पॅरासेल्सस (१४९३-१५४१)

paracelsus.0‘बीमार व्यक्ति का मन यदि प्रसन्न होगा तो उसका शारिरीक उपचार अधिक परिणामकारक होता है।’

‘डॉक्टर को शरीर के उपचार के साथ-साथ पेशंट की मानसिक स्थिति का ध्यान भी रखना ज़रूरी है।’

आज २१ वी सदी में किसी भी मनोविशेषज्ञ के मुख से यह उद्गार बिलकुल आसानी से निकल सकता है। आज किसी असाध्य शारिरीक व्याधि का उपचार करते समय प्रत्यक्ष डॉक्टर की ओर से अथवा अस्पताल की ओर से ही पेशंट को मनोविशेषज्ञ से सलाह लेने को कहा जाता है। आज सर्वमान्यताप्राप्त हो चुकी इस बात को तीन-चार शताब्धी पूर्व के वैद्यक विशेषज्ञों को यह बात समझाना बहुत मुश्किल था। विशेष तौर पर नैसर्गिक जादुई बातों पर तथा प्राचीन विशेषतज्ञों की राय अर्थात ब्रह्मवाक्य माननेवाले युरोपीयन लोगों की यह बात समझना बहुत ही मुश्किल था।

मात्र आधुनिक वैद्यकों का तथा औषधियों की जानकारी रखने वाले ‘पॅरासेल्सस’ नामक इस शास्त्रज्ञ ने इस बात को साध्य करने की महिमा कर दिखाई। अ‍ॅरिस्टॉटल, हिपोक्रेट्स, गॅले इन तात्कालीन वैद्यकशास्त्र के श्रेष्ठ माने जाने वाले विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत किए गए सिद्धांतों को चौंका देनेवाला कार्य पॅरासेल्सस ने किया। केवल उनके सिद्धांत को झुठलाकर वे शांत नहीं रहे बल्कि एक नवीन उपचार पद्धति को भी जन्म किया।

स्वित्झर्लंड के झुरिक शहर के पास १४९३  में पॅरासेल्सस का जन्म हुआ था। पॅरासेल्सस का मूल नाम ‘फिलिपस थिओप्रेस्टस बॉम्बस्टस व्हॉन होहेन्हिम’ इतना लम्बा था। परन्तु उस समय के एक श्रेष्ठ शास्त्रज्ञ सेल्सस की अपेक्षा मैं कहीं अधिक श्रेष्ठ हूँ, इस भाव के साथ उन्होंने स्वयं ‘पॅरासेल्सस’ (सेल्सस की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ) नाम धारण कर लिया और आगे चलकर यही नाम रुढ़ हो गया।

प्राथमिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त करनेवाले पॅरासेल्सस ने अग्रीम शिक्षा हासिल करने के लिए उम्र के १६ वे वर्ष बैसल विश्‍वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त किया। बैसल में उन्होंने अल्केमी (रसायन), सर्जरी (शल्यचिकित्सा) एवं वैद्यकशास्त्र की शिक्षा हासिल की। उम्र के २२ वे वर्ष तक वैद्यक विशेतज्ञ प्युग्गर के पास पॅरासेल्सस ने शिक्षा हासिल की। इस दरमियान परलोकविद्या का अध्ययन आरंभ करने के कारण पॅरासेल्सस को शहर छोड़कर बाहर निकलना पड़ा।

शहर छोड़कर बाहर निकलने वाले पॅरासेल्सस ने यहाँ से वहाँ भटकते रहने वाला जीवन जीना शुरु किया। उस समय में उन्होंने जर्मनी, फ्रांस, हंगेरी, हॉलैंड, स्वीडन एवं रशिया इस प्रकार लगभग छ: देशों का प्रवास किया। आठ से दस वर्षों तक के भटकते रहने वाले जीवन के पश्‍चात्  उम्र के ३२ वे वर्ष में पॅरासेल्सस ने पुन: यूरोप में प्रवेश किया। इस भटकते रहने वाले समय के दौरान ही उन्होंने अपने संशोधन का आरंभ कर दिया था।

