हम मानवकेेंद्रित वैश्वीकरण चाहते हैं – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली – भारत वैश्वीकरण के बुनियादी सिद्धांत विरोधी नहीं है। उल्टा पूरा विश्व यानी परिवार होने की भारत की भूमिका है। लेकिन, भारत के साथ सभी विकासशील देशों को अभिप्रेत होने वाला वैश्वीकरण मौसम के बदलाव का संकट निर्माण करने वाला और अन्य देशों को कर्ज़े के फंदे में फंसाने वाला नहीं है। साथ ही टीके का असमान वितरण या वैश्वीक सप्लाइ चेन एक ही ठिकाने पर केंद्रित करनेवाली वैश्वीकरण की प्रक्रिया भारत की उम्मीद में नहीं। बल्कि सबको समृद्धी प्रदान करने वाला सभी के हितों का ध्यान रखनेवाला वैश्वीकरण भारत चाहता है। अधिक स्पष्ट तौर पर कहे तो मानवकेंद्रित वैश्वीकरण हम चाहते हैं, ऐसे सीधे शब्दों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्वीकरण को लेकर भारत की भूमिका रखी।

मानवकेेंद्रित वैश्वीकरण‘वॉईस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ के दूसरे और आखिरी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्वीकरण से भारत और अन्य विकासशील देशों की उम्मीदे सटीक शब्दों में पेश की। साथ ही वैश्वीकरण की मौजूदा प्रक्रिया की खामियों पर प्रधानमंत्री ने सटीकता से ध्यान आकर्षित किया। वैश्वीकरण की मौजूदा प्रक्रिया पश्चिमी देशों ने निर्माण की हुई व्यवस्था पर खड़ी हैं और इसमें विकासशील देशों को उचित स्थान नहीं दिया जाता, इस मुद्दे को प्रधानमंत्री ने सामने लाया। साथ ही वैश्वीकरण की मौजूदा प्रक्रिया पर्यावरण का संतुलन बनाए बिना बेताल विकास को गति प्रदान करता है, इसपर प्रधानमंत्री ने ध्यान आकर्षित किया। इसके साथ ही देशों को कर्ज़े के फंदे मे फंसाकर उनके नैसर्गिक साधन संपत्ति एवं स्रोतों की लूट करने दुष्प्रवृत्ति मौजूदा वैश्वीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनी है। विकासशील देश इसके शिकार बन रहे हैं, इसका अहसास प्रधानमंत्री ने अपने भाषण से कराया।

वैश्वीकरण के बुनियादी सिद्धांत का विरोध ना करने वाले भारत का वैश्वीकरण के नाम से हो रहे शोषण को विरोध है, यह प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया। लेकिन, वैश्वीकरण की यह प्रक्रिया में सुधार करके इसमें मानव केंद्रित बदलाव करने हैं तो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में ही बदलाव करने होंगे। खास तौर पर संयुक्त राष्ट्रसंघ और अन्य अहम अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भी सुधार करने होंगे, इसका अहसास प्रधानमंत्री मोदी ने कराया। खास तौर पर संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में काफी बड़े बदलाव होने चाहिये और इसमें २१ वीं सदी का प्रतिबिंब और ग्बोबल साउथ की आवाज़ शामिल होनी ही चाहिये, ऐसी मांग भारत के प्रधानमंत्री ने बड़े आग्रह से की।

पिछले तीन साल विश्व के लिए बड़ी कठिनाई से भरे थे। इस दौरान अनाज़, ईंधन और खाद की कीमतों का भारी उछाल हुआ था। इससे विकासशील देशों को भारी नुकसान पहुँचा। भू-राजनीतिक तनाव की वजह से निर्माण हुआ संकट और अस्थिरता और कितने समय तक बनाए रहेगा, यह कहना कठिन है, ऐसा कहकर मोदी ने विश्व के सामने खड़ा संकट का दौर अभी भी खत्म नहीं हुआ है, इसपर ध्यान आकर्षित किया। ऐसे कठिन समय में भारत विकासशील और गरीब देशों की हरतरह से सहायता करेगा और महामारी और नैसर्गिक आपदा के दौर में भारत इन देशों को दवाईयां और ज़रूरी वैद्यक सहायता प्रदान करेगा, यह ऐलान प्रधानमंत्री ने किया। स्वास्थ्य मित्रता योजना के तहत भारत यह सहायता प्रदान करेगा, ऐसा ऐलान भी प्रधानमंत्री ने घोषित किया।

इसके साथ ही भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में संपादित कुशलता का अन्य विकासशील देशों को लाभ दिलाने के लिए ‘सेंटर ऑफ एक्सलन्स’ का ऐलान भी प्रधानमंत्री ने इस दौरान किया। अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्र में भारत ने बड़ी छलांग लगाई हैं और इस क्षेत्र में भारत की प्रगति का लाभ सभीयों तक पहुँचाने के लिए ‘ग्लोबल साउथ सायन्स ॲण्ड टेक्नॉलॉजी इनिशिएटिव’ का ऐलान भी प्रधानमंत्री ने इस बीच किया। ‘ग्लोबल साउथ यंग डिप्लोमैटस्‌‍ फोरम’ के ज़रिये ग्लोबल साउथ की आवाज़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई दे, इसके लिए राजनीतिक स्तर पर कोशिश करने का प्रस्ताव भी भारत के प्रधानमंत्री ने पेश किया है।

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