रेनकोटचा शोधक – चार्ल्स मॅकिन्टॉश

केरल में बारिश के आगमन की खबर आने के साथ ही मुंबई में भी बारिश के आने की खुशी का ज़ोरदार आगमन हो चुका होता है। यहाँ वहाँ रखी हुई छत्रियाँ, रेनकोट ढूँढ़कर निकालने का भी मौका नहीं मिल पाता है, निश्‍चिंत रहनेवाले मुंबईवासीय फिर दौड़ पड़ते हैं, दुकानों की भीड़भाड़ में और अचानक आनेवाली इस बरसात से अपनी सुरक्षा कर लेते हैं। लेकिन प्रतिवर्ष जोरदार आ धड़कनेवाली इस बरसात से हमारी सुरक्षा करनेवालीं इन छत्रियों तथा रेनकोटों के जनक कौन हैं, यह तो शायद ही कोई जानता होगा।

रेनकोटों के जनक

बारिश से स्वयं की सुरक्षा करने के लिए बड़ी ही खूबी के साथ प्लास्टिक के कपड़ों का उपयोग रेनकोट के लिए किया गया है। बारिश के पानी से अपने शरीर की सुरक्षा करने हेतु एवं बरसात की जोरदार बौछार से बचने हेतु अठारहवीं सदी में रेनकोट बनाने के लिए यदि किसी ने कोशिश शुरु की तो वे थे, ‘चार्ल्स मॅकिन्टॉश’।

सर्वप्रथम ग्लोसगो मर्चंट में चार्ल्स ने अपनी उम्र के १९वें वर्ष में काम करना आरंभ कर दिया। चार्ल्स के पिता उत्तम एवं अत्यन्त कुशल रंगरेज थे। परन्तु अपने पिता की इस कला को न अपनाते हुए चार्ल्स ने बचपन से ही रसायनशास्त्र, विज्ञान आदि विषयों पर अपना ध्यान केंद्रिय किया था। २० वर्ष के होते ही चार्ल्स ने ग्लासगो में एक प्रकल्प बनाकर उसी के अनुसार अमोनियम क्लोराईड एवं प्रशियन ब्लू डाय की निर्मिति करना आरंभ कर दिया। इसके पश्‍चात् कुछ ही दिनों में सीसा, अ‍ॅल्युमिनियम अ‍ॅसिटेट्स का संशोधन करके कपड़े डाय करने की (रंगने की) एक नयी पद्धति ब्रिटन में प्रचलित कर दी।

चार्ल्स ने अन्य कुछ चीज़ों की खोज़ की फिर भी वॉटरप्रूफ फॅब्रिक की खोज के कारण चार्ल्स मॅकिन्टॉश का नाम दुनिया भर में मशहूर हो गया। इसी कपड़े का उपयोग आगे चलकर रेनकोट बनाने के लिए किया गया। कोयले से प्राप्त होनेवाले ज्वलनशील तेल की सहायता से इंडियन रबर का रसायन तैयार करके, इस रसायन को कपड़े के दोनों स्तरों के मध्य में रखा गया। इस तरह से ऊपर एवं नीचे की ओर कपड़ा और इन दोनों के मध्यभाग में वह रसायन डालकर इसे सॅन्डविच की तरह तैयार किया गया।

इस सॅन्डविच को रगड़कर भली-भाँति एकत्रित किया गया। इस सॅन्डविच पर दबाव डालकर उसे भली-भाँति एकत्रित कर दिया गया। इससे हुआ यह कि इस कपड़े से पानी अंदर नहीं आ सकता था। इस प्रकार का यह एक नया संशोधन हुआ। इसमें एक अच्छी बात यह थी कि इस कपड़े में लचीलापन काफ़ी अधिक होने के कारण इसे जैसे चाहे वैसे मोडकर रखा जा सकता था। इस वाटरप्रुफ कपड़े से अब बारिश से सुरक्षित रहे जा सकनेवाले कपड़े तैयार किए गए और इस कपड़े को रेनकोट नाम प्रदान किया गया, जिसे बाजारों में काफ़ी बड़े पैमाने पर प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

दर असल सॅन्डविच यह विचार पहले भी पानी गिरने से अंदर से न भीग सकने वाले कन्टेनर्स बनाने के लिए किया गया था। लेकिन चार्ल्स द्वारा कपड़े बनाये जाने के लिए किया जानेवाला यह प्रयोग पहला ही साबित हुआ। इसके पश्‍चात् रेनकोट में काफी बदलाव आया और आज रेनकोट आवश्यक वस्तु होने के साथ साथ फैशन की दुनिया में भी इसने जोरदार एन्ट्री की है। आजकल बारिश के आते ही छत्री, रेनकोट की खरीदारी करना आकर्षण का केन्द्र बन गया है। पहले केवल काली छत्रियाँ एवं बगैर आकर्षक तरीके के किसी एक ही रंग के रेनकोट बनाये जाते हैं। परन्तु अब जमाना बदल गया है अब बाजारों में अनेक प्रकार कीं, नये-नये डिजाइनों वालीं छत्रियाँ तथा रंग-बिरंगी विविध प्रकार के आकर्षक रेनकोट भी आ गए हैं। लोग दुकानों में जैसे लोग डिजायनर ड्रेस खरीदते हैं, उतने ही लगाव के साथ रेनकोट एवं छाते खरीदते हुए नजर आते हैं और ग्राहकों के लिए भी उतने पर्याय उपलब्ध होते हैं यह भी ध्यान देने योग्य बात है।

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