क्रान्तिगाथा-५१

‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि’ ऐसा एक संस्कृत सुभाषित है। स्वर्ग भी जिसके सामने गौण है, ऐसी अपनी मातृभूमि जब गुलामी की जंजिरों में जकडी हुई थी तब भारतीय क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे थे? यकिनन ही नहीं। वह वक्त ही कुछ ऐसा था। हर किसी को एक ही निदिध्यास था, मेरी भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए में हर संभव कोशिश करूँगा; फिर भले उसके लिए मुझे सागर ही क्यों न पार करना पडे। इसी एक निदिध्यास से भारतमाता के एक सुपुत्र ने सीधे सागर में ही छलाँग लगायी।

२८ मई १८८३ को नासिक जिले में भगूर नामक गांव में दामोदरपंत और राधाबाई नामक दंपति के यहाँ विनायक सावरकर का जन्म हुआ। दुर्भाग्यवश उन्हें उनके माता-पिता की छत्रछाया महज थोड़े ही समय के लिए मिली। आगे चलकर उनकी परवरिश उनके बडे भाई और भाभी ने की। सावरकरजी के बडे भाई बाबाराव सावरकर इस नाम से भी जाने जाते थे, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी और साथ ही माता-पिता के पश्‍चात् अपने दो भाइयों और एक बहन की बहुत अच्छी तरह परवरीश की।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़ प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते समय ही सावरकरजी ने ‘मित्रमेळा’ नामक संगठन की स्थापना की। इस संगठन का हेतु था-भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कोशिशें करना। इसी संगठन में से आगे चलकर स्थापना हुई ‘अभिनव भारत’ नामक संगठन की। अपनी उम्र के १३ वें साल में सावरकरजी ने जो कविताएँ लिखीं, वे थीं – देश की स्वतंत्रता से संबंधित।

१९०२ में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में सावरकरजी ने अगली शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रवेश लिया। १९०५ में ‘स्वदेशी आंदोलन’ के अंतर्गत विदेशी कपडों को जलाने में भी वे अग्रसर थे। १९०५ में उन्होंने बी.ए. की डीग्री हासिल की और १९०६ में वे कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए लंडन रवाना हुए।

लंडन में ज़ाहिर है कि वे शामजी कृष्ण वर्मा और इंडिया हाऊस से परिचित हो गये और सावरकरजी का कार्य तेज़ी से शुरू हो गया। भारत की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति का आंदोलन तेज़ हो गया। शस्त्रास्त्र प्राप्त करना जैसे पिस्तौल, बम आदि, साथ ही उन शस्त्रास्त्रों को चलाना सीखना और अन्य क्रांतिवीरों को भी इसमें प्रशिक्षित करना, बम निर्माण का ज्ञान आत्मसात करना और उस कार्य का इस्तेमाल करना ऐसा इस कार्य का स्वरूप था। ये शस्त्र-अस्त्र और उन्हें चलाने का भारतीय युवकों को दिया गया प्रशिक्षण यह भारत को स्वतंत्रता की ओर ले जानेवाली एक राह साबित हुई।

ज़ुलमी अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ उनके ही देश में यानी इंग्लंड में और उनके द्वारा गुलाम बनायी गयी भारतभूमि में अँग्रेज़ों के खिलाफ़ इन शस्त्र-अस्त्रों का प्रयोग किया गया।

इंडिया हाऊस के वास्तव्य में विनायक सावरकर यानी स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने जोसेफ मॅझिनी नामक इटली के क्रांतीवीर के आत्मचरित्र का मराठी भाषा में अनुवाद किया और उसके बाद सालभर में ही सन १८५७ के स्वतन्त्रता संग्राम की स्मृतियों को उजागर करनेवाला इतिहास लिखा। लेकिन प्रकाशित होने से पहले ही अँग्रेज़ों ने इसे जप्त किया। लेकिन सावरकरजी के सहकर्मियों ने इंग्लंड के बाहर से इसे प्रकाशित किया।

संक्षेप में सावरकरजी के द्वारा स्वदेश को स्वतंत्रता प्राप्त हो इस हेतु चल रही गतिविधियाँ अँग्रेज़ों को काफी खटक रही थी। सावरकरजी के लेखन को प्रकाशित करनेवाले उनके ज्येष्ठ बंधू (बड़े भाई) को अँग्रेज़ सरकार ने गिरफ्तार किया था और उन्हें आजीवन कारावास की अर्थात् काले पानी की सजा सुनायी गयी और उन्हें अंदमान भेज दिया।

इस अन्याय और जुल्म से भारतीय युवकों का खून खौलने लगा और जॅक्सन का वध हुआ। इसके लिए अँग्रेज़ सरकारने अनंत कान्हेरे को फाँसी दे दी। इसके पीछे के प्रेरणस्त्रोत इंग्लंड में उस वक्त पढने गये स्वातंत्र्यवीर सावरकर है ऐसा अँग्रेज़ सरकारने निश्‍चित किया।

फिर सावरकरजी को गिरफ्तार करके भारत लाने का अँग्रेज़ सरकार ने तय किया। उन्हें समुद्रमार्ग से यानी कि जहाज़ से भारत लाया जा रहा था। यह जहाज़ जुलाई १९१० में मॉर्सेलिस पहुँचा और सावरकरजी ने जहाज़ पर से ठेंठ सागर में ही छलाँग लगायी और तैरकर वे फ्रान्स के सागरकिनारे पर पहुँच गये। उनका अँदाज़ा था कि इस भूमी पर अँग्रेज़ उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकते। लेकिन यह अँदाजा ग़लत साबित हुआ और अँग्रेज़ पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया।

भारत में लाकर उनपर मुकदमा चलाया गया और सबको आश्‍चर्य में डाल देनेवाली सज़ा उन्हें सुनायी गयी-दो आजीवन कारावास की यानी की ५० साल काले पानी को भुगतने की और उन्हें अंदमान के कुविख्यात सेल्युलर जेल में भेजा गया।

ऐसा कह सकते हैं कि यह सावरकरजी के देशभक्तिभरे विचारों और गतिविधियों को रोकने के लिए अँग्रेज़ों के द्वारा की गयी यह एक कोशिश ही थी।

जुलाई १९११ में काले पानी की सजा भुगतने के लिए सावरकरजी ने सेल्युलर जेल में प्रवेश किया।

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