कोलकाता

Kolkata-kali temple

हिमालयस्थित गंगोत्री में उद्गमित होनेवाली गंगानदी जहॉं सागर में मिलती है, उस पश्चिम बंगाल का एक महानगर है, कोलकाता|
पश्चिम बंगाल की राजधानी होनेवाले कोलकाता शहर का इतिहास बड़ा ही रोचक है| महानगर के रूप में विख्यात आज के इस कोलकाता शहर के स्थान पर पुराने जमाने में सूतानाति, कोलिकाता और गोविन्दपुर ये तीन गॉंव बसे हुए थें| इसवी १६९० में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी श्री. जॉब चारनाक ने यहॉं अपने कंपनी के व्यापारियों के लिए एक उपनिवेश (कॉलनी) का निर्माण किया| यहीं से ङ्गिर कोलकाता का बिस्तार बढ़ता रहा| इससे पहले कईं छोटे-बड़े राजवंशों की इन गॉंवों पर हुकूमत थी| प्राचीन चीनी यात्रियों के वृत्तांत एवं ङ्गारसी व्यापारियों के दस्तावेजों में इस शहर का उल्लेख बन्दरगाह के तौर पर किया हुआ है| ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने उपनिवेश का निर्माण करने के बाद इन तीन गॉंवों का विकास प्रेसिडेन्सी सिटी के रूप में करने की शुरुआत की| इसवी १६९१ में अंग्रेजों ने सूतानाति में ‘विल्यम ङ्गोर्ट’ इस क़िले का निर्माण किया| यही क़िला अंग्रेज साम्राज्य के लिए आधारस्तम्भ सिद्ध हुआ| अपने सैनिकों के निवास की व्यवस्था करना, यही इस क़िले के निर्माण का उद्देश्य था| इस क़िले की खासियत यह है कि इस क़िले से आख़िर तक अंग्रेजों को एक भी तोपगोला नहीं दागना पड़ा| बंगाल के नवाब सिराज उद्दौला ने इसवी १७५६ में कोलकाता पर आक्रमण करके इस क़िले को जीत लिया, लेकिन सालभर में ही अर्थात् इसवी १७५७ में अंग्रेजों ने इस शहर तथा क़िले पर पुनः कब्जा कर लिया| इसवी १७७९ में प्लासी की लड़ाई जीतने के बाद कोलकाता यह शहर अंग्रेजों की भारत की राजधानी बन गया और इसवी १९१९ में अंग्रेजों ने दिल्ली का राजधानी के रूप में चयन करने के पूर्व तक कोलकाता ही उनकी राजधानी थी| इसवी १७९७ से लेकर इसवी १८०५ तक रिचर्ड वेलस्ली नाम के गव्हर्नर जनरल ने इस शहर का विकास और इसकी रचना में अहम भूमिका निभाई| १८ और १९वी सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी के अ़ङ्गीम के व्यापार का केन्द्रवर्ती स्थान कोलकाता ही था| इसवी १८५७ में कोलकाता युनिव्हर्सिटी की स्थापना हुई और इसवी १८६२ में कोलकाता हायकोर्ट का कार्य शुरू हुआ| इसवी १७५७ के बाद इस शहर पर पूरी तरह अंग्रेजों की हुकूमत थी और इसवी १८५० से इस शहर के औद्योगिक विकास की शुरुआत हुई| विशेष रूप से वस्त्र-उद्योग यहॉं उभरने लगा|

पुराने जमाने में केवल तीन गॉंवों का स्वरूप होनेवाले इस कोलकाता शहर के नामकरण के बारे में कईं अभिप्राय हैं| स्थानीय निवासी पुराने समय से इस शहर के नाम का उच्चारण ‘कोलकाता’ या ‘कोलिकाता’ इस तरह ही करते थें| लेकिन अंग्रेजों ने अपने हिसाब से इसका नामकरण ‘कलकत्ता’ कर दिया और इसी नाम को प्रचलित किया| लेकिन १ जनवरी २००२ को अधिकृत रूप से इस शहर का नाम पुनः ‘कोलकाता’ कर दिया गया|

कोलकाता और देवी काली इनका बहुत ही घना सम्बन्ध है| ‘कालीक्षेत्र’ अर्थात् देवी कालीमाता का स्थान होने के कारण इस शहर को ‘कोलकाता’ यह नाम प्राप्त हुआ, यह एक राय है| कुछ लोगों की राय है कि यह शहर ‘खाल’ अर्थात् नहर के किनारे पर बसाया गया है, अतः इसका नाम ‘कोलकाता’ है| बंगाली भाषा में नहर को ‘खाल’ कहते हैं| कुछ लोगों का मानना है कि ‘किलकिला’ इस बंगाली शब्द के कारण कोलकाता यह नाम दिया गया है| ‘किलकिला’ इस बंगाली शब्द का अर्थ है, समतल भूप्रदेश| एक राय यह भी है कि ‘कळिकाता’ शब्द के अपभ्रंश से ‘कोलकाता’ यह नाम प्रचलित हुआ है| ‘कळिकाता’ का अर्थ है, चूना और नारियल के छिलके की रेशा से बनी रस्सी (काता) बनानेवाला गॉंव|

