डॉ. डग्लस – संगणक क्षेत्र के क्रांतिकारी

आज के यांत्रिक युग में दुनिया काफी नज़दीक आ रही है। बढ़ते हुए संगणकीकरण से दुनिया का़फी आकुंचित हो चली है। इसी कारण हजारों किलोमीटर की दूरी पर की भी यंत्रसामग्री पर नियंत्रण बनाये रखना मनुष्य के लिए संभव हो सका है। अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर ही मनुष्य द्वारा बनाये गए संगणक का जाल निर्माण करने की महिमा साध्य करने से ही यह दुनिया काफी अधिक आकुंचित है। मनुष्य के इस यश में डॉ. डग्लस सी. एंजलब्राट का योगदान सर्वत्र महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

अमेरिका के ओरेगॉन राज्य में ३० जनवरी १९२५ के दिन जन्म लेनेवाले डग्लस ने ओरेगॉन युनिर्व्हसिटी से इंजिनिअरिंग की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्‍चात् १९५५ में उन्होंने बर्कले यूनिर्व्हसिटी से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इस दौरान डॉ. डग्लस ने सिग्मा फी एप्सिलॉन सोशल फ्राटर्निटी की सदस्यता प्राप्त की। पूरे विश्‍व में द्वितीय महायुद्ध भड़क उठा। इस कालावधि में डॉ. डग्लस ने फिलिपाईन्स के मोर्चे पर नौसेना के लिए रेडिओ टेक्निशियन की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी के सातह निभायी। वहाँ का भार संभालते हुए डॉ. डग्लस व्हॅनिअर बुश द्वारा लिखे गए ‘अ‍ॅस व्ही मे थिंक’ लेख से वे काफी प्रभावित हुए। महायुद्ध की समाप्ति के पश्‍चात् उन्होंने वर्कले यूनिर्व्हसिटी से अपना अध्ययन पुन: आरंभ कर दिया और १९५५ में उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त कर ली। डॉक्टरेट के लिए कोशिश जारी रहने के ही दरमियान डॉ. डग्लस अपने संशोधन कार्य में भी व्यस्त रहते थे। इस संशोधन के लिए अनेकों वर्ष व्यतीत करने पर भी उन्हें अपने इस कार्य में सफलता नहीं मिल रही थी। पर फिर भी उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी। बारिकी से डिजीटल यांत्रिक ज्ञान का उपयोग करते हुए अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रयत्न करते हुए वे हेविट क्रेन के संपर्क में आये। इन दोनों ने मिलकर स्टॅनफोर्ड संशोधन केंद्र हेतु चुंबकीय (मॅग्नेटिक) उपकरण विकसित करने के लिए अपनी कोशिश शुरु कर दीं।

डॉ. डग्लस

इसी दरमियान डॉ. डग्लस की संशोधन पद्धति पर एवं सिद्धांत पर भी आलोचनाएँ हुईं। परन्तु इन आलोचनाओं आदि को अनसुना करते हुए उन्होंने अपनी कोशिशों के बीच कोई भी रूकावटें नहीं आने दी। तिखी आलोचनाओं का सामना करते हुए भी डॉ. डग्लस का उत्साह और भी अधिक दुगुना होता गया। इसी दरमियान उन्होंने नये यांत्रिक ज्ञान को विकसित करने की कोशिशें और भी अधिक उत्साह से करना आरंभ कर दिया। इसी अनुषंग से उन्होंने प्रथम कदम उठाया, संगणक क्षेत्र में क्रांतिकारी संशोधन करने के लिए। संगणकों पर आधारभूत संशोधन करने के मार्ग पर डॉ. डग्लस आगे बढ़ते ही रहे। स्टेनफोर्ट रिसर्च संस्था के लिए काम करते हुए ही डॉ. डग्लस ने ऑगमेंटेशश रिसर्च सेंटर की स्थापना की। यहाँ पर डॉ. डग्लस तथा उनके सहकारी द्रुतगति के साथ कार्यरत रहे।

