स्नायुसंस्था भाग – ०९

पिछले लेख में हमने देखा कि पेशी आवरण स्निग्ध पदार्थों से बना होता है। यह आवरण पेशी के बाहरी तथा पेशी के अंदरूनी इन दोनों द्रावों में मिलनेवाला अथवा पिघलने वाला नहीं होता है। पानी एवं पानी में पिघलने वाले पदार्थ इसमें सरलता से अंदर-बाहर नहीं आते जाते। स्निग्ध द्रव्यों में पिघलने वाले (lipid soluble) पदार्थ इसमें से सहजतापूर्वक अंदर-बाहर होते रहते हैं। उदाहरण- प्राणवायु। प्राणवायु स्निग्धता में पिघलने वाली होने के कारण वह अत्यंत सहजतापूर्वक प्रवेश कर सकती है।

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पेशी-आवरण में से विभिन्न घटकों का प्रवास (आवागमन) मुख्यत: दो प्रकार से होता है।

१)डिफ्युजन और
२)अ‍ॅक्टीव ट्रान्सपोर्ट

इनके उप-प्रकार भी हैं।
१)डिफ्युजन :

अ)स्निग्धता में पिघलनेवाले पदार्थों का सीधा आवागमन
ब)पानी व पानी में पिघलने वाले घटकों का चॅनेल प्रथिनों के माध्यम से आवागमन
क)कॅरिअर प्रथिनों की सहायता से आवागमन

२)अ‍ॅक्टीव ट्रान्सपोर्ट :

अ)कॅरिअर प्रथिनों के माध्यम से – परन्तु ऊर्जा का प्रयोग करके।
डिफ्युजन के तीनों उपप्रकारों में भौतिकशास्त्र का सामान्य सिद्धान्त काम करता हैं। कोई भी पदार्थ उच्च दाब से निम्न दाब की ओर प्रसारित होता है। परन्तु अ‍ॅक्टीव ट्रान्सपोर्ट में पदार्थों का आवागमन कम दाब से उच्च-दाब की ओर होता है (against concentration gradient)। फ़लस्वरूप इसके लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पेशीअंतर्गत ATP के अणु (Adenosine triphosphate) इस ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं।

कॅरिअर प्रथिने सभी प्रकार के घटकों का आवागमन नहीं करतीं। प्रत्येक प्रथिन कुछ विशिष्ट घटकों का आवागमन करती है। उदाहरणार्थ – जो प्रथिन विविध प्रकार के क्षारों के अणुओं (कॅल्शिअम, सोडिअम) का वहन करती हैं, वे ग्लुकोज का वहन नहीं करती हैं। सोडियम और पोटॅशिअम का वहन करनेवाली प्रथिनें भिन्न होती हैं।

– ऑक्सीजन, हायड्रोजन, नाइट्रोजन, कार्बनडाय-ऑक्साईड इत्यादि वायु स्निग्ध पदार्थों में पिघल जाती हैं। इसके कारण इनका आवागमन पेशी आवरण से सिंपल डिफ्युजन द्वारा ठेंठ होता है। उदाहरणार्थ – ऑक्सिजन अणु की मात्रा पेशी के बाहर ज्यादा होने पर उसका बहन पेशी के अंदर होता है।

– चॅनेल प्रथिन के माध्यम से मुख्यत: पानी व पानी में घुलनशील रहनेवाले घटकों का आवागमन होता है। (सोडिअम, पोटॅशिअम, कॅल्शिअम इ.)

– कॅरिअर अथवा ट्रान्सपोर्ट प्रथिनों की सहायता से ग्लुकोज, अमिनो अ‍ॅसिडस् का आवागमन होता है।

– पेशीबाह्य व पेशी अंतर्गत द्रावों में बड़ी मात्रा में पाया जाने वाला पदार्थ है- पानी। यदि हम अपने शरीर की लाल रक्तपेशियों का उदाहरण लें तो यह पता चलता है कि पेशियों की कुल मात्रा से यानी volume से १०० गुना पानी की मात्रा का आवागमन प्रतिसेकेन्ड पेशी के अंदर-बाहर होता है। परन्तु इसका पता भी नहीं चलता क्योंकि उपरोक्त दोनों द्रावों में पानी की मात्रा हमेशा समान ही रखी जाती है। परन्तु कभी-कभी इस मात्रा में अंतर हो जाता है। ऐसी अवस्था में पानी की अधिक मात्रा के पेशी के बाहर जाने से पेशियां सुखने लगती हैं। (उदाहरणार्थ – हम दैनंदिन जीवन में सब्ज़िया व फल सुखाते हैं) । यदि इससे विपरीत क्रिया घटित हुयी तो पेशी में बड़ी मात्रा में पानी प्रवेश करता है जिससे पेशी का आकार बढ़ जाता है।