औद्योगिक विकास के साथ-साथ कोलकाता की आबादी भी बढ़ने लगी| १९८० तक कोलकाता भारत का सबसे घनी आबादीवाला शहर था| मगर बाद में मुम्बई सबसे घनी आबादीवाला शहर बन गया|

अंग्रेजों की गुलामी में कोलकाता में एक नई संस्कृति का उदय हुआ, जिसे ‘बाबू’ वर्ग कहा जाने लगा| अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करके अंग्रेजों के सुधार एवं मूल्य इनका पुरस्कार करनेवाले इस ‘बाबूवर्ग’ ने भारतीय संस्कृति एवं मूल्य इन्हें ऩजरअन्दा़ज करना शुरू किया| लेकिन अपने आप में इतने बदलाव लाने के बावजूद भी अंग्रेज समाज में हमारा समावेश होना सम्भव नहीं है, यह बात जब इस वर्ग की समझ में आई, तब इसी बात के कारण बंगाल में वैचारिक परिवर्तन की शुरुआत हुई| इस परिवर्तन के कारण सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि कईं क्षेत्रों में सुधार किये गएँ| इस परिवर्तन को बंगाल का पुनरुज्जीवन अर्थात् बंगाल रेनीसन्स कहा जाता है| भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में केवल कोलकाता ही नहीं, बल्कि सारे बंंगाल ने मौलिक योगदान दिया| कईं क्रान्तिकारियों ने अपनी मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया और इस कार्य में समूचा बंगाल अग्रसर था|

howrah bridgeहुगळी नदी के पूर्वीय तट पर बसा हुआ कोलकाता यह शहर आज भारत के चार मुख्य महानगरों में से एक है और वह पश्चिम बंगाल की राजधानी भी है| भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ ही कोलकाता अध्यात्म, स्थापत्य, कला एवं साहित्य इन क्षेत्रों से भी जुड़ा हुआ है| अपनी स्थापत्यविशेषता के कारण इस शहर को ‘सिटी ऑङ्ग पॅलेसेस’ कहा जाता है|

भारत के इतिहास में कईं मान्यवर कोलकाता से जुड़े हुए हैं| नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथजी टागोर की यह जन्मभूमि है, वहीं भारत के स्वतन्त्रता संग्राम को एक नया आयाम प्रदान करनेवाले नेताजी सुभाषचन्द्रजी बोस की यह कर्मभूमि है| इतना ही नहीं, बल्कि देवी कालीमाता के निःसीम भक्त होनेवालें रामकृष्ण परमहंसजी के शिष्य श्रीविवेकानन्दजी का भी यह जन्मस्थल है| स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रसर रहनेवालें और आगे चलकर अध्यात्म में उन्नति करनेवाले योगी अरविन्दजी घोष, भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के पहले अध्यक्ष श्री. व्योमेशचन्द्र बॅनर्जी तथा ‘वन्दे मातरम्’ के जनक साहित्यकार बंकिमचन्द्र चॅटर्जी इन विभूतियों का भी कोलकाता से गहरा रिश्ता है| कुछ वर्ष पहले ही जिनका निधन हुआ, उन मदर तेरेसाजी की भी यह कर्मभूमि है|

