पॉल म्युलर (१८९९-१९६५ )

प्रकृति में उत्पन्न होनेवाले जीवजंतुओं की शृंखला के अन्तर्गत आनेवाले सभी जीवजंतु अपनी-अपनी भूमिका भली-भाँती निभाते रहते हैं इसी कारण उन्हें मारना प्रकृति के खिलाफ  माना जाता है।

paul-muller- पॉल म्युलरमग़र कुछ जीवजंतुओं के कारण मनुष्य की तकलीफे बढ़ गई हैं। इसीलिए विभिन्न मार्गों का अवलंबन करते हुए इन जीवजंतुओं को नष्ट करने का समय आ गया है। बीसवी सदी के आरंभिक समय तक जीवजंतुओं को हाथों से मारना, पत्थर से कुचल देना, अथवा वे जीवजंतु पास न आये इसलिए तरह तरह के सुगंधित मिश्रणों का उपयोग करना आदि उपाय किए जाते थे। विभिन्न प्रकार के मिश्रणों की सहायता से कुछ औषधियाँ तैयार की गई थीं। लेकिन सभी प्रकार के जीवजंतुओं से होने वाली तकलीफों  को दूर किया जा सके इस प्रकार की औषधि उपलब्ध नहीं थी। बीसवी सदी में इस प्रकार के गुणकारी एवं ज़ालीम औषधियाँ प्राप्त करवाने का श्रेय ‘डी.डी.टी’ नामक औषधि का शोध लगाने वाले पॉल म्युलर नामक स्विस संशोधक को जाता हैं।

पॉल हर्मन म्युलर का जन्म बाहर जनवरी सन १८९९ में स्वित्झर्लंड के ओल्टन नाम के गाँव में हुआ था। पॉल के जन्म के पश्‍चात् म्युलर परिवार बॅसल में स्थलांतरित हो गया और पॉल की पढ़ाई वहीं पर पूरी हुई। बॅसल विश्‍वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करने से पूर्व ही पॉल ने ड्रायफस  कंपनी में प्रयोगशाला सहायक के रूप में काम करना आरंभ कर दिया था। इसी समय १९१७  में ‘लोंझा एजी’ नाम की इस कंपनी में सहायक रसायन-विशेषज्ञ के रूप में नौकरी करने लगे। इस कंपनी में काम करते हुए उन्हें प्राप्त अनुभवोंका आनेवाले समय में औद्योगिक क्षेत्र में रसायनतज्ञ के रूप में काम करते समय काफी फायदा  हुआ।

डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी हो जाने के पश्‍चात् पॉल ने आरंभिक समय में प्राकृतिक रंगों एवं खाल प्राप्त करने के संदर्भ में संशोधन कार्य आरंभ कर दिया। खाल प्राप्त करने हेतु लगने वाले सिंथेटिक एजंट्स, कपड़ों में लगने वाले दीमक से बचाने वाले रसायन पॉल ने ढूँढ़ निकाले। आरंभिक समय में ऐसे विविध प्रकार के रसायनों के शोध के पश्‍चात् पॉल ने अचानक अपनी दिशा बदलने का निश्‍चय किया।

उस समय फसलों  पर पड़ने वाले विविध रोगों से यूरोप एवं अन्य पाश्‍चिमात्य देश हैरान हो गए थे। इसी में मानवी रोग बढ़ने के कारण अनेक देशों में दुहेरी संकट सामने आये थे। अधिकतर विकसित राष्ट्रों ने खेती की रक्षा हो सके एवं मानवीय जीवन पर आनेवाले रोग आदि का संकट टल सके इसी दृष्टि से संशोधन कार्य को प्राधान्य देना आरंभ कर दिया था। पॉल म्युलर ने भी उन बदलावों पर गौर करते हुए कृत्रिम कीटनाशक औषधि की खोज करने का फैसला कर लिया।

