‘रेटिंग’ के लिए भारत अब दूसरों पर निर्भर न रहें – प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार समिति सदस्यों का आवाहन

नई दिल्ली – उभरती आर्थिक शक्ति बने भारत ने ‘रेटिंग’ के लिए अब दूसरों पर निर्भर रहे बिना अपनी ‘रेटिंग’ संस्था एवं मानक बनाएं, ऐसी सलाह संजीव सान्याल ने दी। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार समिती के सदस्य होने वाले सन्याल ने किया यह आवाहन मौजूदा समय में बड़ी अहमियत रखता है। क्योंकि, विश्व स्तर के विभिन्न क्षेत्रों की रेटिंग सूचि में पिछड़े देशों को भारत से उंचा स्थान बहाल होने की बात कई बार देखी गई थी। यह भी स्पष्ट हुआ था कि, भारत को रेटिंग में जानबूझकर पीछे रखकर बदनाम करने की मंशा है। भारत के विदेश मंत्री ने इसपर रेटिंग घोषित करने वाली संस्थाओं की विश्वासार्हता पर सवाल भी खड़े किए थे।

‘रेटिंग’ के लिए भारत अब दूसरों पर निर्भर न रहें - प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार समिति सदस्यों का आवाहनजनतंत्र की परंपरा रखने वाले भारत को जनतांत्रिक देशों की सूची में रेटिंग में १०२ या १०६ वें स्थान बहाल दिया जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, हैपिनेस इंडेक्स यानी खुश देशों की सूची में भी भारत को लेकर ऐसा ही हुआ है। इसका दाखिला संजीव सान्याल ने दिया। भारत का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कार्य क्षमता से इसे दुष्प्रचार बता रहा हैं। फिर भी भारत को अपनी खूद की आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में रेटिंग तय करने वाली यंत्रणा विकसित करनी ही होगी। इसके लिए भारत ने दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिये, ऐसा सान्याल ने ड़टकर कहा।

भारत की रेटिंग एजन्सी ‘सॉवरिन रिस्क एसेसमेंट फ्रेमवर्क’ का काम शुरू हुआ हैं और वर्ष के अन्त तक यह कार्यरत होगी, ऐसी जानकारी सान्याल ने इस दौरान प्रदान की। इस वजह से अब पहली बार कोई कोई भारतीय संस्था पूरे देश का रेटिंग घोषित करेगी। वैश्विक स्तर पर उभरती आर्थिक शक्ति बने भारत के लिए यह बड़ा मुद्दा है। भारत ने दूसरें देशों को अब तक अपने ढ़ांचे को झटके देने के अनुसर दिए थे। लेकिन, अब भारत अपनी शर्तों पर विश्व का ‘रेटिंग’ करेगा, ऐसा विश्वास संजीव सान्याल ने व्यक्त किया। वहीं, ‘सॉवरिन रिस्क एसेसमेंट फ्रेमवर्क’ के कार्यकारी संचालक और महाव्यवस्थापक मेहूल पांड्या ने भी इसकी अहमियत रेखांकित की।

कोरोना की महामारी के बाद रेटिंग की अहमियत अधिक बढ़ी हैं, यह मेहूल ने स्पष्ट किया। इसी बीच, कोरोना दौर की गतिविधियों का दाखिला देकर अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं ने शुरू में भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर गुमराह करने वाले रपट जारी किए थे। लेकिन, कुछ समय बाद यही वित्तसंस्थाओं को अपने अनुमान पीछे लेने पड़े थे। अब दुनियाभर की यही वित्त संस्था यह कहने लगी है कि, भारत सबसे अधिक विकास दर के साथ प्रगति करने वाला देश साबित होगा। लेकिन, भारतीय अर्थव्यवस्था पर उन्होंने ऐसा भरोसा पहले के दौर में कभी भी दर्शाया नहीं था।

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