अब प्रश्‍न यह उ़ठता है कि सोडिअम, पोटॅशिअम, क्लोरीन, कॅल्शियम इत्यादि में, क्षारों की मात्रा, उपरोक्त दोनों द्रावों में असमान क्यों हैं? सिंपल डिफ्युजन के सिद्धांत के अनुसार पानी के साथ इनका भी आवागमन होकर यह मात्रा समान होनी चाहिये। परन्तु ऐसा नहीं होता। इसका कारण है, इन अणुओं का कॅरिअर प्रथिनों के माध्यम से होने वाला सक्रिय आवागमन – ‘अ‍ॅक्टीव ट्रान्सपोर्ट’। लेख के प्रारंभ में ही हमने देखा कि पेशियों के विभिन्न कार्यों के लिये क्षारों के अणुओं का असमतोल होना आवश्यक होता है। कॅरिअर प्रथिनें सक्रियतापूर्वक सोडिअम अणुओं का वहन पेशी के बाहर करती हैं तथा पोटॅशियम अणुओं का वहन पेशी के अंदर करती हैं। जाहिर है कि यह against concentration gradient होता है। इसीलिये यहाँ पर ऊर्जा का प्रयोग होता है। अनेक घटकों का इस प्रकार सक्रिय आवागमन होता है। अपने विषय से संलग्न सोडियम, पोटेशियम व कॅल्शिअम के आवागमन का हम अध्ययन करनेवाले हैं।

अब हम देखेंगे कि सोडिअम-पोटेशियम का सक्रिय आवागमन कैसे होता है। इस क्रिया को ‘सोडिअम-पोटेशियम पंप’ भी कहते हैं। इस क्रिया में कॅरिअर प्रथिनों के द्वारा हर बार सोडिअम के तीन अणु, पेशी के बाहर ले जाये जाते हैं और पोटेशियम के दो अणु पेशी के अंदर लाये जाते हैं। इसके लिये ATP अणु की ऊर्जा प्रयोग में लायी जाती है।

ATP —— ADP + Pi + खुली ऊर्जा

विघटन
यह इस प्रक्रिया का सूत्र है। ट्रिपल फॉस्फेट का रूपांतर डबल फॉस्फेट में होता है। फॉस्फेट का एक अणु स्वतंत्र हो जाता है। इस फॉस्फेट के अणु को पकड़कर रखनेवाली ऊर्जा स्वतंत्र होती है।

इस सोडियम-पोटॅशिअम पंप का उपयोग पेशियों को दो प्रकार से होता है।

१)पेशी के व्हॉल्युम (volume)का नियंत्रण :- पेशी के अंदर प्रथिने व अन्य जैविक रासायनिक घटक होते हैं। ये घटक ऋणविद्युत भारयुक्त होते हैं। फ़लस्वरूप इनकी ओर अन्य धन-विद्युत भारयुक्त अणुओं के आर्कषित होने के कारण पेशी के अंर्तगत सभी घटकों की मात्रा बढ़ जाती है। इसके परिणाम स्वरूप पानी ज्यादा मात्रा में पेशियों में आ जाता है। यदि यह चक्र इसी तरह शुरू रहा तो पेशियों का आकार ज्यादा बढ़ जाने से क्षणभर में उनके ङ्गटने का भय होता है। ऐसे समय में यह पंप अपना काम शुरू कर देता है। सोडियम के अणु बड़ी मात्रा में पेशियों के बाहर आते हैं और अपने साथ-साथ पानी भी बाहर ले आते हैं। इससे पेशियों को नुकसान नहीं होता।

२)पंप की विद्युतशक्ती :- सोडिअम व पोटॅशिअम दोनों के अणू धन विद्युत भारयुक्त होते हैं(Positively charged ions)। पंप के प्रत्येक चक्र में सोडिअम के तीन अणु पेशी के बाहर आते हैं तथा पोटॅशियम के दो अणु पेशी में प्रवेश करते हैं। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक चक्र में पेशी में धनभारयुक्त अणुओं की संख्या में एक कम हो जाती है। इस तरह पेशी के अंदर ऋणविद्युत भार बन जाता है और पेशी के बाहर धनविद्युत भार तैयार हो जाता है। इस असमानता के कारण पेशी-आवरण के अन्दर-बाहर इलेक्ट्रीकल पोटॅशियम (Voltage Potential) तैयार हो जाता है। जब चेता पेशी और स्नायुपेशी में ऐसा होता है, तभी उनमें से संदेश वहन का कार्य होता है। तात्पर्य यह हैं कि संदेश के वहन के लिये यह अत्यावश्यक घटना है।

कॅल्शिअम का सक्रिय आवागमन :- पिछले लेख में हमने देखा था कि पेशी के अंतर्गत कॅल्शियम की मात्रा, पेशीबाह्य कॅल्शियम की मात्रा की अपेक्षा दस हजार गुना कम होती हैं। इसको संतुलित रखने का काम कॅल्शियम पंप करता है।

१)पेशी आवरण से कॅल्शियम का वहन पेशी के बाहर किया जाता है।
२)स्नायु पेशी में रहनेवाली सारकोटलाझामिक रेरिक्युलस नाम की सूक्ष्म पेशियाँ होती हैं। ये पेशी के भीतर कॅल्शियम का वहन करती हैं।

इन दोनों क्रियाओं के लिये ATP अणु की ऊर्जा उपयोग में लायी जाती है। हमने इन दोनों पंपों के कार्य को देखा। चेतातंतु और स्नायुतंतुओं में संदेशवहन की क्रिया में विद्युतशक्ती के कौन-कौन से कार्य हैं, यह हम अगले लेख में देखेंगे।

(क्रमश:)

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