लगभग १९३५ से पॉल ने अपना पूरा ध्यान कीटनाशक के संशोधन पर केंद्रित किया। कृत्रिम कीटनाशक तैयार करते समय एक साथ अनेक कीटकों का नाश कर सके और उसी के साथ फसलों  पर भी कोई परिणाम ना हो इन दोनों चीजों को ध्यान में रखते हुए पॉल ने संशोधन शुरू किया। अपनी शिक्षा पूर्ण करते समय पॉल को कुछ अलग प्रकार के रसायनों की जानकारी हासिल हुई थी। पॉल ने उन रसायनों के तय तक जाकर उनकी विस्तारपूर्वक जानकारी हासिल कर उन पर प्रयोग करना शुरु कर दिया।

प्रयोग करते समय पॉल को जर्मन रसायनतज्ञ ऑथमर झिडलर के द्वारा १८७४ में खोजे गये ‘ड्रायक्लोरोडिफ़ेनिल ट्रायक्लोरोथिन’ इस रसायन की जानकारी मिली। इस रसायन पर प्रयोग शुरु करने पर पॉल को कुछ आश्‍चर्यचकित कर देने वाले नतीज़े दिखायी दिए। उन नतीजों से प्रभावित होकर पॉल ने सनक में आकर अपना प्रयोगकार्य आरंभ कर दिया।

आखिरकार चार वर्षों तक लगातार प्रयोग करने के पश्‍चात् पॉल को अपेक्षित परिणाम प्राप्त हुआ। स्विस सरकार ने १९३९  के आरंभ में ‘पोटॅटो बिटल’ के विरुद्ध में ‘डी.डी.टी.’ का उपयोग किया। इस प्रयोग के काफी बड़े पैमाने पर यशस्वी हो जाने पर पॉल ने अग्रीम तीन-चार वर्षों में  ‘डी.डी.टी.’ के पेटंट्स प्राप्त कर लिए। डी.डी.टी. पर आधारित ‘गेसरॉल’ एवं ‘निओसाईड’ नामक कीटकनाशक १९४२  में बाजारों में उपलब्ध हो गए।

आरंभिक काल के उपयोग के पश्‍चात् डी.डी.टी. यह मच्छर (डंस) एवं अन्य प्रकार के विविध जंतुओं पर परिणामकारक होने के कारण मशहूर हो गया। द्वितीय महायुद्ध के समय में मलेरिया, टाइफस (टाइफाइड ) ज्वर जैसे रोगों के प्रसार को रोकने में ‘डी.डी.टी.’ रसायन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। यूरोप एवं उत्तर अमेरिका में मलेरिया का उच्चाटन करने में ‘डी.डी.टी.’ ने सफलता प्राप्त की। उस सफलता से प्रभावित होकर जागतिक स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया निर्मूलन के लिए काफी बड़े पैमाने पर ‘डी.डी.टी.’ का उपयोग किया। कुछ उष्ण कटिबंधीय देशों को छोड़कर वह काफी बड़े पैमाने पर सफल  हुआ।

कृषिक्षेत्र में क्रांति मचा देनेवाले ‘डी.डी.टी.’ के कालांतर में कुछ दुष्परिणाम भी सामने आये। इन  दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए कुछ देशों में ‘डी.डी.टी.’ पर निर्बंध लगा दिया। कुछ देशों में ‘डी.डी.टी.’ के स्वरूप को सौम्य करके उसका उपयोग किया जाता रहा।

बीसवी सदी में सही मायने में आधुनिक एवं प्रभावकारी कीटकनाशक साबित होने वाले ‘डी.डी.टी.’ की खोज के प्रति पॉल म्युलर को विविध प्रकार के जागतिक पुरस्कारों से गौरावान्वित किया गया।

आज इक्कीसवी सदी में रोगों का प्रतिकार कर सके इस प्रकार के बीज कृषि क्षेत्रों में दाखिल हो चुके हैं। इसी कारण फसलों  पर रोग का प्रभाव होने का प्रमाण अनेक गुना कम हो चुका है। परन्तु ये बीज महँगे होने के कारण अथवा सहज ही उपलब्ध न हो पाने के कारण छोटे-मोटे किसान कीटकनाशकों का वैसे भी काफी बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे हैं।

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