भारत की ‘रणनीतिक संस्कृति’ रामायण-महाभारत से प्रभावित होगी – विदेश मंत्री एस.जयशंकर

पुणे – भगवान कृष्ण और हनुमान विश्व के सबसे बड़े राजनयिक विशेषज्ञ थे। भारत की रणनीतिक संस्कृति रामायण और महाभारत पर आधारित ही होनी चाहिये। क्यों कि, मौजूदा समय में राजनयिक स्तर की सभी दस प्रमुख रणनीतिक अवधारणा रामायण और महाभारत में हैं, यह कहकर विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने पूरे देश के माध्यमों में सनसनी निर्माण की। उन्होंने किए इन दावों के दाखिले दे रहे रामायण और महाभारत के संदर्भ भी विदेश मंत्री जयशंकर ने पेश किए। ‘द इंडिया वे ः स्ट्रेजेजीस्‌ फॉर एन अनसर्टन वर्ल्ड’ नामक लिखे अपनी किताब के मराठी अनुवाद के प्रकाशन समारोह में विदेश मंत्री जयशंकर बोल रहे थे।

रामायण-महाभारतभारत मार्ग’ शीर्षक के इस किताब का प्रकाशन समारोह का शनिवार को पुणे में आयोजन हुआ था। इस अवसर पर बोलते हुए जयशंकर ने रणनीतिक स्तर पर देश की राह पर रामायण और महाभारत का प्रभाव होना ही चाहिये, ऐसा पुख्ता बयान किया। ‘हमसे पुछते हैं तो हमारा विश्वास है कि, भगवान कृष्ण और हनुमान विश्व के सबसे बड़े राजनयिक विशेषज्ञ है। हनुमंत ने राजनीति के आगे जाकर लंका का निरिक्षण किया, लंका का दहन भी किया, सीतामाई से प्रत्यक्ष मुलाकात की। एक ही समय पर कई मोर्चों पर काम करते रहे हनुमंत एक ‘मल्टिपर्पज्‌ डिप्लोमैट’ थे, यह दावा जयशंकर ने किया।

मौजूदा विश्व में रणनीतिक स्तर की जो भी कुछ प्रमुख अवधारणा हैं, वह सभी हम रामायण और महाभारत में देख सकते हैं, यह कहकर जयशंकर ने इन महाकाव्यों की अहमियत रेखांकित की। भगवान कृष्ण ने ‘स्ट्रैटेजिक पेशन्स’ यानी रणनीतिक संयम का सबसे बेहतर उदाहरण शिशुपाल से संबंधित प्रसंग में दिखाया है। शिशुपाल के हाथों से एक सौ अपराध होने तक भगवान कृष्ण ने उसे माफ किया। लेकिन, १०१ वें अपराध के बाद भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को खत्म किया। उचित समय पर सटीक निर्णय करने की सबक इससे प्राप्त होती है, ऐसा जयशंकर ने कहा। साथ ही महाभारत के समय में कुरूक्षेत्र में जैसे कौरव और पांड़व युद्ध के लिए एक-दूसरे के सामने खड़े हुए थे, वैसे ही इस युद्ध में कुछ तटस्थ भी रहे थे, इस ओर जयशंकर ने ध्यान आकर्षित किया।

दुर्योधन और कर्ण का एक होना घातक था और उन्होंने नियमों पर आधारित व्यवस्था का उल्लंघन किया। पूरे जीवन नियम पैरो के नीचे कुचलते रहे इन दोनों ने अपने आखरी दिनों में यह विचार रखे थे कि, अन्य लोग नियमों का पालन करे। लेकिन, ऐसा किए बिना इन दोनों को खत्म करना पड़ा। दो बुरी शक्तियों का जारी सहयोग अन्त में उनके समुदाय और विश्व के लिए भी घातक ही साबित होता है, ऐसा सूचक बयान करके जयशंकर काफी बड़ा संदेश देते दिखाई दे रहे हैं।

सीधे ज़िक्र किया ना हो, लेकिन जयशंकर ने इस बयान से दुर्योधन और कर्ण का पेश किया हुआ दाखिला पाकिस्तान और चीन से जुड़ा होने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। इसके अलावा भगवान कृष्ण की रणनीतिक संयम का दाखिला देते हुए भी जयशंकर भारत ने पाकिस्तान को लेकर दिखाए संयम की याद दिलाते दिख रहे हैं। फिलहाल पाकिस्तान के दिन पूरे होते स्पष्ट दिखाई देने लगा है और जल्द ही यह देश टूटकर बिखरने की कड़ी संभावना जताई जा रही है। ऐसे दौर में भारत को पाकिस्तान की परवाह करना सही नहीं होगा और भारत ऐसा करेगा भी नहीं, यह दिखने लगा है। साथ ही अपने ही रिश्तेदारों के विरोध में युद्ध करते समय अर्जून जैसा योद्धा भावुक हुआ था, इसकी याद भी जयशंकर ने ताज़ा की। हम अपने रिश्तेदार और पड़ोसी भी चून नहीं सकते, यह कहकर अर्जून की उलझन का संबंध भारत की मौजूदा समय में बनी स्थिति से जयशंकर ने जोड़ दिया। लेकिन, भावुक होकर हम निर्णय नहीं कर सकेंगे, अर्जून को भी ऐसा करना मुमकिन नहीं हुआ था, यह और एक संदेश जयशंकर ने देशवासियों को दिया।

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