थी। १९४७ में भारत के आज़ाद हो जाने के बाद कोची रियासत भारतीय संघराज्य में शामिल हो गयी और १९५६ में केरल राज्य की स्थापना के बाद उसका समावेश केरल राज्य में किया गया।

कोचीन पर राज करनेवाले शासनकर्ताओं के वंश को ‘कोचीन राजवंश’ कहा जाता है। इसके कुछ अन्य नाम इस तरह हैं – ‘मदराज्यम्’, ‘गोश्रीराज्यम्’, ‘कुरुस्वरूपम्’। साथ ही इसका एक प्रमुख नाम ‘पेरुंपदपु स्वरूपम्’ यह भी है। यहाँ के राजा भी ‘गोश्रीभूपम्’, ‘कुरुभूमिभृत्’ इनजैसे विभिन्न नामों से जाने जाते थे।

इस राजवंश का इतिहास कईं लोककथाओं, आख्यायिकाओं द्वारा तथा ‘केरळमाहात्म्यम्’, ‘केरळोलपथी’, ‘पेरुंपदपु ग्रंथवारी’ इनजैसे साहित्य द्वारा ज्ञात होता है।

‘कुलशेखर’ नामक राजवंश के विभाजन द्वारा कोची का निर्माण हुआ, ऐसी एक राय है, यह हम गत लेख में पढ़ ही चुके हैं। ‘वीरकेरळ वर्मा’ नामक राजा कोची के प्रथम राजा माने जाते हैं। पुर्तग़ालियों के आगमन के बाद कोची का लिखित इतिहास प्राप्त होता है।

कोची पर कई राजाओं ने राज किया। लेकिन १६वी सदी के बाद के अधिकांश राजा केवल नामधारी ही थे, क्योंकि आज़ादी तक यहाँ पर किसी न किसी विदेशी का ही शासन रहा है।

दर असल कोचीन यह राज्य उस समय केवल आज के कोचीन/कोची शहर जितना ही सीमित नहीं था; उसमें त्रिचूर, पालक्कड, फोर्ट कोची, कनयन्नुर, एर्नाकुलम् इन ज़िलों का भी समावेश होता था यानि कि विस्तार की दृष्टि से कोचीन यह एक विशाल राज्य था।

आज भी एक बंदरगाह के रूप में कोचीन का महत्त्व अबाधित है। प्राकृतिक रूप से बने इस बंदरगाह को अँग्रेज़ों ने समय की माँग के अनुसार सुव्यवस्थित रूप से विकसित किया। आज भी कोची बंदरगाह की गरिमा को ‘क्वीन ऑफ अरेबियन सी’ कहकर नवाज़ा जाता है।

बंदरगाह होने के कारण पूरा कोची शहर समुद्री सतह पर ही बसा हुआ है। समुद्र के क़रीब होने के कारण यहाँ की हवा में नमीं और गरमी का अधिक होना यह स्वाभाविक ही है।

हमारे भारतवर्ष में मान्सून अपना पहला कदम रखता है, केरल की भूमि पर और हम सबको मान्सून के केरल में दाखिल होने का इंतज़ार रहता ही है। कोची में साल के लगभग १३२ दिन बरसाती माहौल के रहते हैं और इसकी वजह है, कोची की भौगोलिक स्थिति। मान्सून के साथ साथ अक्तूबर से लेकर दिसंबर तक भी यहाँ पर थोड़ीबहुत बारिश होती है।

यहाँ के समुद्र में तरह तरह की, विभिन्न आकार और रंगों की मछलियाँ पायी जाती हैं। इसलिए कोची शहर मत्स्याहारप्रेमियों को दावत देने के लिए हमेशा तैयार रहता है।

लेकिन मछलियाँ खाने से पहले उन्हें पकड़ना तो पड़ेगा ना! लेकिन आप शायद यह सोच रहे होंगे कि मछलियाँ पकड़ने में भला ऐसी कौनसी ख़ासियत है? और हम उन्हें कैसे पकड़ सकते हैं? मछलियाँ पकड़ना हमारे बस की बात न भी हो; लेकिन उन्हें पकड़ते हुए देखना तो हमारे लिए मुमक़िन है। लेकिन इसके लिए हमें फोर्ट कोची की ओर प्रस्थान करना होगा।

फोर्ट कोची से सटे किनारे पर यदि आप एक नज़र फेंर दें, तब भी आपको हवा के झोंकों पर लहराते हुए बड़े बड़े नेट्स् दिखायी देंगे। यही हैं, वे कोची के मशहूर ‘चायनीज फिशिंग नेट्स्’ (संक्षेप में मछलियाँ पकड़ने के चायनीज नेट्स्)।

आज ‘मेड इन चायना’ की मुहर लगी कईं चीज़ें हमें आसानी से मिल जाती हैं। लेकिन ये फिशिंग नेट्स् हैं १४वी सदी के। ये फिशिंग नेट्स् कोची तक कब, कैसे और क्यों आये? इन्हें यहाँ पर किसने बाँधा? ये सारे सवाल आज भी एक पहेली बने हुए हैं। कुछ लोग इस संदर्भ में किसी ‘झेंग ही’ नामक चीनी व्यक्ति का नाम लिया जाता हैं; लेकिन यह सिर्फ़ लोगों की कही सुनी बातें हैं, इस बारे में कोई पुख़्ता सबूत प्राप्त नहीं हुए हैं। अत एव इसमें तथ्यांश एवं सत्यांश कितना है, यह नहीं कहा जा सकता। १४वी या १५वी सदी में इन्हें यहाँ पर बाँधा गया, ऐसा कहा जाता है।

बातों बातों में इन फिशिंग नेट्स् के उस पार सूरज कब ढल गया, इसका पता भी नहीं चला। तो क्या हमें इन फिशिंग नेट्स् की ख़ासियत जाने बग़ैर ही आगे बढ़ना चाहिए? नहीं ना! तो ठीक है, आज यहीं पर रुक जाते हैं।

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