जुनागढ़ भाग-५

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एक बहुत ही सुन्दर मराठी गीत है – ‘जिथे सागरा धरणी मिळते। तिथे तुझी मी वाट पहाते।’ (जहाँ सागर और धरती का मिलन होता है, वहाँ (सागरकिनारे मैं तुमसे मिलने के लिए) तुम्हारी राह देख रही हूँ।) हमारे देश को विशाल सागरतीर प्राप्त हुआ है और इसीलिए भारत में सागर और धरती के मिलने के कई स्थल हैं।

सागर और धरती के मिलन की याद आने का कारण है, ‘सोमनाथ’। जी हाँ, आज हमें सोमनाथ जाना है और वहाँ ठीक ऊपरोक्त भौगोलिक परिस्थिति है।

‘प्रभासपाटण’ की भूमि पर, सामने दूर दूर तक फैला हुआ अथाह सागर और उसके तट पर स्थित सोमनाथ का मंदिर। सोमनाथ के दर्शन करने से पहले थोड़ी बहुत जानकारी प्राप्त करते हैं।

भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कई जगह शिवमंदिर हैं। इन सभी शिवस्थानों में से बारह ज्योतिर्लिंग बहुत ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। इन बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला नाम आता है, सोमनाथ का। ज्योतिर्लिंगों का वर्णन करनेवाले श्‍लोक की शुरुआत ही ‘सौराष्ट्रे सोमनाथं च’ इस तरह होती है। सोमनाथ मंदिर के प्रमुख आराध्य शिवजी ही हैं, जो शिवलिंग के स्वरूप में यहाँ पर विराजमान हैं। इस अतिप्राचीन तीर्थस्थल की महिमा भी उसीके जितनी प्राचीन है। वेद और पुराण सोमनाथ की महिमा का गान करते हैं।

तो ऐसे इस तीर्थस्थल तक जाने के लिए हमें पहले जुनागढ़ से ‘वेरावळ’ जाना होगा। वेरावळ यह नाम शायद आपने भूगोल में पढ़ा होगा। वेरावळ यह भारत के पश्‍चिमी तट का एक बंदरगाह है। वेरावळ से कुछ ही दूरी पर है, ‘प्रभासपाटण’। इस प्रभासपाटण में ही सागर के सम्मुख स्थित है, सोमनाथ मंदिर।

प्रभासपाटण यह प्रभासक्षेत्र, वेरावळ क्षेत्र, सोरटी सोमनाथ, आनर्तपूर, सोमनाथ पाटण इन नामों से भी जाना जाता था। सोमनाथ के मंदिर के आद्य निर्माण के संदर्भ में कहा जाता है कि इसवीसन की कालगणना के शुरू होने से पहले ही शायद इस मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण किया गया होगा। यहाँ पर ‘सर्वप्रथम’ इस शब्द का उपयोग करने के पीछे भी कुछ कारण है।

हर एक भारतीय के मन में इस तीर्थ के प्रति सम्मान की पूज्य भावना तो है ही; साथ ही सोमनाथ मंदिर कहते ही झट से याद आता है, इतिहास। इतिहास बयान करता है, सोमनाथ पर हुए विदेशी आक्रमण, उन्होंने यहाँ पर मचायी हुई तबाही और लूटपाट कर यहाँ से वे अपने साथ ले गये वह वैभव। क्योंकि आज तक ‘सात बार’ इस सोमनाथ मंदिर का निर्माण किया गया है। अब हम जिस सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने जा रहे हैं, वह सातवीं बार बनाया गया मंदिर है और वह भी भारत के आज़ाद हो जाने के बाद।

इसीका अर्थ यह है कि सोमनाथ के इस मंदिर ने कुल छह बार पतन के क्लेशों को भुगता है। यहाँ के वैभव को नोचा गया है। यहाँ की भूमि को विदेशियों के हमलों का विदारक दु:ख सहना पड़ा है। इससे यह भी साबित होता है कि पुराने समय से यह सोमनाथ मंदिर बहुत ही वैभवशाली एवं संपन्न था।

युगोयुगों से इस सोमनाथक्षेत्र की महिमा गायी जा रही है। यह सत्ययुग में ‘भैरवेश्‍वर’, त्रेतायुग में ‘श्रवणिकेश्‍वर’ और द्वापारयुग में ‘श्रृगालेश्‍वर’ इन नामों से जाना जाता था।

इस शिवलिंग की उत्पत्ति एवं महिमा का वर्णन करते हुए पुराण कहते हैं कि एक बार जब ब्रह्मदेव यहाँ पर आये थे, तब उन्होंने यहाँ की भूमि में से एक स्वयंभू शिवलिंग को बाहर निकाला और उसका पूजन किया। पूजन के बाद पुन: उस शिवलिंग को यथास्थान रख दिया और उसपर दूसरे शिवलिंग की स्थापना की।

‘सोम’ इस शब्द का एक अर्थ है ‘चाँद’। तो इस चाँद का और इस सोमनाथ मंदिर का आपस में कुछ रिश्ता है क्या, इस सवाल का जवाब ढ़ूँढते है, एक ब्रेक के बाद।

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