पॅरासेल्सस के समय में यूरोप में मुख्य तौर पर वनस्पतिजन्य औषधियों के उपयोग से रोगों का उपचार किया जाता था। इसके साथ ही तात्कालीन समाज में धर्म के नाम पर रोगियों को मंदिर में ले जाकर धर्मगुरु से भी झाड़-फूँक वाले उपाय करवाये जाते थे। पॅरासेल्ससने इस सभी बातों की आलोचना करते हुए नवीन पद्धति का अध्ययन आरंभ कर दिया।

धातु अथवा अधातु इनके संयोग के औषधोपचार करना यह पॅरासेल्सस के नवीन संधोधन का सूत्र था। इससे पारा, जस्त एवं अर्सेनिक जैसे धातुओं का क्षारण करने वाली पद्धति विकसित की और उसका उपयोग बीमारों पर उपचार के रुप में आरंभ किया। शरीर में किसी विशिष्ट घटक की कमी के कारण रोग निर्मान होता है। इसीलिए उस घटक को पूरा कर देने पर बीमारी दूर हो जाती है  यह बात पॅरासेल्ससने साबित कर दिखाई।

पुरानी अल्केमी एवं आधुनिक विज्ञान इन दोनों का मेल करने का यशस्वी प्रयत्न पॅरासेल्सस ने किया। सूक्ष्म मात्रा में दी गई औषधि एवं रोगी की मानसिक शक्ति योग्य प्रकार से एकत्रित आने पर रोग सहज ही ठीक हो सकता है, इस दृष्टिकोण को प्रस्थापित करने के लिए पॅरासेल्सस ने बहुत बड़ा कदम उठाया। तात्कालीन वैद्यकशास्त्र के नजरिये से देखा जाये तो ये दोनों बातें पूर्णत: भिन्न थीं। मात्र अपने पर होने वाली आलोचनाओं की परवाह किए बगैर पॅरासेल्सस ने साहसपूर्वक इन बातों को प्रस्तुत किया साथ ही उनका सफलतापूर्वक उपचार भी कर दिखाया।

पॅरासेल्ससने उस समय में दीर्घ संशोधन की सहायता से निकाला हुआ निष्कर्ष आज भी वैद्यकशास्त्र में मान्य किया जाता है। खानों में काम करने वाले मजदूरों में दिखाई देने वाला फेफड़ों का विकार, गले में होने वाले गाँठों की बीमारी उसी तरह गरमी (सिफिलिस) इन बीमारियों का विस्तृत विवरण उन्होंने करके रखा है, इसी वजह से उनके बाद वाले समय में इस पर उपचार ढूँढ़ना आसान हो गया।

विभिन्न धातुओं की औषधियों के गुणधर्म का अध्ययन, उनसे तैयार किए गए संयुग तथा उनके उपचारों के लिए यशस्वी पूर्वक किया गया उपयोग इससे ही ‘केमोथेरपी’ अर्थात रासायनिक औषधि उपचार पद्धति की नींव मज़बूत हो गई। इसी कारण तत्कालीन ही नहीं, बल्कि आधुनिक वैद्यकशास्त्र को भी पॅरासेल्सस का सहारा लेना पड़ा।

पॅरासेल्सस ने अपने आखिरी समय में शल्यचिकित्सा पर ‘द ग्रेट सर्जरी बुक’ नाम की पुस्तक प्रकाशित की। यह पुस्तक पॅरासेल्सस के वैद्यकशास्त्र के कारीगरी का शिखर माना जाता है। आधुनिक वैद्यकशास्त्र में नवीन संकल्पनाओं के आधार पर नये पर्व की शुरुआत करने वाले इस अद्वितीय संशोधन कर्ता की मृत्यु उम्र के अड़तालीसवें वर्ष ऑस्ट्रेलियाँ के एक शहर में रहस्यात्मक तरीके से हो गयी ।

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