नेताजी-६३

सन १९२८ के कोलकाता काँग्रेस के मंडप में ही संचालित किये गये युवक काँग्रेस के अधिवेशन में सुभाषबाबू द्वारा की गयी स्पष्टोक्ति की गूँज कई दिनों तक फ़ैली हुई थी। हालाँकि इस स्पष्टोक्ती से अरविंदबाबू तथा गांधीजी के समर्थक बहुत ही नारा़ज हो गये थे, लेकिन सुभाषबाबू का विरोध उन व्यक्तियों को नहीं, बल्कि मह़ज उन विचारप्रणालियों को था। जब तक सारी दुनिया एकत्रित होकर अहिंसा की कसम न खा ले और खायी हुई कसम को न निभाये, तब तक एकतऱफ़ा अहिंसा के मार्ग पर चलने से कुछ हासिल नहीं होगा, ऐसा सुभाषबाबू मनःपूर्वक मानते थे; और आख़िर अन्तरात्मा की आवा़ज को ही सुनना और उसे ही प्रतिपादित करना यह सुभाषबाबू का स्वभाव होने के कारण उससे किसी को क्या लगेगा, इसकी परवाह उन्होंने कभी नहीं की।

Netaji_Subhash

युवक काँग्रेस के बाद हुई सर्वधर्मीय परिषद। मोतीलालजी द्वारा बनायी गयी ‘नेहरू रिपोर्ट’ पर उस परिषद में चर्चा हुई। उसमें ‘संबंधित धर्म की लोकसंख्या के अनुपात में संयुक्त आरक्षित चुनावक्षेत्र या धर्म पर आधारित विभक्त आरक्षित चुनावक्षेत्र’ यह अहम मुद्दा था। मुस्लिम लीग विभक्त आरक्षित चुनावक्षेत्र के मामले में आग्रही थी और उन्होंने चौदा नये अनुच्छेद इस रिपोर्ट में अन्तर्भूत कराने के लिए प्रस्तुत किये। लेकिन परिषद के लिए उपस्थित अन्य सदस्यों की राय में ये अनुच्छेद रिपोर्ट की धर्मनिरपेक्षता भूमिका के साथ मेल नहीं खा रहे थे। अपनी माँग को लगभग सभी सदस्यों से हो रहा विरोध देखकर मुस्लिम लीग के सदस्यों ने ‘नेहरू रिपोर्ट’ को नामंज़ूर करते हुए सभात्याग किया।

अब सभी के मन में उत्सुकता थी – काँग्रेस अधिवेशन की। अब तक कभी नहीं उपस्थित रहे इतने प्रतिनिधि इस अधिवेशन के लिए पधारे हुए थे। मुस्लिम लीग ने ‘नेहरू रिपोर्ट’ को नामंज़ूर कर दिया था और इसीलिए, क्या कम से कम इस अधिवेशन में तो वह पास होगी या नहीं, इसी विषय पर सर्वत्र चर्चा चल रही थी। सुभाषबाबू इस अधिवेशन की तैयारी के लिए दिनरात मेहनत कर रहे थे। शरदबाबू ने, अब सभी भाइयों की गृहस्थी का विस्तार होते रहने के कारण अपने एल्गिन रोड के घर के पास ही वुडबर्न पार्क में हाल ही में बड़ी तीन-मंज़िला हवेली खरीद ली थी और वे सुभाषबाबू के साथ वहीं रहने आ चुके थे। जवाहरलालजी भी वहीं पर डेरा डाले हुए थे। अधिवेशन की तैयारी के सिलसिले में सुभाषबाबू हमेशा कार्यकर्ताओं से घिरे हुए रहते थे। युवक काँग्रेस अधिवेशन में उपस्थित रहने आये जगह जगह के प्रतिनिधि, काँग्रेस प्रतिनिधि इनकी चहल-पहल के कारण वह घर लगभग सार्वजनिक ही बन चुका था। हररो़ज भोर तक मीटिंग्ज चलती थीं। साथ ही सुभाषबाबू ने अध्यक्ष के स्वागत के लिए एक अनोखे कार्यक्रम का नियोजन किया था – स्वयंसेवक दल के युवा सदस्यों की फ़ौजी यूनिफॉर्म पहनकर परेड! अपने युवा सदस्य सैनिक ही प्रतीत होने चाहिए, उनके जीवन में फ़ौजी अनुशासन और समय की पाबन्दी रहनी ही चाहिए, ऐसा सुभाषबाबू का मत था। फ़ौजी यूनिफॉर्म पहनते ही रग रग में एक अनोखा ही उत्साह उमड़ने लगता है, यह उन्होंने कॉलेज के फ़ौजी प्रशिक्षण के समय महसूस किया था। इसीलिए सेना की तरह ही इस दल के गुट बनाकर पार्क सर्कस मैदान में हररो़ज शाम को परेड का अभ्यास शुरू कर दिया। स्वयं सुभाषबाबू ‘जनरल-ऑफ़िसर-कमांडिंग’ (जीओसी) के रूप में परेड की अगुआई करनेवाले थे। सुभाषबाबू के भविष्य के स़फ़र का मानो एक छोटा सा दर्शन ही इस अवसर पर लोगों को होनेवाला था।

