काशी भाग-८

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भारतवर्ष को ज्ञान का प्रकाश देनेवाली काशी प्राचीन समय से व्यापारियों की नगरी जानी जाती है। इसी कारण इस नगरी में हमेशा सम्पत्ति का भण्डार रहा है।

ऐसी इस समृद्ध नगरी में प्राचीन समय से मनुष्यों की बस्तियाँ बस रही हैं। इस समृद्ध नगरी में रहनेवालें मनुष्यों ने काशी में नृत्य और संगीत को विशेष स्थान प्रदान किया। इसीलिए काशीनगरी की नृत्य और संगीत के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान है।

मूलत: मनुष्य यह उत्सवप्रिय होता है । फिर  काशीजैसी समृद्ध नगरी इस बारे में भला पीछे कैसे रह सकती है? इन्हीं उत्सवों के माध्यम से भारतीय लोकसंगीत और लोकनृत्य समृद्ध होता रहा और काल की कसौटी पर खरा भी उतरा।

हमारे भारतवर्ष के त्यौहार-उत्सव और सृष्टि इनके बीच एक बहुत ही गहरा रिश्ता है।

काशी में भी प्राचीन समय से इस तरह के कईं उत्सवों का आयोजन किया जाता था और उनमें नृत्य-संगीत का विशेष स्थान था। व्यापारियों के धन के कारण नृत्य-संगीत की कला को एवं उन्हें पेश करनेवालें कलाकारों को काशी में आश्रय मिला। हालाँकि यह बात सच है कि काशी में रहनेवाले आम इन्सान का मनोरंजन नृत्य-संगीत की कला को पेश करनेवालें इन कलाकारों ने किया, लेकिन काशी में रहनेवालें और दूसरे स्थानों से यहाँ आनेवालें व्यापारियों का मनोरंजन करना यह उनका प्रमुख व्यवसाय था। उनके इस व्यवसाय का स्वरूप सुसंस्कृत समाजपद्धति से बहुत ही अलग था। काशी की गणिकाएँ उस समय बहुत मशहूर थीं। इस वर्णन से उनके व्यवसाय का स्वरूप आसानी से समझ में आ सकता है।

भगवान शिवजी की इस नगरी में ‘महाशिवरात्री’ का उत्सव ब़ड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

जब से काशी बसी है, तब से उसका साथ निभानेवालीं गंगाजी को काशी के लोग भला कैसे भूल सकते हैं? प्रतिवर्ष अक्तूबर-नवंबर इन महीनों में प्रबोधिनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। यह महोत्सव वाराणसी की सांस्कृतिक पहचान कराता है।

काशी से कुछ ही दूरी पर रहनेवाले सारनाथ में गौतमबुद्ध का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

काशी इस नाम में ही प्रकाश है और साल में एक बार काशी रोशनी से जगमगा उठती है। देवदीपावलि को काशी के घाट लाखों दीपकों से प्रकाशित हो जाते हैं। उपर फैला हुआ शान्त विशाल गगन, नीचे बहनेवालीं गंगाजी और घाटों पर उन लाखों दीपकों का प्रकाश। सोचिए, कितना सुन्दर वह दृश्य होगा!

श्रीरामचरितमानस के रचनाकार श्रीतुलसीदासजी का निवास उनके निर्वाण तक काशी में था। कहा जाता है कि श्रीतुलसीदासजी ने ही यहाँ रामलीला की शुरुआत की। रामलीला यह उत्तरप्रदेश का धार्मिक लोकनाट्य है। शहरों में और विशेष रूप से मुम्बई जैसे शहरों में रामलीला के बारे में हमें उसके प्रमुख प्रसंग अर्थात् दशहरे के दिन श्रीराम ने किया हुआ रावण का नाश इतनी ही जानकारी रहती है। लेकिन उत्तरप्रदेश में अश्‍विन शुद्ध प्रतिपदा से लेकर दशहरे के दिन तक रामलीला प्रस्तुत की जाती है।

श्रीराम का सम्पूर्ण चरित्र रामलीला के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र से आम इन्सान बोध प्राप्त करें और अपना जीवन उचित रूप से जीने का प्रयास करें यही प्रमुख उद्देश्य रामलीला के प्रस्तुतीकरण     में रहता है।

उत्तरप्रदेश के देहातों में प्रस्तुत की जानेवाली रामलीला साधारण रूप से इस तरह होती है – इस रामलीला के प्रस्तुतीकरण के समय कुछ लोग तुलसीदासजी के श्रीरामचरितमानस का पाठ करते हैं और कुछ लोग उसका विवरण करते हैं। उन्हें क्रमश: पाठक और धारक कहा जाता है। रामायण के कुछ प्रसंग रंगमंच पर प्रस्तुत किये जाते हैं। कुछ देहातों में रामायण के प्रसंग एक ही रंगमंच पर प्रस्तुत नहीं किये जाते, बल्कि उस उस प्रसंग के अनुरूप पार्श्‍वभूमि की रचना करके उन्हें प्रस्तुत किया जाता है। श्रीराम के वनवास जाने तक के प्रसंग मन्दिर में प्रस्तुत किये जाते हैं, वहीं श्रीराम के द्वारा गंगा नदी पार करने का प्रसंग गाँव की नदी या जलाशय के पास प्रस्तुत किया जाता है। इस तरह दर्शकों को वास्तववादी श्रीरामचरित्र दर्शाने का प्रयास किया जाता है।

