अमरीका द्वारा भारत को ‘नाटो प्लस’ का प्रस्ताव

वॉशिंग्टन – ‘नाटो प्लस’ में भारत को शामिल करने की सिफारिश अमरिकी संसद की प्रभावशाली समिति ने की है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इस्रायल और दक्षिण कोरिया जैसे नाटो से सहयोग कर रही देशों की संगठन के तौर पर ‘नाटो प्लस’ की पहचान है। इसमें भारत का समावेश हुआ तो खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान की विशाल संभावना सच्चाई बनेगी और भारत को उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी विना देरी से उपलब्ध होगी, ऐसा अमरिकी संसद की समिति ने कहा है। इस समिति की सिफारिश यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमरीका दौरे की शुरू तैयारी होने के दावे किए जा रहे हैं।  

‘नाटो प्लस’चीन पर हुकूमत कर रही ‘चाइनिज कम्युनिस्ट पार्टी’ (सीसीपी) के विरोध में रणनीति बनाने के लिए अमरीका के ‘हाऊस सिलेक्ट कमिटी’ ने कुछ सिफारिश की हैं। काफी प्रभावशाली समझी जा रही इस समिति ने ‘नाटो प्लस’ में भारत का समावेश करने की सिफारिश की है। भारत ‘नाटो प्लस’ में शामिल हुआ तो इससे खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान में काफी बढ़ोतरी होगी, ऐसा इस समिति ने सूचित किया है। इसके साथ ही नाटो प्लस में समावेश होने से भारत के लिए उन्नत रक्षा प्रौद्योगि बड़ी आसानी से उपलब्ध करना भी मुमकिन होगा, ऐसा इस समिति ने स्पष्ट किया। इसी वजह से ताइवान को भारी मात्रा में सैन्य सहयोग प्रदान करने के साथ ही नाटो प्लस में भारत को शामिल करने पर हाऊस सिलेक्ट कमिटी ने विशेष जोर दिया है।

अमरीका के रक्षा मंत्री लॉईड ऑस्टिन जल्द ही भारत दौरे पर पहुंच रहे हैं। जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमरीका का दौरा करेंगे। उससे पहले हाऊस सिलेक्ट कमिटी ने नाटो प्लस में भारत को शामिल करने की सिफारिश करना ध्यान आकर्षित करता है। अमरीका ने इससे पहले भी भारत को नाटो में शामिल होने के लिए प्रस्ताव दिया था। लेकिन, किसी भी सैन्य संगठन में शामिल ना होने का रणनीतिक निर्णय भारत ने पहले ही किया है। शीतयुद्ध के दौर से भारत ने अपनी विदेश नीति का संतुलन बनाए रखकर महासत्ताओं के गुट का हिस्सा होना टाल दिया था। इससे भारत ने रशिया या अन्य किसी भी देश के साथ सैन्य सहयोग किया हो फिर भी सैन्य गुटों से भारत ने अपने आप को दूर रखा है।

लेकिन, चीन जैसे ताकतवर देश से भारत की सुरक्षा को चुनौती मिल रह हैं और ऐसे में भारत को अमरीका एवं नाटो की सहायता आवश्यक है, ऐसा बयान अमरिकी कुटनीतिक विभिन्न पद्धती से कर रहे हैं। खास तौर पर लद्दाख के गलवान संघर्ष के बाद चीन से भारत के लिए बना खतरा अधिक बढ़ने के दावे अमरिकी कुटनीतिक और सामरिक विश्लेषक लगातार कर रहे हैं। लेकिन, अमरीका से हथियार, गश्त विमान और रक्षा सामान की खरीद करने के लिए भारत ने उत्सुकता दिखाई है, फिर भी अमरीका के नेतृत्व वाले गुट में शामिल होने के लिए भारत तैयार नहीं।

गलवान संघर्ष के बाद भी भारत ने अपनी यही भूमिका कायम रखी हैं। साथ ही चीन से टकराने की क्षमता हम रखते हैं, यह संदेश भारत पूरे विश्व को दे रहा हैं। फिर भी भारत को अपने सैन्य गुट में खींचने के लिए शुरू अमरीका की कोशिश बंद नहीं हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमरीका दौरे से पहले हाऊस सिलेक्ट कमिटी’ द्वारा नाटो प्लस को लेकर भारत को दिया जा रहा यह प्रस्ताव यही दर्शा रहा हैं।

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