प्रधानमंत्री के हाथों नया संसद भवन राष्ट्र को समर्पित – लोकसभा अध्यक्ष के आसन के करीब ‘सेनगोल’ की हुई स्थापना

नई दिल्ली – ‘भारत गुलामी की मानसिकता छोड़कर अपना प्राचिन वैभव फिर से प्राप्त कर रहा हैं। सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने हमारा वैभव छिन लिगया गया था। हर देश के इतिहास में अलग ही चैतन्य निर्माण करने का एक समय आता रहता है। २१ वीं सदी के भारत के पास यह चैतन्य और आत्मविश्वास पहुंचा है। संसद भवन की यह नई वास्तू हमारे देश को एक नई ऊर्जा और बल प्रदान करेगी, ऐसा दृढ़ विश्वास प्रधानमंत्री ने व्यक्त किया। 

संसद भवनरविवार को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों संसद के नए भवन को राष्ट्र को समर्पित किया गया। साथ ही लोकसभा के अध्यक्ष के आसन के करीब प्रधानमंत्री के हाथों ‘सेनगोल’ (राजदंड) की स्थापना की गई। वेद मंत्रों का पठन कर विधि के अनुसार इसकी पूजा की गई। संसद का यह राजदंड हमें प्रेरणा देते रहेगा, ऐसा प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा।

‘भारतमाता जनतंत्र की जननी हैं। भारत का जनतंत्र सिर्फ शासन प्रणाली नहीं हैं। बल्की यह भारतीय संस्कृति का मूल हैं, भारत में हज़ारों वर्ष से शुरू परंपरा हैं। वेदों में भी हमें इसी तत्व की शिक्षा प्राप्त होती है। महाभारत में भी इसका ज़िक्र देखा जाता है। तमिलनाडू में सैकड़ों वर्ष पहले बरामद हुए शिला लेखों में भारत के जनतंत्र की व्यवस्था का हुआ ज़िक्र सभी को चौकाता है’, ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा। संसद भवन जनतंत्र का मंदिर हैं और संसद भवन की नई वास्तू भारत के निश्चय का संदेश विश्व को देगी, ऐसी गवाही प्रधानमंत्री ने दी।

‘जब भारत प्रगति करता है, उस समय पूरा विश्व प्रगति करता है। हमारे देश की हर एक सफलता विश्व के लिए मार्गदर्शक साबित होने से भारत की ज़िम्मेदारी काफी बढ़ती है। संसद भवन की नई वास्तू करोड़ों भारतीयों की आशा, आकांक्षा और सपनों का प्रतिक हैं। यह नई वास्तू गुलामी की मानसिकता दूर करके पहले का वैभव दुबारा प्राप्त करने की दिशा में बढ़ाया और एक कदम हैं’, ऐसा कहकर प्रधानमंत्री ने इसपर संतोष व्यक्त किया। 

देश को नए संसद भवन की आवश्यकता थी। क्यों कि, पूराना संसद भवन अपर्याप्त हो रहा था। वहां सुविधाओं की कमी थी ही साथ ही सासंसदों के लिए भी जगह कम पड़ रही थी। इस वजह से भविष्य के मद्देनज़र नए संसद भवन बनाने की मांग पिछले कई सालों से जोर पकड़ रही थी। यह समय की ज़रूरत थी, यह भी प्रधानमंत्री ने कहा। भारतीय स्वतंत्रता के अमृत महोत्सवी काल शुरू है। इस वजह से जनतंत्र का कार्यस्थल आधुनिक होना चाहिये, इसपर प्रधानमंत्री ने जोर दिया।

प्रधानमंत्री मोदी ने संसद की नई इमारत में सभापति के आसान के करीब ‘सेनगोल’ यानी राजदंड की स्थापना की गई। यह राजदंड ब्रिटिशों ने भारत को आज़ाद करते समय सत्ता का हस्तांतरण के प्रतिक के तौर पर उस समय के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को इसे सौप दिया था।

तब प्रधानमंत्री ने ‘सेनगोल’ का इतिहास भी छोटे शब्दों में बयान किया था। भारत के समृद्ध और सैकड़ों वर्ष राज करनेवाले चोल साम्राज्य के शुरूआती दौर में ‘सेनगोल’ यह सेवा और न्याय से राज चलाने के ध्येय का प्रतिक था। यह राजदंड हमें हमारे कार्य के लिए प्रेरणा देता रहेगा, यह विश्वास प्रधानमंत्री ने व्यक्त किया। भारत की स्वतंत्रता का अमृतकाल यानी अपनी विरासत की रक्षा करते समय विकास की नई उंची प्राप्त करने का समय हैं, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा।

इसी बीच, सेंट्रल विस्टा प्रकल्प के तहत नए संसद भवन का निर्माण किया गया। वर्ष २०१९ में प्रधानमंत्री मोदी ने इस परियोजना का ऐलान किया था। वर्ष २०२० के दिसंबर महीने में इस परियोजना की नींव प्रधानमंत्री के हाथों लगाई गई थी। वर्ष २०२१ में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ और ढ़ाई सालों में संसद के इस विशाल वास्तू का निर्माण हुआ हैं। कुल १३,५०० करोड़ रुपये लागत के सेंट्रल विस्टा प्रकल्पों में से करीबन १,२०० करोड़ रुपयों का खर्च संसद की इमारत पर हुआ है।

कुल ६४,५०० चौरस फिट क्षेत्र में यह नया भवन खड़ा हैं। इस वास्तू में लोकसभा के ८८८ और राज्यसभा के ३०० सदस्यों के बैठने की व्यवस्था हैं। साथ ही लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक होने पर इसके सभागृह में १,२८० सदस्य आसानी से बैठक सकते हैं। नए संसद भवन के निर्माण के लिए दिन-रात काम करने वाले ६० हज़ार कामगारों के योगदान बयान करनेवाले नए गैलरी सभागृह का निर्माण किया गया है। संसद भवन में श्रमिकों के योगदान की याद के तौर पर स्थायि गैलरी बनाने का यह पहला ही अवसर हैं।

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