क्रान्तिगाथा-६३

गुजरात का खेडा जिला। सूखे के कारण खेतों में फसल ही नहीं हुई थी। सरकारी नियम के अनुसार यदि निर्धारित किये हुए से फसल कम हो जाती है तो लगान में छूट या माफी दी जा सकती थी।

खेडा जिले के किसानों के खेतों में सूखे के कारण फसल इतनी कम हुई थी की सरकारी नियम के अनुसार उन्हें लगान में छूट मिलना या लगान माफ कर दिया जाना अपेक्षित था। लेकिन अँग्रेज़ सरकार को उनकी बात बिलकुल भी मंजूर नहीं थी। क्योंकि सरकार की तिजोरी भरना जरूरी था।

फिर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उस समय के मुंबई इलाके के अफसरों से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह असफल हुआ।

इस समय खेडा जिले के किसानों के साथ एक व्यक्तित्व लड़ रहा था। उनका नाम था विठ्ठलभाई पटेल। लेकिन इसमें किसानों को कामयाबी नहीं मिली।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़आखिरकार गुजरात लौटने के बाद गांधीजी खेडा जिले में गये। उन्होंने स्थिति का जायजा लिया। फिर एक बार अँग्रेज़ सरकार के साथ विचार विमर्श किया गया और आखिरकार निर्णय लिया गया। उसके अनुसार जिन किसानों को लगान देना मुमकिन था, वे लगान दे; लेकिन जिन किसानों का नुकसान हुआ है उन्हें लगान में छूट दी गयी। इस प्रकार यह आंदोलन भी यशस्वी हुआ।

चम्पारण और खेडा जिले के आंदोलनों के कारण एक बात घटित हुई। अँग्रेज़ों की दृष्टि से किसानों का वर्ग जो प्रतिकार नहीं कर सकता था, वह जागृत हुआ और किसानों का खुद पर होनेवाला और संघटितता पर होनेवाला विश्‍वास बढ गया।

चम्पारण और खेडा जिले के किसानों के इस आंदोलन के कारण एक बात तो स्पष्ट हो गयी की जब सामान्य भारतीय एक हो जायेंगे और एकसाथ अँग्रेज़ों के ज़ुल्म के विरोध में और अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ खड़े हो जायेंगे, तब अँग्रेज़ सरकार को झुकना ही पड़ेगा; या तो उन्हें भारतीयों की स्थिती के बारे में सोचनाही पडेगा।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आम भारतीय नागरिकों का भी बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, इस बात को हमें नहीं भूलना चाहिए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत अँग्रेज़ों के चंगुल से छूट जाये इसलिए इस स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी जिस तरह प्रयत्नशील थे, उसी तरह वे भारतीयों की सामाजिक स्थिती में सुधार लाने के लिए भी प्रयत्नशील थें। ब्रिटिशों द्वारा उनका शासन चलाने के लिए भारत में लायी गयी विभिन्न नयी बातों से, जैसे की रेल, तार, पोस्ट आदि की सहायता इसमें लेने की उन्होंने कोशिश की।

अशिक्षितता, गरीबी, गलत प्रथाएँ आदि के कारण भारतीयों की प्रगती में बाधाएँ उत्पन्न हो रही थी। अँग्रेज़ों के भारत आने से भारत परतंत्रता में धकेला गया यह सूरज के प्रकाश के जितना प्रखर सत्य तो था ही मगर इस संकट का भारत और भारतीयों की प्रगती के लिए कुछ तो फायदा हो इस दृष्टि से भारतीय विचारवंत प्रयत्नशील थे।

रेल, तार, पोस्ट विभाग, अँग्रेज़ी शिक्षा पद्धती ये सब बातें अँग्रेज़ों द्वारा भारत में लायी गयी। इसके पीछे उनका उद्देश स्वयं के कामकाज में फायदा हो यही था, लेकिन उसका भारतीयों को कुछ अंशों में ही सही लेकिन फायदा तो हुआ ही।

अँग्रेज़ी शिक्षा पद्धति का भारत में प्रसार करने के पीछे अँग्रेज़ों का मुख्य उद्देश उनके कामकाज में सहायता के लिए क्लर्क का निर्माण करना यही था। लेकिन इससे अशिक्षितता के चंगुल से छूटने में भारतीयों की कुछ प्रमाण में सहायता हुई। इस अँग्रेज़ी शिक्षा पद्धति के कारण भारतीय तत्वज्ञों और सुशिक्षित भारतीयों के लिए ज्ञान के नये दालान खोले गये और इस प्राप्त ज्ञान का इस्तेमाल अपने देशबांधवों के लिए करना उन्होंने शुरू किया।

लेकिन इसके बावजूद भी केवल ब्रिटन के कारण प्रथम विश्‍वयुद्ध में घसीटे गये भारत को यानी कि हर एक भारतीय को बढती हुई महंगाई, अनाज की कमी, बेरोजगारी जैसी बातों का सामना करना ही पड रहा था। प्रथम विश्‍वयुद्ध में ब्रिटन के पक्ष में ब्रिटन के शत्रुओं के खिलाफ लडने गये भारतीय सैनिक जब भारत लौटे तब उनकी स्थिती बहुत की करुणाजनक थी। युद्ध के दौरान हुए घाव और बेरोजगारी ये बातें उनके सामने खडी थी।

इसी समय ब्रिटिश सरकार नये नये हथकंडे अपनाकर भारतीय क्रांतीवीरों को बंदी बनाना चाहता था। इसलिए नये कानून बनाना या पुराने कानूनों को एक अलग रूप देकर उन्हें फिर से लागू करने में अँग्रेज़ सरकार अब जुट गयी थी।

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