क्रान्तिगाथा-५५

‘दिल्ली कॉन्स्पिरसी’ अथवा ‘दिल्ली-लाहोर कॉन्स्पिरसी’ के मुकदमे का फैसला अँग्रेज़ सरकार के पक्ष में ही होगा, इस बात को अब हर एक भारतीय कई अनुभवों के बाद जान ही चुका था और हुआ भी वैसे ही।

अंग्रेज़ों के किसी अफसर या किसी आम सैनिक के खिलाफ यदि कोई भारतीय व्यक्ति कोई साधारण सी कृति भी करता है, तो उस भारतीय को पकडने की व्यवस्था अँग्रेज़ों ने उनके कानून में भली भाँती करके रखी थी

और यह तो भारत के अँग्रेज़ व्हॉईसरॉय पर हुए हमले की बात थी।

फिर ‘दिल्ली कॉन्स्पिरसी’ के मुकदमे में बसंतकुमार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी।

लेकिन अँग्रेज़ों के व्हॉईसरॉय पर बम फेंका गया था और बम फेकने वाले को केवल आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी, यह बात अँगे्रज़ों को हजम होनेवाली नहीं थी और वैसे भी भारतीय क्रांतीवीरों को फाँसी पर चढाना, इस बात की तो अँग्रेज़ सरकार को आदत ही पड गयी थी ।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़आखिर बसंतकुमार बिस्वास को उसके उम्र के महज़ २० वे साल में मई १९१५ में अंबाला सेंट्रल जेल में फाँसी दी गयी।

लॉर्ड हार्डिंग्ज पर फेंके गये बम के संदर्भ में चलाये गये मुकदमे में और तीन क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा सुनायी गयी। बालमुकुंद, अवधबिहारी और अमीरचंद इन तीन क्रांतिवीरों को भी मई १९१५ में अंबाला जेल में फाँसी दे दी गयी।

भले ही ऐसा सब कुछ घटीत हुआ था, लेकिन इतिहास कहता है कि लॉर्ड हार्डिंग्ज पर जिसने बम फेंका था, उसका नाम आज तक इतिहास को भी ज्ञात नहीं हो सका हैं।

लेकिन इस योजना को बनाने में जिन्होंने अहम भूमिका निभायी थी, वे रासबिहारी बोस अँग्रेज़ों की पकड में आ नहीं सके।

रासबिहारी बोस, जाज्वल्य देशभक्ति का मूर्त उदाहरण थे।

रासबिहारी बोस का जन्म बंगाल के वर्धमान जिले के सुबालदह नामक गांव में २५ मई १८८६ में हुआ। उनके पिता विनोदबिहारी बोस की नियुक्ती चंदननगर में हुई थी और वहीं पर रासबिहारी बोस ने शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही देश को आज़ाद करने का ध्येय उनके मन में पनप रहा था। शिक्षा पूरी हो जाने के बाद कुछ समय तक उन्होंने देहरादून स्थित फॉरेस्ट रिसर्च इन्स्टिट्यूट में हेडक्लर्क के रूप में काम किया। उसी समय देश को आजाद करने के लिए कुछ करने की प्रबल इच्छा उन्हें शांति से नहीं बैठने दे रही थी और इसीसे क्रांतिवीरों से उनका संपर्क स्थापित हुआ और उनका कार्य विलक्षण तेज़ी से शुरू हो गया।

इतिहास के अनुसार लॉर्ड हार्डिंग्ज पर बम फेंकने की योजना में रासबिहारी बोस का प्रमुख हाथ था। इस घटना के बाद, बम फेंकने वाले को पकडने की कोशिशें अँग्रेज़ सरकार तेज़ी से करने लगी। उसी रात रासबिहारी बोस तुरंत देहरादून रवाना हुए और अगले दिन ऑफिस जाकर कुछ इस तरह काम में जुट गये कि मानो इस घटना के साथ उनका जरा सा भी संबंध नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि दूसरे दिन लॉर्ड हार्डिंग्ज पर फेंके गये बम की घटना का विरोध करने के लिए उन्होंने देहरादून के नागरिकों की एक सभा का आयोजन किया और उसमें इस घटना की कड़ी शब्दों में निंदा की। संक्षेप में अँग्रेज़ों को चकमा देने में वे कामयाब हुए।

युगान्तर के माध्यम से अन्य क्रांतिवीरों के साथ संपर्क स्थापित कर चुके रासबिहारी बोस ने फिर गदर पार्टी के क्रांतिवीरों के साथ गदर कॉन्स्पिरसी में हिस्सा लिया।

गदर पार्टी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए जो ‘गदर कॉन्स्पिरसी’ नामक योजना बनायी थी, उसमें अब रासबिहारी बोस शामिल हो गये।

प्रथम विश्‍वयुद्ध का उपयोग करके अँग्रेज़ों को अपने भारत देश में से खदेड़ देने की योजना गदर पार्टी के क्रांतिवीरों ने बनायी थी। उस योजना के अनुसार ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकही ब्रिटिशों के खिलाफ़ विद्रोह करनेवाले थे। लेकिन दुर्भाग्यवश यह योजना असफल हुई और कई क्रांतिवीर पकडे गये। रासबिहारी बोस के भी इस योजना में शामील होने की जानकारी अँग्रेज़ों को प्राप्त हुई थी।

वैसे भी अँग्रेज़ सरकार रासबिहारी बोस को लॉर्ड हार्डिंग्ज पर हुए बम हमले के बारे में ढूँढ ही रही थी। लेकिन उस समय रासबिहारी बोस अँग्रेज़ों के हाथ नहीं लगे।

अब फिर एक बार अँग्रेज़ सरकार को अनायास मौका मिला ही था। लेकिन इस बार भी रासबिहारी बोस अँग्रेज़ों को झांसा देने में कामयाब हुए और ठेंठ जापान पहुँच गये। जून १९१५ में जापान पहुचने के बाद वहाँ से उनकी कोशिशें शुरू हो गयी।

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