दिमित्री मेंडेलीव्ह (१८३४-१९०७)

dmitreeमेरे बेटे को विज्ञान यह विषय बिलकुल पसंद नहीं था। वह पढ़ाई में जरा सी भी रुचि नहीं दिखाता था। परन्तु स्मरणशक्ति अच्छी होने के कारण रट्टा मारना उसके लिए बिलकुल आसान था। विज्ञान के प्रयोग एवं व्याख्या को रट लेटा था। पर समझ कर पढ़ने के नाम पर तोबा! विज्ञान में भी रसायनशास्त्र यह उसकी दृष्टि में जादू के प्रयोगों की जानकारी थी, बस और कुछ भी नहींथा।

कुछ ही दिन पहले उसके मुख से अचानक कुछ विचित्र अंग्रेजी शब्द और साथ ही कुछ अंक भी सुनायी देने लगे। पूछने पर उसने कहा- कुछ नहीं ‘मेंढ़ी का नाम एवं अंक’ हैं। आरंभ में उसकी बातें समझ में न आयी पर कुछ दिनों पश्‍चात् उसने ही मुझे समझाकर कहा, ‘यह मेंडेलीव्ह नामक एक रसायन शास्त्रज्ञ द्वारा खोज किये गये ‘पिरीऑडिक टेबल’ के मूलद्रव्यों के नाम एवं उन्हें दिये गये क्रमांक थे।

आधुनिक रसायनशास्त्र की नींव ड़ालने वाले संस्थापको में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त करने वाले दिमित्री मेंडेलीव्ह का जन्म ८ फरवरी १८३४ के दिन सैबेरिया के टॉब्लॉस्क नामक गाँव में हुआ था। उस समय में सैबेरिया बहुत ही पिछड़ा हुआ देश था। इसलिये शैक्षणिक सुविधाएँ वहाँ पर अधिक प्रमाण में उपलब्ध नहीं थी। प्राथमिक शिक्षा हासिल करते समय ही अचानक उनके पिता की मृत्यु हो जाने के कारण मेंडेलीव्ह ने अपनी माँ के साथ ग्लास फॅक्टरी में काम ढूँढ़ना आरंभ कर दिया।

ग्लास फॅक्टरी में भी आग लग जाने के कारण नुकसान होने पर दिमित्री मेंडेलीव्ह के साथ उनके पूरे परिवार को मॉस्कोमें स्थलांतरित होना पड़ा उस समय रसिया की वैज्ञानिक प्रगति कुछ विशेष नहीं थी। और जो कुछभी संशोधन के लिए मार्ग उपलब्ध थे वे सभी मुख्य शहरों में ही एकत्रित थे। इसीलिए मॉस्को में आने पर दिमित्री मेंडेलीव्ह ने अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा पूरी करने का निश्‍चय किया।

तीव्र स्मरणशक्ति एवं तेज़ बुद्धि का वरदान प्राप्त करने वाले दिमित्री ने महत्प्रयास करके सेंट पीटरबर्ग के ‘मेन इंस्टिट्यूट’ में प्रवेश प्राप्त कर लिया। वहाँ पर उन्हें रसिया के रसायनशास्त्र के पितामह माने जाने वाले अलेक्झेंड़र वोस्क्रेन्सकी के मार्गदर्शन में सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। अपने पहले ही प्रबंध के लिए ‘समरुपता’ विषय लेने वाले दिमित्री मेंडेलीव्ह डीग्री परीक्षा में प्रथम क्रमांक से पास हो गये।

आगे तत्काल संशोधन शुरु करने की इच्छा रखने वाले दिमित्री को उस समय क्षयरोग का सामना करना पड़ा इसलिए लगभग तीन वर्ष तक उन्हें संशोधन कार्य छोड़कर आराम करना ज़रूरी हो गया। इस दौरान वे मुख्यप्रवाह से कुछ दूर हो गये थे। इससे पुन: संशोधन शुरु करने पर दिमित्री मेंडेलीव्ह को कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ा। कुछ समय रसिया में संशोधन करने के पश्‍चात् दिमित्री मेंडेलीव्हने अपने संशोधन को नवीन दिशा प्रदान करने हेतु युरोपीय राष्ट्रों से मुलाकात करने का निश्‍चय किया। लगभग तीन वर्षों तक जर्मनी के हायड़ेलबर्ग विश्‍वविद्यालय में रहने के पश्‍चात् वे पुन: रसिया में आ गये। इस बीच के काल में दिमित्री मेंडेलीव्ह द्वारा रसायनशास्त्र संबंधित प्रसिद्ध किये जाने वाले विविध प्रबंधों के कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी थी।

