नेताजी-७३

गाँधीजी की दांडीयात्रा से शुरू हुए सविनय क़ायदाभंग आन्दोलन में गाँधीजी के साथ सभी प्रमुख नेताओं को स्थानबद्ध किये जाने के कारण १९३० का काँग्रेस अधिवेशन नहीं हो सका।

१९३० के नवम्बर में इंग्लैंड़ के प्रधानमन्त्री रॅम्से मॅक्डोनाल्ड ने भारत के स्वराज्य के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए पहली ‘गोल मे़ज परिषद’ (‘राऊंड टेबल कॉन्फरन्स’) आयोजित की थी। जिस तरह गोल टेबल सभी दिशाओं में समान होता है और उसकी किसी विशिष्ट दिशा को अधिक महत्त्व नहीं रहता, उसी तरह ‘गोल मे़ज’ परिषदों में चर्चा करनेवालें दोनों अथवा सभी पक्ष एक समान स्तर से ही चर्चा करते हैं, फिर वहाँ किसी को भी कम या अधिक महत्त्व नहीं रहता। लेकिन उस दृष्टि से यह पहली ‘गोल मे़ज परिषद’ बस मह़ज नाम की ही ‘गोल मे़ज’ साबित हुई। क्योंकि भारत को स्वराज्य देने के बारे में चर्चा करने के लिए, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में जिसकी अहम भूमिका थी, उस काँग्रेस के प्रतिनिधियों को आमन्त्रित नहीं किया गया था। आमन्त्रित किया गया था, वह अँग्रे़जों की चाटुकारिता करने में सौभाग्य माननेवाले स्वाभिमानशून्य रियासतदारों को और ईश्वर ने ही अँग्रे़जों को भारत पर राज करने के लिए भेजा है ऐसा माननेवाले अमीऱजादों को। इसलिए उस परिषद का माहौल देखकर, काँग्रेस को ऩजरअन्दा़ज कर आयोजित की गयी यह ‘गोल मे़ज’ परिषद व्यर्थ है, यह मॅक्डोनाल्ड की समझ में आ चुका था। इसीलिए उन्होंने निरुद्देश्य एवं निष्फल साबित हुई इस परिषद को जनवरी में बरख़ास्त कर दिया। समारोप के भाषण में मॅक्डोनाल्ड ने ‘क़ायदाभंग आन्दोलन करनेवाले यदि एक कदम पीछे हटकर व्हाईसरॉय के साथ चर्चा शुरू करते हैं, तो अगली परिषद के लिए उन्हें भी आमन्त्रित किया जायेगा’ ऐसी सूचना की थी।

गाँधीजी की दांडीयात्रा१९३१ साल का ‘स्वतन्त्रता माँग दिवस’ – २६ जनवरी क़रीब आ रहा था। पिछले साल उसमें हिस्सा न ले सकने के कारण इस साल सुभाषबाबू भी इस दिन का बेसब्री से इन्त़जार कर रहे थे। वे इस दिन के लिए जोरदार तैयारी करने में जुट गये थे। एक दिन पहले देर रात तक कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग चल रही थी। सुभाषबाबू इस साल के कार्यक्रम में शामिल होनेवाले हैं इसकी ख़बर टेगार्ट को लगने के कारण वह भी अपनी चाल चल रहा था। पिछले सालभर ‘मेहनत करके’ उसने सुभाषबाबू के ख़िला़फ ढ़ेर सारे ‘सबूत’ इकट्ठा किये थे। सरकारी शस्त्रागार को लूटनेवाले सूर्यकुमार सेन हों या ज़ुल्मी पुलीस अ़फसर को मौत के घाट उतारनेवाले विनय बोस हों, सभी के श्रद्धास्थान सुभाषबाबू हैं यह बात तहकिकात में सामने आ गयी थी। इसीलिए कैसे भी करके सुभाषबाबू को मुझे अपने जाल में फँसाना ही है, इस उद्देश्य से वह घात में बैठा था। इस दृष्टि से २६ जनवरी का कार्यक्रम यह उसे अच्छा-ख़ासा अवसर प्रतीत हो रहा था।

उसने कार्यक्रम के मैदान के चारों ओर पुलीस का दिनरात पहरा रखा था। सुभाषबाबू इस कार्यक्रम में शामिल न हों, ऐसा सँदेश उसने एक दिन पहले अपने सहकर्मी के साथ भेजा था, जिसे सुभाषबाबू ने ‘मैं तुम्हारे साहब के हुक्म को नहीं मानता हूँ’ ऐसा मुँहतोड़ जवाब देकर ख़ाऱिज कर दिया था।

दूसरे दिन भोर के समय ही कई प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिऱफ़्तार किया गया। सुभाषबाबू के घर को भी पुलीस ने चारों ओर से घेर लिया था।

