चीन द्वारा ‘रेअर अर्थ’ क्षेत्र में वर्चस्व बनाए रखने के लिए गतिविधियाँ

बीजिंग – अमरीका और युरोपीय देशों द्वारा चीन के ‘रेअर अर्थ मिनरल्स’ यानी दुर्मिल खनिज क्षेत्र में बने वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिशें शुरू हुई है। इस चुनौती को नाकाम करने के लिए चीन भी आक्रामक हुआ होकर, अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए उसने तैयारी शुरू की है। उसी के एक भाग के रूप में चीन ने देश की तीन सरकारी कंपनियों का एकत्रीकरण करके ‘चायना रेअर अर्थस् ग्रुप’ इस नई कंपनी का गठन किया है। इस क्षेत्र में होनेवाली अपनी एकाधिकारशाही को अधिक मज़बूत बनाने के लिए चीन ने यह कदम उठाया है, ऐसा दावा विश्लेषकों ने किया है।

'रेअर अर्थ'प्रगत लड़ाकू विमान, क्षेपणास्त्र, स्मार्टफोन, कंप्यूटर और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले खनिजों का सबसे बड़े उत्पादक के रूप में चीन को जाना जाता है। ‘रेअर अर्थ मिनरल्स’ नाम से जाने जाने वाले १७ खनिजों के दुनिया भर में होनेवाले भांडार का लगभग ३० प्रतिशत से अधिक भाग चीन के पास होने का दावा किया जाता है। फिलहाल दुनिया में होनेवाले ‘रेअर अर्थ’ उत्पादन में चीन का हिस्सा लगभग ९५ प्रतिशत है।

इससे पहले सन २०१९ में अमरीकाविरोधी व्यापार युद्ध में, दुर्मिल खनिजों का इस्तेमाल ‘काऊंटर वेपन’ के तौर पर करने के संकेत चीन ने दिए थे। उसके बाद चीन के इस क्षेत्र में होनेवाले वर्चस्व के विरोध में पश्चिमी देश एकसाथ आ रहे होकर, अमरीका और युरोप के देशों ने स्वतंत्र कार्यक्रम घोषित किए हैं। पश्चिमी देशों की ये गतिविधियाँ अपने प्रभाव को झटका दे सकती हैं, इसका एहसास हुई चीन की सत्ताधारी पार्टी ने अपनी पकड़ अधिक मज़बूत बनाने के लिए कदम उठाना शुरू किया है। कुछ महीने पहले चीन की हुकूमत ने, दुर्मिल खनिजों का उत्पादन और निर्यात इन पर नियंत्रण लानेवाला कानून पारित करने के भी संकेत दिए थे।

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