पीटसबर्ग विश्‍वविद्यालय में एक प्राध्यापक का ओहदा प्राप्त करने के पश्‍चात् दिमित्री मेंडेलीव्ह ने अपने अथक परिश्रम के जोर पर उस विश्‍वविद्यालय का रुपांतर एक अंतराष्ट्रीय संशोधन संस्था के रुप में करने में सफलता प्राप्त कर ली। उनके उस कार्य का फायदा २० वी शताब्दी के रसियन शास्त्रज्ञों को बहुत बड़े प्रमाण में हुआ।

साधारणत: १८६५ के दौरान मेंडेलिव्हने रसायनशास्त्र के मूलद्रव्य, उनके वजन और इस धरातल पर उनका वर्गीकरण इस विषय पर संशोधन शुरु किया। स्टॅनिस्लॉव्ह कॅनिझारो इस संशोधक द्वारा सन् १८६० में प्रस्थापित किया गया ‘अणु का वस्तुमान’ इस सिद्धांत पर दिमित्री मेंडेलीव्ह ने अपना संशोधन शुरू किया। इसी काल में रसियन सरकार ने उन्हें ‘प्रिन्सिपल्स ऑफ केमिस्ट्री’ इस पुस्तक का काम सौंप दिया।

पुस्तक का काम करते समय ही दिमित्री मेंडेलीव्ह ने रसायनशास्त्र के मूलद्रव्यों के गुणधर्म के परस्पर संबंधों का गहराई से अध्ययन किया। इस अध्ययन के माध्यम से उन्होंने ‘सभी रासायनिक मूलद्रव्ये एक ही क्रमबद्ध प्रणाली के परस्पर संबंधित घटक है’ यह सिद्ध किया और उस समय में ज्ञात होने वाले सभी मूलद्रव्यों को उनके अणुभारानुसार चढ़ते क्रम के साथ प्रस्तुत किया। उसमें से ही दिमित्री मेंडेलीव्ह की आवर्त-तालिका (पिरीऑडिक टेबल) नामक कोष्टक स्वरूपी रचना का निर्माण हुआ।

दिमित्री मेंडेलीव्ह ने अपने इस संशोधन को ६ मार्च, १८६९  के दिन रसियन केमिकल सोसायटी के समक्ष प्रसिद्ध किया। उनके इस संशोधन से रसिया के ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी रसायनशास्त्रज्ञों में कमाल की खलबली मच गयी। इसका कारण यह है कि दिमित्री मेंडेलीव्ह ने उस पिरीऑडिक टेबल में कुछ स्थान बिलकुल खाली छोड़ दिया था। ‘यह खाली स्थान अपने आप ही अज्ञात रहने वाले मूलद्रव्यों से भर जायेंगे’ इस प्रकार का प्रयोजन भी उन्होंने कर रखा था।

अपने आगामी जीवन में दिमित्री मेंडेलीव्ह ने अपने शास्त्रीय ज्ञान का उपयोग लोकहित के लिये, सामाजिक हित के लिये इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया। उस समय में किसी शास्त्रज्ञ का इस प्रकार का विचार करना अथवा उसे अमल में लाने के लिये प्रयत्नरत रहना यह एक बहुत बड़ी घटना मानी जाती थी। रसिया के तात्कालीन कृषिक्षेत्र में उसी प्रकार पेट्रोलियम उद्योग में दिमित्री मेंडेलीव्ह ने अपने संशोधन का फायदा लोगों तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

रसायनशास्त्र के मूलभूत योगदान के लिए दिमित्री मेंडेलीव्ह को युरोप के सम्मानित ‘डेव्ही’ पदक के साथ-साथ अनेक मान-सम्मान प्राप्त हुए। लेकिन आधुनिक रसायनशास्त्र द्वारा किया गया उनका सबसे बड़ा बहुमान है- मनुष्य द्वारा खोज किये गये १०१  क्रमांक के मूलद्रव्य को ‘मेंडेलियम’ नाम प्रदान किया जाना। इस घटना से दिमित्री मेंडेलीव्ह का नाम दुनिया भर में अमर बन गया!

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