….लेकिन सुभाषबाबू घर में थे कहाँ! वे तो कबके घर से ग़ायब हो चुके थे।

वे कहाँ थे, इसे तो घरवाले भी नहीं जानते थे।

इस गिरफ़्तारी की पार्श्‍वभूमि पर सुभाषबाबू घर से लापता हो चुके हैं, यह समझते ही कोलकाता सहम गया। कहीं उनकी जान को तो कोई खतरा नहीं है, यह चिन्ता लोगों के मन को खाये जा रही थी। लेकिन यहाँ पर टेगार्ट भी बेचैन था। चप्पा चप्पा छान मारने के बावजूद भी सुभाषबाबू को पकड़ने में वह नाक़ामयाब हुआ था। आख़िर ग़ुस्से से उसने अपना ध्यान कार्यक्रम के मैदान पर केंद्रित करने की ठान ली। वक़्त आने पर उस कार्यक्रम में हिस्सा लेनेवालों को रौंद देने के लिए घुड़सवारों का एक दल भी उसने तैनात किया था।

कार्यक्रम का समय था, शाम के पाँच बजे। चार-साढ़ेचार बजे के आसपास यक़ायक टाऊन हॉल में से  ‘इन्किलाब झिंदाबाद’के नारों के साथ एक शोभायात्रा की शुरुआत हुई। शोभायात्रा के अग्रस्थान में स़फेद खादी की पोषाक़ पहनकर हाथ में तिरंगा झेण्डा लेकर कोलकाता के मेयर सुभाषबाबू नंगे पैर चल रहे थे। सुभाषबाबू को देखते ही लोगों में जोश उमड़ पड़ा और ह़जारों की संख्या में ‘इन्किलाब झिंदाबाद’ के नारों के साथ लोग शोभायात्रा में शामिल होने लगे। स़फेद साड़ियाँ पहनी हुईं चार-पाँच सौ महिलाओं का एक पथक भी ज्योतिर्मयी गांगुलीजी के नेतृत्व में हाथ में झण्डें लेकर शोभायात्रा में शामिल हुआ था। आसमान को छूनेवाले ‘इन्किलाब झिंदाबाद’ के नारों की आवा़ज से कान के परदे फट रहे थे।

शोभायात्रा के मैदान के पास आते ही टेगार्ट ने स्वयं आगे बढ़कर सुभाषबाबू के हाथ में मनाई-ऑर्डर थाम दी और शोभायात्रा को अब आप आगे नहीं ले जा सकते, ऐसा सुभाषबाबू से कहा। सुभाषबाबू ने उस ऑर्डर के काग़ज को फाड़कर फेंक दिया और वे आगे बढ़ने लगे। उसी समय टेगार्ट ने उसके पुलीसवालों को इशारा किया । पुलीस ने आगे बढ़कर शोभायात्रा को रोकने की कोशिश शुरू कर दी। एक पुलीसवाले ने सुभाषबाबू के हाथ से झंड़ा छीन लेने की कोशिश की। उसे सुभाषबाबू ने दूर धकेल दिया। फिर पुलीस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। शोभायात्रा में घोड़े घुसा दिये। पुलीस के हाथ के बेटन की मार से, साथ ही घोड़ों के पैरोंतले कुचले जाने से ज़ख्मी होकर लोग जमीन पर गिरने लगे। उनकी जगह उतने नये लोग लेने लगे।

इतने में सुभाषबाबू पर भी लाठीचार्ज शुरू कर दिया गया। उनके मुख से जयघोष शुरू ही था। लाठीचार्ज के कारण उनका शरीर खून से लतपत हो चुका था। पुलीस उनसे झण्डा छीन लेने की का़फी कोशिशें कर रही थी, लेकिन सुभाषबाबू के हाथ से वह झण्डा नहीं छूट रहा था। ज्योतिर्मयीदेवी ने पुलीस को रोकने की कोशिश करने पर उनपर भी लाठीचार्ज किया गया। उतने में टेगार्ट द्वारा सूचित किये जाने पर एक पुलीस ने सारी ताकत लगाकर सुभाषबाबू के सिर पर बॅटन से आघात किया। खून का फव्वारा उड़ा। थोड़ी ही देर में वे जमीन पर गिर गये। उस समय उनके कपड़ें का़फी फट चुके थे और सारा बदन खून से लतपत हो चुका था। दाहिने हाथ की हड्डियाँ टूट चुकी हैं, यह बात आगे चलकर एक्स-रे में दिखायी दी। का़फी खून बहने के कारण वे बेहोश हो गये।

उसी हालत में उन्हें लाल ब़जार चौकी में ले जाया गया और दूसरे दिन उसी हालत में न्यायालय में खड़ा कर दिया गया। उन्हें छः महीने की स़जा सुनायी गयी।

यह उनका छठा कारावास था।

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