कोलकाता में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, देवी कालीमाता का मन्दिर| देवी काली की दुर्गा के रूप में पूरे बंगाल में आराधना की जाती है| कोलकाता यह एक शक्तिपीठ है और यहॉं पर सती (उमाजी) के दहिने पैर की उँगलियॉं गिरी थी, ऐसा कहा जाता है| उसी स्थान पर देवी कालीमाता के मन्दिर का निर्माण किया गया है| इस देवी का स्वरूप इस तरह है – कृष्णवर्ण, सर्प एवं मुँडमाला धारण करनेवाली और जीभ को बाहर निकाले हुए| यह मन्दिर कालीघाट पर स्थित है| १५वी सदी में हुए भूकम्प में पुराना कालीमन्दिर ढह गया| कुछ वर्ष पश्चात् जंगलगीर नामक साधु ने उस स्थान की खोज करके यहॉं पर छोटेसे लकड़ी के मन्दिर का निर्माण किया| यही है आज का कालीमन्दिर|
कोलकाता में स्थापित हुई प्रेसीडन्सी कॉलेज इस शिक्षासंस्था में, भारत में अंग्रेजी उच्च शिक्षा का प्रारम्भ हुआ| इसवी १८१४ में निर्मित इंडियन म्युझियम यह आशिया का सबसे पुराना म्युझियम है और भारत के इतिहास एवं कला इनके बारे में महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों को वहॉं पर सुरक्षित रखा गया है| स़ङ्गेद संगेमर्मर से बने व्हिक्टोरिया मेमोरियल का निर्माण १९२१ में किया गया, जिसमें कोलकाता शहर के इतिहास से सम्बन्धित दस्तावेजों को सँभालकर रखा गया है| कोलकाता से जुड़ा हुआ एक और महत्त्वपूर्ण नाम है – ‘ईडन गार्डन्स’| यह क्रिकेट का मैदान उसकी दर्शकक्षमता के लिए मशहूर है| जिसमें बैठकर १ लाख दर्शक खेल का आनन्द ले सकते हैं, ऐसे दुनिया के दो स्टेडियम्स में से यह एक है| क्रिकेट के साथ ही कोलकाता का नाम फूटबॉल से भी जुड़ा हुआ है| मोहन बागान, मोहमदिन स्पोर्टिंग क्लब एवं ईस्ट बंगालजैसे राष्ट्रीय फूटबॉल टीम्स की यह धरोहर है|

कोलकाता का नाम सुनते ही दो बातें शीघ्र ही याद आती हैं – एक है ट्राम और दूसरा हावड़ा ब्रीज| बहुत वर्ष पूर्व, मुम्बई में भी ट्रामें चलती थीं, लेकिन बाद में वे बन्द पड़ गईं| मगर कोलकाता में आज भी ट्राम की आवाजाही चल रही है| हमने चित्र या ़िङ्गल्मों में हावड़ा ब्रीज को देखा होगा| इस ब्रीज का निर्माण १८७४ में हुआ|

दुर्गापूजा के वर्णन के बिना कोलकाता शहर का वर्णन अधूरा होगा|

शिव से वरदान प्राप्त करने के बाद महिषासुर नाम के राक्षस ने मनुष्यों के साथ-साथ देवताओं को भी परेशान करना शुरू किया| उसे प्राप्त हुए वरदान के अनुसार उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के द्वारा ही हो सकती थी| अन्त में, इस पूरे विश्‍व की सुरक्षा करने के लिए देवी दुर्गामाताजी अवतरित हुई| महिषासुर ने देवीमॉं के साथ युद्ध करते हुए कईं प्रकार के मायावी रूपों को धारण किया| लेकिन घनघोर युद्ध के बाद देवी दुर्गामाताजी ने उसका नाश कर दिया| बुराई पर हुई भलाई की जीत को मनाने के लिए इस उत्सव का आयोजन किया जाता है|
पूरे बंगाल में दुर्गापूजा यह एक महत्त्वपूर्ण उत्सव है और व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक स्तर पर इसे मनाया जाता है| नौ दिनों तक चलनेवाले इस उत्सव के लिए देवी दुर्गामाता की मिट्टी की दशभुजा मूर्ति का निर्माण किया जाता है| मॉं दुर्गाजी सिंहारूढ महिषासुरमर्दिनी के स्वरूप में रहती हैं| उनके समीप लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, कार्तिकेयजी एवं गणपतिजी की मूर्तियॉं भी रहती है|
अश्‍विन मास के इस उत्सवकाल में देवी दुर्गाजी उनके मायके आती हैं, ऐसी धारणा है| इसीलिए मायके आई हुई दुर्गाजी के आदरसत्कार में किसी भी प्रकार की कसर नहीं छोड़ी जाती है| इन नौ दिनों में विशेष प्रकार के भिन्न-भिन्न द्रव्यों को अर्पण करके देवीमाता का पूजन किया जाता है और ङ्गिर देवीमाता की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है| मूर्ति का भले ही विसर्जन हो, मगर मॉं दुर्गाजी हर एक के हृदय में भक्तिस्वरूप में विराजमान रहती ही हैं और हृदयसिंहासन पर दुर्गाजी के आरूढ होने के कारण ही इस देह का ‘कालीक्षेत्र’ अर्थात् कोलकाता बन जाता है| यदि मॉं दुर्गाजी हृदय में सिंहासन पर आरूढ न हों, तो यह देह ‘कलिक्षेत्र’ बन जाता है| इस दृष्टि से यह ‘कोलकाता’ हमारे जीवन में भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है|

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