अर्थात् युवाओं के जीवन में फ़ौजी अनुशासन बना रहे, इस हेतु से सुभाषबाबू द्वारा किये जा रहे इन क्रियाकलापों का उपहास कोलकाता के ‘अँग्लो-इंडियन’ अख़बारों ने किया था और ‘मह़ज फ़ौजी यूनिफॉर्म पहनने से क्या कोई सैनिक बन जाता है?’ यह तानेबा़जी भी की थी। कोलकाता का पोलीस कमिशनर टेगार्ट भी इस अधिवेशन पर और विशेषतः सुभाषबाबू की गतिविधियों पर बारीक़ी से ऩजर रखे हुए था। सुभाषबाबू के सालभर के कार्य की रिपोर्ट गृहखाते के पास जाने के कारण वरिष्ठों द्वारा टेगार्ट को खरी खरी सुनायी गयी थी। इसी कारण, पिछले वर्ष सुभाषबाबू को आसन्नमरण स्थिति में देखकर उनकी जेल में से मुक्तता करने का का़फ़ी पछतावा उसे हो रहा था और वह सुभाषबाबू को फ़िर से फ़ॅसाने का अवसर ढूँढ़ रहा था। सुभाषबाबू के घर जिसे आने-जाने के लिए कोई पाबन्दी नहीं थी, ऐसे उनके एक दूर के रिश्तेदार को छोटी-मोटी बक्षिशी देकर अन्दरूनी ख़बरें देने के लिए अपने वश में करने में टेगार्ट कामयाब रहा था। इस ‘बहादुरी’ के कारण हालाँकि वह अपने आप से खुश था, मग़र इस अधिवेशन के उपलक्ष्य में काँग्रेस प्रतिनिधियों के रूप में ‘युगांतर’ तथा ‘अनुशीलन समिति’ के सदस्य ह़जारों की तादाद में शहर में घुस चुके हैं, इस ‘खबर’ के मिलने से वह का़फ़ी बेचैन था।

अधिवेशन शुरू हुआ। अध्यक्ष मोतीलालजी की कई घोड़ों के साथ जुड़े हुए रथ में से विशाल शोभायात्रा निकाली गयी। ह़जारों युवाओं से भरी उस शोभायात्रा में सबसे आगे फ़ौजी यूनिफॉर्म पहने हुए दो-एक ह़जार युवक-युवतियों के दल के गुट अनुशासनपूर्वक कदमताल कर रहे थे….और इस फ़ौजी संचलन की अगुआई कर रहे थे – घोड़े पर कड़क फ़ौजी पोशाक़ पहनकर बैठे हुए फ़ुर्तीले सुभाषबाबू! उन्हें देखकर सभी की आँखें तृप्तता महसूस कर रही थीं।

समय के पाबन्द रहने को सर्वोच्च महत्त्व देनेवाले गाँधीजी हमेशा की तरह सही वक़्त पर प्रवेशद्वार के पास आकर खड़े थे और अब तक शोभायात्रा के न पहुँचने के कारण वे बेचैन थे। उन्हें यह फ़ौजी मामला रास नहीं आया था। समय की पाबन्दी को जीवन में उतारने के लिए फ़ौजी यूनिफॉर्म की क्या आवश्यकता है, यह प्रश्न उनके चेहरे पर सा़फ़ सा़फ़ दिखायी दे रहा था। सुभाषबाबू के वहाँ पहुँचने पर गाँधीजी ने हँसते हँसते उनसे यह कहा भी।

कार्यकारिणी की मीटिंग की अब शुरुआत होनेवाली थी। दूसरे दिन खुला अधिवेशन था। भारतमंत्री बर्कनहेड की कही बात कहीं सच न साबित हो जाये, इस उद्देश्य से विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों की कई मीटिंग्ज होकर, सर्वमान्य मुद्दों का उसमें समावेश कर कड़ी मेहनत के साथ ‘नेहरू रिपोर्ट’ तैयार की गयी थी। उसका इस अधिवेशन में पारित होना जरूरी था।

लेकिन अधिवेशन के लिए उपस्थित युवकों तथा युवानेताओं का नूर देखकर गाँधीजी और मोतीलालजी के चेहरे पर की फ़ीक्र सा़फ़ सा़फ़ दिखायी दे रही थी।

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