संप्रभुता और सुरक्षा के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्रसंघ की बैठक में भारत ने जमकर की चीन की आलोचना

संयुक्त राष्ट्रसंघ – एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान कोई देश करेगा, तभी उसकी भी संप्रभुता का सम्मान रखा जायेगा, इन शन्दों में भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में चीन की विस्तारवादी और दोगली नीति की जमकर आलोचना की। इसके द्वारा, लद्दाख के साथ ही ताइवान मसले पर भी भारत ने अप्रत्यक्ष रूप में चीन को आईना दिखाया, ऐसा विश्लेषकों का कहना है। साथ ही, संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में विकसनशील देशों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, इस बात को भी भारत की संयुक्त राष्ट्रसंघ में नियुक्त स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने इस समय अधोरेखांकित किया।

संप्रभुता‘प्रमोट कॉमन सिक्यूरिटी थ्रू डायलॉग ऍण्ड कोऑपरेशन’ इस विषय पर संयुक्त राष्ट्रसंघ की बैठक सोमवार को संपन्न हुई। इस बैठक में उन्होंने कॉमन सिक्युरिटी यानी साझा सुरक्षा के मुद्दे पर चीन को आड़े हाथ लिया। आतंकवाद जैसे मुद्दे पर अगर सभी देश एकसाथ आये और उन्होंने किसी भी प्रकार की दोगली भूमिका नहीं अपनाई, तो सुरक्षा के मामले में समन्वय संभव है, इस बात पर ग़ौर फ़रमाते हुए कंबोज ने तीख़े शब्दों में चीन की आलोचना की।

कुछ ही दिन पहले चीन ने, मुंबई पर हुए 26/11 के आतंकवादी हमले के सूत्रधारों में से एक होनेवाले अब्दुल रहमान मक्की पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारत और अमरीका ने लाये प्रस्ताव का विरोध किया था। साथ ही, संयुक्त राष्ट्रसंघ का स्थायी सदस्य होने के कारण चीन के पास रहनेवाले नकाराधिकार (वेटो) का इस्तेमाल करते हुए इस प्रस्ताव को रोका था। इस प्रस्ताव को रोकने के लिए चीन ने कोई भी पुख़्ता कारण नहीं दिया था। भारत की राजदूत कंबोज ने इसी मुद्दे को संयुक्त राष्ट्रसंघ के मंच पर सुस्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया।

साथ ही, अगर सुरक्षा के मामले में समन्वय की उम्मीद रखते हैं, तो एक देश ने दूसरे देश की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करना चाहिए, ऐसा भी भारत ने डटकर कहा। दो देशों के बीच हुए समझौतों का इकतरफ़ा उल्लंघन जब होता है और बलपूर्वक यथास्थिति बदलने की कोशिश होती है, तो वह साझा सुरक्षा का अनादर रहता है। ऐसे समय, सुरक्षा के मामले में समन्वय संभव नहीं होता। एक देश ने अगर दूसरे देश की संप्रभुता और अखंडता का आदर किया, तभी वह देश दूसरे देश से वैसी ही उम्मीद रख सकता है, इन शब्दों में कंबोज ने चीन को खरी-खरी सुनाई। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन ने अपनाई आक्रामक नीति पर भी उन्होंने इसके ज़रिये ऊँगली रखी। इस समय उन्होंने सन 2020 में चीन ने लद्दाख में की घुसपैंठ पर भी ग़ौर फ़रमाया।

कॉमन सिक्युरिटी यानी साझा सुरक्षा के कुछ तत्त्व हैं। इनमें आन्तर्राष्ट्रीय नियमों का पालन होना चाहिए, आन्तर्राष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, एकदूसरे की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए, आन्तर्राष्ट्रीय विवाद शांतिपूर्ण चर्चा और बातचीत के ज़रिये सुलझाने पर ज़ोर देना आवश्यक है। उसी प्रकार ग्लोबल कॉमन्स यानी राष्ट्रों के अधिकार से परे होनेवाले जागतिक दायरे में मुक्त एवं खुला प्रवेश मिलना चाहिए, यह बात इस समय भारत की राजदूत कंबोज ने अधोरेखांकित की।

वर्तमान समय में चीन के कई देशों के साथ विवाद जारी हैं। ताइवान पर ज़बरदस्ती से कब्ज़ा करने की कोशिश करते हुए चीन दिखाई दे रहा है। साथ ही, साऊथ चाइना सी क्षेत्र के फिलिपाईन्स, ब्रुनेई, मलेशिया, वियतनाम की सीमाओं में रहनेवाले इलाक़ों पर भी चीन दावा बोल रहा होकर, ईस्ट चाइना सी में जापान के साथ विवाद जारी हैं। इन देशों की सीमाओं में चीन के जहाज़ कई बार घुसपैंठ करते हैं। इस क्षेत्र में हो रही व्यापारी यातायात पर भी चीन ऐतराज़ जताता है। इसलिए ‘अगर आन्तर्राष्ट्रीय नियमों का पालन हुआ तो ही कॉमन सिक्युरिटी संभव है’ यह कंबोज ने रखा हुआ मुद्दा अहम साबित होता है। ख़ासकर ताइवान में अमरीका की दख़लअन्दाज़ी पर चीन ने इस बैठक में ऐतराज़ जताने के बाद, भारत की राजदूत कंबोज ने ये मुद्दें प्रस्तुत करके चीन को आईना दिखाया।

चीन के पास जल्द ही 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद का अध्यक्षपद आनेवाला है। चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और उसके पास नकाराधिकार (वेटो) है। इस पृष्ठभूमि पर, भारत ने फिर एक बार सुरक्षा परिषद के विस्तार की और सुधारों की माँग की। विकासशील देशों को सुरक्षापरिषद में अधिक प्रतिनिधित्त्च मिलना चाहिए, ऐसा मत कंबोज ने व्यक्त किया। अफ़्रीका महाद्वीप के संकटों तथा समस्याओं पर संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद में फ़ैसले किये जाते हैं। लेकिन यहाँ अफ़्रीका को प्रतिनिधित्त्व ही नहीं है, इसपर भी भारत ने ग़ौर फ़रमाया।

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