‘कैलास मानसरोवर लिंक रोड़’ का नेपाल में हो रहा है विरोध – नेपाल ने भारतीय राजदूत को थमाया समन्स

काठमांडू, (वृत्तसंस्था) – भारत ने उत्तराखंड़ से चीन की सीमा तक निर्माण किए हुए नये ‘कैलास मानसरोवर लिंक रोड़’ की गुंज़ नेपाल में सुनाई दे रही है। शनिवार के दिन नेपाली जनता ने, भारत के इस निर्णय का भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शन करके विरोध किया। इस दौरान सोमवार को नेपाल के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में नेपालस्थित भारतीय दूतावास को समन्स भी थमाया। इसी दौरान नेपाल ने लिपुलेख की सीमा पर सेना की तैनाती करने का निर्णय किया है।

शुक्रवार के दिन भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने वीडियो कान्फरन्सिंग के ज़रिये ‘कैलास मानसरोवर लिंक रोड़’ का उद्घाटन किया था। इसके कुछ ही घंटे बाद, नेपाल ने इस मार्ग के उद्घाटन पर आपत्ति जताई। यह आपत्ति दर्ज़ करते समय नेपाल की सरकार ने १८१६ में हुए सुगौली समझौते का दाखिला दिया है। इस समझौते के अनुसार यह रास्ता हमारी सीमा में बना है और उसपर भारत सरकार ने किया यह काम यानी अतिक्रमण है। सीमा समस्या का चर्चा के माध्यम से हल निकालने में यह अड़ंगा बन सकता हैं, यह निवेदन भी नेपाल ने किया है।

भारत ने तैयार किए इस नये मार्ग की गुंज़ नेपाल की संसद में सुनाई दी। नेपाल के विपक्षी नेताओं ने इस मुद्दे पर नेपाल सरकार से सवाल किया। रविवार के दिन भारत सरकार की इस कृति का निषेध करने के लिए काठमांडू में भारतीय दूतावास के सामने अलग अलग सियासी दलों के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किए। इन सभी प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया है। सोमवार को नेपाल के विदेशमंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने नेपाल में भारत के राजदूत वियन मोहन क्वात्रा से इस मुद्दे पर बातचीत की। इस बैठक में नेपाल के विदेशमंत्री ने सीमा मसले पर नेपाल की भूमिका रखी और एक निवेदन भी प्रस्तुत किया।

नेपाल ने जताई हुईं आपत्तियों का भारत ने पहले ही ज़वाब दिया है। पिठोरागड़ ज़िले में बनाया गया यह रास्ता पूरी तरह से भारतीय सीमा में ही है और पुराने रास्ते पर ही इस रास्ते का निर्माण किया गया हैं। इस वजह से नेपाल ने जताईं आपत्तियाँ गलत हैं, ऐसा भारत ने कहा हैं।

यह रास्ता कालापानी नदी के जिस हिस्से से गुज़रता है, वह क्षेत्र अपना है, यह कहते हुए हालाँकि नेपाल भारत का विरोध कर रहा है, फिर भी इस विरोध के पीछे चीन है, यह अंदाज़ा विश्‍लेषक जता रहे हैं। क्योंकि नेपाल में फिलहाल चीनसमर्थक कम्युनिस्ट दल की सरकार बनी हैं। यह लिपुलेख-धारचूला मार्ग कैलास-मानसरोवर की यात्रा सुगम करनेवाला है ही; लेकिन इसके अलावा यह मार्ग चीन सीमा से भी नज़दीक है। इस वज़ह से इस मार्ग की सामरिक अहमियत भी है। चीन सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों तक रसद पहुँचाना भी इस रास्ते से और भी आसान होगा। इस कारण, चीन ही नेपाल को इस रास्ते का विरोध करने के लिए उकसा रहा है, ऐसा विश्‍लेषकों का मानना है।

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