रिचर्ड बिन्झेल

आँखों को चकाचौंध करनेवाली रोशनी और कानों के परदे फट जाएँ इतनी जोरदार आवाज़ से सारा परिसर गूँज उठा। लगभग ८०० कि.मी. के अंतर पर यह आवाज़ सुनाई दी। ३० जून सन् १९०८ के दिन आकाश से एक वस्तू पृथ्वी की दिशा में आकार सैबेरिया प्रदेश के तुंगस्का नदी के पास वाले जंगल में ज़ोर से गिर गयी।

रिचर्ड बिन्झेल

विस्फ़ोट के बाद का पीला सफ़ेद प्रकाश युरोप के बर्लिन, लंडन तक दिखाई दे रहा था। उस प्रकाश में समुद्र में दूरी पर रहनेवाले जहाज भी स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। स्फ़ोट के कारण कई टन धूल आकाश तक फ़ैल गई और इस धूल पर पड़नेवाले सूर्यकिरण के कारण दूर तक यह प्रकाश फ़ैल गया होगा, ऐसा मालूम पड़ रहा था। हम सबके सौभाग्य से तुंगस्का पर गिरी हुई वस्तु का आकार छोटा होने के कारण सारी पृथ्वी को इसके परिणाम का सामना नहीं करना पड़ा।

इस स्फ़ोट के बाद होनेवाले जागतिक महायुद्ध, रशिया की साम्यवाद की क्रांति ये सब शांत होने के बाद तुंगस्का स्फ़ोट का पता लगाने के लिए संशोधकों का दल सन् १९२७ में पहुँच गया। असंभव सा प्रतीत होने वाला का़फ़ी अंतर पैदल प्रवास करने के बाद वे वैज्ञानिक तुंगास्का पँहुचें। स्फ़ोट के कारण होनेवाले भयानक परिणाम इन लोगों को स्तब्ध करनेवाले थे। १२०० से १५०० वर्ग कि.मी. के क्षेत्र तक एक भी बड़ा वृक्ष नहीं बचा था। सभी वृक्ष कुछ ही क्षण में मिट्टी में मिल गए थे। हजारों रेनडिअर्स के अस्थिपंजर (कंकाल) यहाँ वहाँ बिखरे पड़े हुए दिखाई दे रहे थे। स्फ़ोट का प्रत्यक्ष अनुभव करनेवाले लोग उसका वर्णन कर रहे थे कि किस तरह वह वस्तु हवा में से फ़ेकी गई और किस तरह वे बेहोश हो गए। किंतु स्फ़ोट होनेवाले स्थान की ओर भागकर जानेवाले लोगों को स्फ़ोट के स्थान पर धूमकेतू या अशनी का कोई भी अवशेष नहीं मिला।

सन् १९८९ साल के बाद विदेशी संशोधकों को इस स्फ़ोट का निरीक्षण करने का मौका मिला। तुंगस्का जैसा प्रसंग सैंकड़ों वर्षों में एकाद बार हो सकता है। आकार में छोटा रहनेवाला धूमकेतू, छोटा अशनी जैसी कोई अज्ञात वस्तु सन् १९०८ वर्ष में पृथ्वी से टकराई होनी चाहिए, इस तरह के विभिन्न मत इस स्फ़ोट के बाद व्यक्त किए गए।

अशनी के आघात के कारण होनेवाले धोखे को ध्यान में रखते हुए प्रयत्न शुरु किए गए। भूगर्भ में होनेवाले परिवर्तन के कारण धरती के पृष्ठभाग पर झटके लगते हैं। इन झटकों को भूकंप कहा जाता है। भूकंप के झटकों की तीव्रता को मापने के लिए रिश्टर स्केल जैसे परिणाम निश्‍चित किए गए हैं। इसी प्रकार से अशनीं के आघात की तीव्रता बतानेवाला कोई परिणाम होना चाहिए ऐसा संशोधकों को लग रहा था। मॅसॅच्युसेटस् इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी के ‘अर्थ अ‍ॅटमॉस्फ़ीअर अ‍ॅँड प्लॅनेटरी सायन्स’ विभाग के रिचर्ड बिन्झेल नामक संशोधक ने अशनी के आघात के लिए एक परिणाम तैयार किया। सन् १९९५ में यह परिणाम संयुक्त राष्ट्रसंघटना के ‘निअर-अर्थ-ऑब्जेक्ट हॅसार्ड’ विभाग से प्रस्तुत कियागया। इसमें कुछ सुधारणा करने के बाद सन् १९९९ वर्ष में इटली के टुरिनो में आयोजित ‘इंटरनॅशनल कॉन्फ्रेंस ऑन निअर अर्थ ऑब्जेक्ट्स’ परिषद में यह परिमाण (स्केल) सादर किया गया। इस परिषद के द्वारा इस परिमाण को मान्यता मिलने के बाद ‘टेरिनो स्केल’ नाम से यह परिमाण सबको ज्ञात हुआ।

‘टोरिनो स्केल शून्य से दस आँकडों वाला है और वह अशनी के आघात की तीव्रता को दर्शाता है’ उसके आघात के परिणाम में अशनी के मार्ग के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन किया जाता है। पृथ्वी के नज़दीक की वस्तुओं का निरिक्षण करनेवाले संशोधकों के लिए टोरिनो स्केल यह एक संपर्क करने का माध्यम है।

टोरिनो स्केल में पाँच विभाग हैं –

१) सफ़ेद विभाग – जिस प्रसंग के परिणाम होने की शक्यता नहीं। आघात की शक्यता या संभावना न्यूनतम।
२) हरा विभाग – जिस प्रसंग पर स़िर्फ़ ध्यान रखना आवश्यक है।
३) पीला विभाग – चिन्ता जनक घटना। पृथ्वी से टकराने की शक्यता, स्थानीय स्तर। बड़े भूप्रदेश के विध्वंस होने की शक्यता।
४) केसरी विभाग – ड़रानेवाला प्रसंग स्थानीय स्तर। बड़े भूप्रदेश को विध्वंस कर सकनेवाली अशनी की पृथ्वी से टक्कर।
५) लाल (तांबड़ा) विभाग – निश्‍चित रूप से टक्कर।

सारे विश्‍व के वातावरण पर परिणामकारक बदलनेवाला विध्वंस। एक लाख वर्षों के बाद या दुर्मिल रूप से ही ऐसा प्रसंग उत्पन्न हो सकता है।

ऐसे एक अलग ही परिणाम के जनक संशोधक रिचर्ड (रिक) पी. बिनझेल ये मॅसॅच्युसेट्स इन्स्टिटयुट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी संस्था में प्राध्यापक थे। खगोल शास्त्र (ग्रहगोल) विषय का विज्ञान यह उनका विषय था। अमेरिकन अ‍ॅस्ट्रॉनॉमिकल सोसायटी द्वारा सन् १९९१ वर्ष में बिंझेल को एच. सी. ऊर्वे पुरस्कार देकर गौरान्वित किया गया। मॅसॅच्युसेट्स इन्स्टिटयुट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी में सन् १९९४ वर्ष में उन्हें उत्कृष्ट अध्यापन के लिए मॅक विकर फ़ॅकल्टी की फ़ेलोशीप दी गई।

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