गलवान में भारतीय सेना ने सिखाया सबक चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग भूलेंगे नहीं – पूर्व सेनाप्रमुख जनरल नरवणे की फटकार

नई दिल्ली – चीन सभी जगहों पर ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमसी’ और ‘सलामी स्लाइसिंग’ की रणनीति का बड़ी निड़रता से इस्तेमाल कर रहा था। नेपाल, भूटान जैसे छोटे पड़ोसी देशों को ड़राना, साउथ चाइना सी के अधिक से अधिक क्षेत्र पर अधिकार होने के आक्रामक दावे करते रहे चीन को कभी इसकी कीमत चुकानी नहीं पड़ी थी। ऐसा करते समय चीन को अपने सैनिकों को कभी खोना नहीं पड़ा। लेकिन, भारत और भारतीय सेना ने आक्रामकता दिखा रहे चीन को कैसे सबक सिखाना हैं, यह पूरे विश्व को दिखाया है। १६ जून, २०२० को भारतीय सेना ने चीन को दिए झटके की वजह से चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग यह दिन इतनी जल्द भूलने की संभावना नहीं हैं। क्यों कि, उनके जन्मदिवस के दिन ही दो दशकों में पहली बार चीन को भारत की वजह से अपने सैनिक खोने पड़े थे, ऐसा बयान भारत के पूर्व सेनाप्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नवरणे ने किया है।

‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ नामक अपनी लिखी किताब में सेनाप्रमुख नरवणे ने वर्ष २०२० में गलवान घाटी में भारतीय सैनिक और चीनी जवानों के हुए संघर्ष का पुरा ब्योरा बयान किया है। यह जानकारी प्रसिद्ध हुई और इसमें जनरल नरवणे ने चीन को बेचैन करने वाली जानकारी पेश की है। गलवान में भारतीय सेना ने सिखाया सबक चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग भूलेंगे नहीं - पूर्व सेनाप्रमुख जनरल नरवणे की फटकारभारतीय सैनिकों ने दिए झटके की वजह से ताकत का प्रयोग करके हम भारत के साथ जारी सीमा विवाद खत्म नहीं कर सकते, इसका अहसास चीन को हुआ है। ऐसा दावा नरवणे ने इस किताब में किया है। साथ ही अपने सेनाप्रमुख पद के कार्यकाल के दौरान हुए गलवान संघर्ष में कर्नल संतोष बाबू सहित २० सैनिक शहीद हुए थे, यह हमारे लिए सबसे बड़ा कठिन अवसर था, यह भी जनरल नरवणे ने इस किताब में कहा है।

लद्दाख के पीपी-१५ और पीपी१७ ए में घुसपैठ करने वाली चीनी सेना वहां से लौट जाए, ऐसी मांग भारतीय सेना ने ‘फ्लैग मिटींग’ में ही की थी। चीन की सेना ने इसका स्वीकार भी किया था।

लेकिन, वापस जाने का अवसर आते ही चीन की सेना हमें अधिक समय चाहिये, ऐसा कहती थी। उनके इरादे देखकर कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना के तंबू उखाड़ना शुरू किया। इसके बाद चीन के सैनिकों ने उनपर हमला किया।

वहां उस समय घना अंधेरा था और ऐसी स्थिति में दोनों देशों के सैनिकों ने दो हाथ करना शुरू किया था। रात करीबन १.३० बजे हमें नॉर्दन आर्मी कमांड के प्रमुख लेफ्टनंट जनरल वायके.जोशी का फोन आया और उन्होंने इस संघर्ष की जानकारी साझा की, ऐसा जनरल नरवणे ने इस किताब में कहा है। साथ ही इस हरकत की कीमत चुकाने के लिए मज़बूर किया जा रहा हैं, यह भी लेफ्टनंट जनरल जोशी ने हमसे कहा, ऐसा पूर्व सेनाप्रमुख नरवणे ने इस किताब में कहा है। घने अंधेरे में कुछ भारतीय सैनिक चीन के हाथ लगे। वह घायल भी हुए थे। लेकिन, चीनी सेना ने उन पर इलाज नहीं किया। उल्टा उनपर फिर से हमला किया गया। इनमें से कुछ सैनिक वापस लौट आए। लेकिन, जानलेवा चोटों की वजह से वह बच नहीं सके। यह हमारे लिए बड़े दुःख की बात बनी। लेकिन, सैन्य सेवा के दौरान मौत हमेशा साथ चलती ही हैं, कौन सा अभियान आखरी अभियान हो सकता है, यह कह नहीं सकते, ऐसा जनरल नरवणे ने कहा।

लेकिन, कुछ समय तक चीन की हिरासत में रहे भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों के शवों को लाते हुए देखा था। ऑस्ट्रेलिया के एक खोजकर्ता ने यह जानकारी प्रदान की थी कि, इस संघर्ष में चीन ने अपने ३८ सैनिक खोए हैं। वहीं, रशियन वृत्तसंस्था ने साझा की हुई जानकारी में यह कहा था कि, इस संघर्ष में चीन ने अपने ४५ सैनिकों को खोया है। शुरू शुरू में चीन यही कहता रहा कि, इस संघर्ष में हमने एक भी सैनिक खोया नहीं हैं। बाद में चीन ने पांच सैनिकों को खोने की कबुली दी थी। लेकिन, १६ जून के दिन हुआ यह संघर्ष चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग नज़दिकी समय में भूल नहीं सकेंगे, यह दावा करके जनरल नरवणे ने गलवान घाटी के संघर्ष के कारण चीन को काफी बड़ा झटका लगने के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया। इस दौरान पश्मिची विश्लेषकों ने भी इस बात का स्वीकार किया था। चीन के सामर्थ्य का गुब्बारा भारतीय सेना ने फोड़ दिया हैं, ऐसे दावे भी ताइवान के माध्यमों ने तब किए थे।

इसी बीच, गलवान के संघर्ष की जानकारी साझा करते समय जनरल नरवणे ने दोनों देशों के बीच जारी सीमा विवाद राजनीतिक बातचीत से खत्म हो, ऐसी उम्मीद भी जताई है।

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