तो फिर  इस रामलीला और काशी के बीच क्या सम्बन्ध है ? यह प्रश्‍न मन में उठना स्वाभाविक है।

काशी से कुछ ही दूरी पर स्थित रामनगरी की रामलीला बहुत ही मशहूर और दर्शनीय होती है। काशीनरेश का राजमहल इस रामनगर में ही है। रामनगर की रामलीला एक महीने से भी अधिक दिनों तक चलती है। इस रामलीला का सारा खर्च काशीनरेश उठाते हैं। यह रामलीला लगभग 7-8 मीलों के परिसर में प्रस्तुत की जाती है।

इस रामलीला के प्रस्तुतीकरण के लिए रामचरित्र के अयोध्या, शरयू, पंचवटी, लंका आदि स्थानों का निर्माण पहले से ही किया जाता है। जैसे जैसे रामकथा आगे बढ़ने लगती है, वैसे वैसे विभिन्न प्रसंगों को विभिन्न स्थानों पर प्रस्तुत किया जाता है और उन्हें देखने के लिए दर्शक उठकर वहाँ जाते हैं। रंगमंच की तीनों ओर दर्शक बैठते हैं। दर्शकों के पीछे उँचाई पर कथाकार और वादक बैठते हैं। कथाकार श्रीरामचरितमानस की चौपाइयाँ गाता है, मगर उस समय रंगमंच के कलाकार किसी भी प्रकार का अभिनय नहीं करते। कथाकार की चौपाइयाँ गाने के बाद कलाकार उन चौपाइयों के द्वारा अभिव्यक्त होनेवाला आशय उस गाँव की बोली में संवादरूप से प्रस्तुत करते हैं।

अर्थात् यह रामलीला केवल एक ही स्थान पर, रंगमंच पर प्रस्तुत नहीं की जाती, बल्कि सारा गाँव ही जैसे इस रामलीला का रंगमंच रहता है। इसी कारण श्रीराम के वनवास-गमन के प्रसंग को देखने के लिए सभी लोग उनके पीछे पीछे प्रस्तुतीकरण के स्थल पर जाते हैं। इस तरह प्रस्तुत की जानेवाली रामलीला यह भारत की एकमात्र विशेषतापूर्ण रामलीला है।

श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद उनकी भरतजी से हुई भेंट ‘नटी इमली’ इस स्थान पर प्रस्तुत की जाती है, जिसे ‘भरत-मिलाप’ कहा जाता है।

एक दिलचस्प बात यह है कि चेतगंज में नाककटय्या नाम से एक उत्सव मनाया जाता है। लक्ष्मणजी ने शूर्पणखा की नाक काटी थी, इस प्रसंग की स्मृति इस उत्सव के द्वारा जागृत की जाती है।

इन सब बातों के अलावा रामदूत हनुमानजी का जन्मोत्सव भी काशी में धूमधाम से मनाया जाता है। काशी के संकटमोचन मन्दिर में पाँच दिनों तक हनुमान जयन्ती का उत्सव मनाया जाता है।

हमने पहले ही देखा कि नृत्य और संगीत की कला को काशी ने बड़ी उदारता के साथ आश्रय दिया और आज भी काशी का नृत्य-संगीत को दिया हुआ आश्रय बरक़रार है। काशी के तुलसी घाट पर मार्च के महीने में पाँच दिनों के ‘ध्रुपद मेले’ का आयोजन किया जाता है। इन पाँच दिनों में पूरे भारतवर्ष से आनेवालें कलाकार अपनी ध्रुपद गायकी की कला रसिकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। आज ध्रुपद गायकी के साथ साथ अन्य संगीत को भी यहाँ प्रस्तुत किया जाता है।

काशी ने मनुष्यसमाज के ज्ञान के बल को बढ़ाया और साथ साथ काशी में रहनेवालें मनुष्यों के शारीरिक बल को भी।

काशी के युवाओं का शारीरिक बल बढ़ाने के उद्देश्य से काशी में पुराने समय से अखाड़ो की परम्परा चली आ रही है। कुश्ती और अखा़ड़ा इनका अटूट रिश्ता है। इसीलिए कुश्ती के क्षेत्र में भी काशी का नाम आज भी गर्व के साथ लिया जाता है।

काशीनगरी है ही ऐसी कि जिसके सन्दर्भ में कितना भी लिखा जाये तब भी वह अपूर्ण ही है। इसी काशी के अनगिनत अप्रकाशित पहलुओं को ज्येष्ठ विदुषी पुष्पाताई त्रिलोकेकरजी ने ‘प्रकाशनगरी काशी’ इस पुस्तक के द्वारा प्रकाशित किया है। जिस किसी को इस काशीनगरी ने लुभाया है, उसके मनमें इस पुस्तक के वाचन से काशीनगरी की साफ़ एवं सुस्पष्ट प्रतिमा निश्‍चित रूप से निर्माण होगी।

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