भारत की स्वतंत्र नेविगेशन सिस्टिम ‘नाविक’ की घोषणा

‘इरनास’ मालिका के सातवें और आख़िरी उपग्रह का इस्रो द्वारा सफल प्रक्षेपण

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‘इंडियन नेव्हिगेशनल सॅटेलाईट सिस्टिम’ (आयआरएनएसएस-इरनास) मालिका के सातवें और आख़िरी उपग्रह ‘आयआरएनएसएस१जी’ का सफल रूप में प्रक्षेपण करके भारत ने इतिहास रचा है। इस सफलता के बाद भारत ने, खुद की ‘ग्लोबल पोझिशनिंग सिस्टिम’ (जीपीएस) रहनेवाले अमरीका, रशिया, फ़्रान्स इन विकसित देशों की श्रेणि में स्थान प्राप्त कर लिया है। राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री ने इस सफलता के लिए ‘इस्रो’ तथा देशवासियों को बधाई दी है।

श्रीहरिकोटा के ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ में से लगभग १२ बजकर ५० मिनट पर ‘पीएसएलव्ही-सी३३’ रॉकेट ने अंतरीक्ष में उड़ान भरी। उसके बाद तक़रीबन २० मिनटों में उस उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के बाहर ले जाकर छोड़ना उस रॉकेट से अपेक्षित था । नियोजित समय के अनुसार ४९७.८ किलोमीटर की ऊँचाई पर यह उपग्रह अंतरिक्ष में स्थिर हो गया । उसके बाद देशभर में से ‘इस्रो’ के वैज्ञानिकों पर अभिनंदन की बरसात होने लगी । राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस सफलता के लिए इस्रो की सराहना की है ।

अंतरिक्ष क्षेत्र की भारत की क्षमता इससे पुनः एक बार सिद्ध हो गयी है और पूरे देश को इस्रो पर गर्व महसूस हो रहा है, ऐसा कहकर राष्ट्रपति मुखर्जी ने इस्रो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है । वहीं, ‘आयआरएनएसएस१जी’ का प्रक्षेपण व्हिडिओ लिंक के द्वारा देख रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपरोक्त सफलता के लिए ‘इस्रो’ के वैज्ञानिकों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है । साथ ही, इस सफलता के लिए प्रधानमंत्री ने देशवासियों को भी बधाई दी है। अंतरिक्षविज्ञान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों ने बहुत बड़ा कार्य कर दिखाया है, इसका भी ज़िक्र प्रधानमंत्री ने किया।

अब भारत अपना मार्ग स्वयं ही निश्चित करेगा और उस मार्ग पर से किस तरह चलना है इसका भी निर्णय भारत ही करेगा, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा। साथ ही, भारत की यह स्वतंत्र नेव्हिगेशन सिस्टिम इसके आगे ‘नाविक’ नाम से जानी जायेगी, ऐसी महत्त्वपूर्ण घोषणा प्रधानमंत्री ने की। इस सफलता के बाद भारत यह अमरीका, रशिया, फ़्रान्स इन देशों की तरह अपनी खुद की ‘जीपीएस’ यंत्रणा होनेवाला देश बन गया है। चीन जैसे ताकतवर देश को भी अभी तक यह सफलता नहीं मिली है।

‘नाविक’ के कारण भारत को कई स्तरों पर विभिन्न लाभ मिलनेवाले हैं। इनमें अपने देश के भीतर का तथा देश के सीमाक्षेत्र के बाहर का ‘डेटा’ सुरक्षायंत्रणाओं के लिए उपलब्ध हो सकता है। सन १९९९ में पाक़िस्तान द्वारा किये गये ‘कारगिल’ हमले के बाद, ‘अमरीका ‘जीपीएस’ द्वारा भारत की सहायता करें’ ऐसा आवाहन भारत ने किया था। उसे अमरीका ने नकार दिया था। उसके बाद इस यंत्रणा की अत्यधिक आवश्यकता महसूस होने लगी थी। इसलिए देश की सुरक्षा के मामले में ‘नाविक’ का महत्त्व असाधारण है।

तक़नीक़ी एवं विज्ञान के क्षेत्र में भी इसका बहुत बड़ा लाभ देश को मिल सकता है। मच्छिमारों को आवश्यक रहनेवाली जानकारी, साथ ही यात्रियों को अचूक रूपरेखा उपलब्ध करा देने का काम भी इस यंत्रणा के द्वारा अधिक प्रभावी रूप में किया जायेगा। इससे भारत आनेवाले समय में अपने पड़ोसी देशों के लिए आवश्यक रहनेवाली जानकारी की आपूर्ति कर सकता है, ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अभिनंदनपर संदेश में कहा है।

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