विदेशी निवेश के लिए राज्यों ने किये श्रम कानून में सुधार

नई दिल्ली, (वृत्तसंस्था) – उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश इन राज्यों ने श्रम कानून में सुधार किये हैं। इस बदलाव के साथ, अब काम का समय आठ से बारह घंटे करने के लिए अनुमति प्राप्त हुई होकर, कर्नाटक एवं असम की सरकारें भी इसी तरह के बदलाव करने के संकेत दे रहीं हैं। राज्यों ने श्रम कानून में किए इन बदलावों को, निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिशों के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है। चीन से बाहर निकलने की तैयारी दिखा रहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर नज़र रखकर ये राज्य श्रम कानून में सुधार कर रहें हैं, ऐसा विश्‍लेषकों का कहना है। साथ ही, अगले कुछ दिनों में कुछ अन्य राज्य भी, इन राज्यों की राह पर आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाएँगे, यह दावा भी विश्‍लेषक कर रहें हैं।

शुक्रवार के दिन उत्तर प्रदेश की मंत्रिमंडल ने ‘उत्तर प्रदेश टेम्पररी एक्ज़ेम्पशन फ्रॉम सर्टन लेबर लॉ ऑर्ड़ीनन्स २०२०’ का प्रस्ताव पारित किया है। कान्ट्रैक्ट के श्रमिकों को काम से हटाना; काम के दौरान यदि दुर्घटना का शिकार होते हैं, तो हर्ज़ाना; और समय पर वेतन इन तीन मुद्दों के संदर्भ के क़ानून; साथ ही, महिला एवं बाल कामगार कानून को छोड़कर अन्य संबंधित कानूनों में सहूलियत प्रदान की गई हैं। श्रमिक संगठन, काम की स्थिति, काम से संबंधित विवाद और अन्य मुद्दों से जुड़े श्रम कानून तीन वर्ष के लिए स्थगित करने का निर्णय किया गया हैं।

साथ ही, काम की ड्युटी अधिक से अधिक ८ घंटे से बढ़ाकर १२ घंटे करने के लिए अनुमति प्राप्त हुई है। लेकिन, जो कोई कर्मचारी आठ घंटे से अधिक काम करने के लिए तैयार हैं, उन्हीं से अधिक समय तक काम किया जायेगा, ऐसा उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है। थोड़ेबहुत फ़र्क़ से गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश इन राज्यों ने भी इसी प्रकार का निर्णय किया है। मध्य प्रदेश की राज्य सरकार ने, यदि श्रमिक तैयार होंगे, तो हफ्ते में ‘ओव्हरटाईम’ के साथ ७२ घंटे काम करने की अनुमति प्रदान की है। साथ ही, उत्पादकता बढ़ाने के लिए शिफ्ट में बदलाव करने की भी कारखानों के लिए अनुमति रहेगी।

कोरोना वायरस के कारण मजबूरन् किए गए लॉकडाउन की वज़ह से अर्थव्यवस्था और निवेश पर बड़ा असर हुआ है। इस कारण, अर्थव्यवस्था और निवेश को बढ़ावा देने के लिए ये राज्य श्रम कानून में अधिक सुधार कर रहें हैं, यह कहा जा रहा है। वर्तमान की स्थिति देखें, तो उद्योगों और व्यापारियों से भी ऐसी ही माँग हो रही थी। लेकिन, राज्यों का ध्यान चीन से बाहर निकलकर अन्य देशों में अपने कारखाने लगाने की तैयारी में होनेवाली कंपनियों के निवेश पर होने का दावा किया जा रहा है। अपने कारखाने स्थापित करने के लिए इच्छुक कंपनियों के लिए गुजरात ने ३३ हज़ार हेक्टर ज़मीन का प्रावधान कर रखा है।

चीन से बाहर निकलने की तैयारी में होनेवाली हज़ारों कंपनियाँ सरकार के साथ चर्चा कर रहीं हैं, ऐसी खबरें भी प्राप्त हुईं थीं। साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी ने भी, ये कंपनियाँ चीन छोड़ रहीं हैं, ऐसा अवसर हाथ से छुटें नहीं, इसके लिए सभी राज्यों को तैयार रहने का निवेदन किया था। चीन में होनेवाले सौम्य श्रम कानून, बुनियादी सुविधा और आनेवाले निवेशकों के लिए आसान नियम होने से चीन दुनिया का उत्पादन केंद्र बना। कोरोना वायरस की वज़ह से चीन से मुँह की खानी पड़ीं कंपनियाँ, आनेवाले समय का जागतिक उत्पाद केंद्र के रूप में भारत की ओर देख रहीं हैं। इसी पृष्ठभूमि पर, श्रम कानून में बदलाव करने का राज्यों द्वारा उठाया गया कदम अहमियत रखता है।

इसी बीच, केंद्र सरकार ने राज्यों द्वारा किये गए, श्रम कानून में सुधार करने के निर्णय का समर्थन किया है। इससे निवेश के अधिक अवसर प्राप्त होंगे यह विश्‍वास व्यक्त करते समय, राज्य सरकारों के साथ समन्वय में काम हो रहा है, यह बात केंद्र सरकार ने कही है। केंद्रीय श्रममंत्री संतोष कुमार गंगवार ने शुक्रवार के दिन उद्योगों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की। कोरोना वायरस की वजह से बनी स्थिति में, उद्योगों के सामने खड़ी हुईं समस्याएँ भी इस दौरान इन प्रतिनिधियों ने सरकार के सामने रखीं। इस चर्चा के बाद केंद्रीय श्रम एवं रोजगार सचिव हिरालाल सामरिया ने श्रम कानून में सुधार करने का काम जारी है, यह भरोसा उद्योगों के इन प्रतिनिधियों को दिलाया। इससे केंद्रीय श्रम कानून में भी सुधार होने के संकेत प्राप्त हो रहें हैं।

भारत में केंद्रीय स्तर पर ४५ श्रम कानून किये गए थे और राज्य स्तर पर २०० श्रम कानून किये गए थे। श्रम कानून का यह जटिल चित्र, नये निवेश में अडंगा बन रहा था। लेकिन, पिछले पाँच वर्ष में केंद्र सरकार ने ४५ क़ानूनों का, औद्योगिक संबंध, वेतन, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा इन चार विभाग में बँटवारा किया हैं। इनमें से वेतन, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा से संबंधित कानून में सुधार किया गया हैं। वहीं, औद्योगिक संबंधों से जुड़े नियमों में सुधार करने का काम जारी है। इस पृष्ठभूमि पर, राज्यों ने भी निवेश में अडंगा बनें कानूनों में सुधार करने का काम हाथ में लिया है, यह बात अब स्पष्ट हो रही है। लेकिन, राज्यों ने श्रम कानून में किए इन बदलावों का, कुछ सियासी दल और श्रमिक संगठनों द्वारा विरोध हो रहा है।

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