१९६० के दशक के मध्याह्न काल का वह समय। व्यक्तिगत संगणक उपयोग में लाने की शुरुआत होने के बहुत पहले का समय। १९६७ में डॉ. डग्लस ने संगणक क्षेत्र के विकासहेतु कारणीभूत होनेवाले मूलभूत संशोधन उन्होंने पूर्ण किए। संशोधन के इस पड़ाव पर डॉ. डग्लस ने ही सर्वप्रथम संगणक-जगत् को ‘माऊस’ की पहचान करवायी। लकड़ी का कवच और उसमें दो पहियों की जोड़ ऐसे स्वरूपवाले इस माऊस का पेटंट उन्हें १९७० में प्राप्त हुआ। लकड़ी के ठोके गए टोक से निकलनेवाली वायर चूहे की पूँछ के समान दिखाई देने के कारण ही इस ‘माऊस’ की संज्ञा दी गई थी। डॉ. डग्लस इनके समूह ने इस उपकरण को ‘ऑन स्क्रीन कर्सर’ अर्थात् ‘बग’ इस नाम से संबोधित किया था। लेकिन उनके द्वारा दी गई संज्ञा प्रचलित न हो सकी।

संगणक का उपयोग तेज़ी से होने लगा और माऊस की उपयोगिता सही मायने में सिद्ध हो गई। माऊस का पेटंट प्राप्त करने के पश्‍चात् भी डॉ. डग्लस का विशेष आर्थिक लाभ न हो सका। इसका कारण यह था कि उन्हें प्राप्त पेटंट की कालावधि १९८७ में पूर्ण हुई थी। उसके बाद ही दुनियाभर में व्यक्तिगत तौर पर संगणक के अर्थात् पी.सी. का उपयोग तेज़ी से किय जाने लगा।

इसी दौरान उनके एक साक्षात्कार में माऊस के पेटंट के विषय पर गौर किया गया। आरंभिक काल में स्टेनफोर्ड यूनिर्व्हसिटी ने माऊस के पेटंट के महत्त्व को नहीं जाना। इसके पश्‍चात् उन्होंने ‘अ‍ॅपल’ कंपनी को माऊस बनाने का अनुज्ञापत्र देने का निश्‍चय किया।

यह कार्य करने से पूर्व १९७५ के दौरान सहकारी एवं मित्र परिवार सहित उनकी गलतफहमी बेहद बढ़ गई। इससे निर्माण होनेवाले मनमुटाव के कारण उनके सहकर्मियों ने ‘झेरॉक्स’ कंपनी की ओर अपना रुख मोड़ लिया। इससे उत्पन्न होनेवाली विमनस्कता के बावजूद भी डॉ. डग्लस अपने तरीके से उडान भरते हुए आगे बढ़ते गए।

इतने बड़े आघात के बावजूद भी डॉ. डग्लस ने अपनी संशोधनात्मक वृत्ति की गाड़ी पटरी से उतरने नहीं दी। इसी दौरान उन्होंने क्लायंट और सर्व्हर प्रणाली से संगणक जगत की पहचान करवायी। व्यक्तिगत संगणक का उपयोग करने के लिए आग्रही रहने वले डॉ. डग्लस के इस संशोधन के कारण आरंभ में उन्हें विरोध दर्शाया गया। लेकिन १९८० के पश्‍चात् अनेक कंपनियों सहित व्यक्तिगत संगणक का उपयोग शुरु हो गया। इसी दौरान डॉ. डग्लस के संशोधन की उपयोगिता सिद्ध होने लगी थी। इसी संशोधन से कम्प्यूटर नेटवर्किंग की नींव डाली गई। दिसंबर १९९५ में आयोजित चौथी ‘डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू’ परिषद में डग्लस को ‘युरी रूबिन्स्की मेमोरियल अ‍ॅवॉर्ड’ देकर सम्मानित किया गया। इसके पश्‍चात् १९९७ में बिलकुल पाँच लाख डॉलर्स का सर्वोच्च ‘लेमसन-एमआयटी’ पुरस्कार हेतु डॉ. डग्लस का नाम घोषित किया गया। इसके पश्‍चात् अमरीका के तात्कालीन राष्ट्राध्यक्ष ने डॉ. डग्लस को राष्ट्रीय (मेडल/पदक) पुरस्कार देकर गौरवान्वित किया। इस दरमियान डॉ. डग्लस के संशोधन के बल पर ही जागतिक व्यवहारों को अधिक गति मिली। आज कम्प्यूटर नेटवर्क का जाल सर्वत्र फैल जाने के कारण ही संपूर्ण जगत् आज बिलकुल करीब आ गया है, यह हम अनुभव कर रहे हैं। स्वाभाविक है कि इसका श्रेय सर्वाथिक तौर पर डॉ. डग्लस को ही जाता है और इसी लिए उन पर पुरस्कारों एवं प्रशंसा का वर्षाव हुआ, जो सर्वथा उचित ही था।

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