जर्मनी प्राप्त औद्योगिक महाशक्ति का स्थान पाया खो रहा है – शीर्ष माध्यमों का दावा

बर्लिन – ‘अमेरिका यूरोप से दूर हो रही हैं और हरित ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने के लिए यूरोपिय मित्र देशों से ही स्पर्धा कर रही हैं। चीन अब जर्मनी का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बना हैं और जर्मन उत्पादनों की उनकी ज़रूरत कम हुई है। रशिया के किफायती नैसर्गिक ईंधन वायू का आपूर्ति बंद होना जर्मनी के बड़े उद्योंगों पर हुआ आखरी आघात साबित हुआ है’, यह कहकर औद्योगिक महाशक्ति के तौर पर जर्मनी ने पाया स्थान जर्मनी अक खो रहा है, ऐसा दावा अमेरिकी वेबसाईट ने किया है। इस दावे की जर्मनी के माध्यमों ने भी पुष्टि की है और ‘डि-इंडस्ट्रिअलाइजेशन’ गतिमान होने का इशारा दिया है।

कुछ दिन पहले ही जर्मनी के वित्त मंत्री ख्रिस्तिअन लिंडनर ने यह कबुल किया था कि, जर्मनी अब स्पर्धात्मक देश नहीं रहा और उसका पिछड़ना शुरू हुआ है। जर्मनी प्राप्त औद्योगिक महाशक्ति का स्थान पाया खो रहा है - शीर्ष माध्यमों का दावाइससे पहले वर्ष २०२३ में जर्मनी फिर से ‘सिक मैन ऑफ यूरोप’ होने की दिशा में बढ़ रहा हैं, ऐसा अनुमान शीर्ष अभ्यास गुट एवं विश्लेषकों ने व्यक्त किया था। कोरोना के फैलाव के बाद जर्मन अर्थव्यवस्था प्रगती करेगी, ऐसे संकेत प्राप्त हो रहे थे। लेकिन, इसी बीच रशिया-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ और इस युद्ध ने इस जर्मनी को नया झटका दिया। वर्ष २०२२ की आखरी तिमाही से जर्मन अर्थव्यवस्था लगातार गोते खा रही है और अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार होने वाले उत्पादन क्षेत्र और निर्यात की बड़ी गिरावट हुई है।

रशिया-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले जर्मनी सहित कई यूरोपि देश अपने ईंधन की ३० प्रतिशत से भी अधिक ज़रूरत रशिया से ईंधन खरीद करके पुरी कर रहे थे। रशिया-यूक्रेन युद्ध में रशियाविरोधी कार्रवाई करने के लिए योगदान के रुप में अमेरिका और यूरोपिय देशों ने रशिया के ईंधन क्षेत्र पर प्रतिबंध लगाए। जर्मनी सहित अन्य प्रमुख देशों ने रशियन ईंधन की आयात बंद कर दी। इसी दौरान रशिया से जर्मनी को ईंधन आपूर्ति करने के लिए बनाई ‘नॉर्ड स्ट्रीम’ ईंधन पाइपलाइन भी उड़ा दी गई। रशियन ईंधन का स्रोत बंद होने से यूरोपिय देशों को अमेरिका सहित अन्य देशों से अधिक कीमत देकर ईंधन आयात करना पड़ा।

जर्मनी प्राप्त औद्योगिक महाशक्ति का स्थान पाया खो रहा है - शीर्ष माध्यमों का दावाजर्मनी सहित कई देशों में बिजली का दर डेढ़ से दो गुना बढ़ाना पड़ा है। बिजली की बढ़ती कीमत बर्दाश्त से बाहर होने के कारण कई उद्योग बंद पड़े। ‘अल्वारेझ ॲण्ड मर्सल’ नामक सलाहकार कंपनी की रपट के अनुसार जर्मनी की १५ प्रतिशत कंपनियां भारी मुश्किलों में हैं। जर्मनी के शीर्ष केमिकल उद्योग की क्षमता में २३ प्रतिशत गिरावट हुई है। जर्मनी में सक्रिय फ्रेंच कंपनी ‘वैलोरेक’ ने अपना उत्पादन बंद किया है। इसके अलावा ‘मिशेलिन’ और ‘गुडइयर’ इन कंपनियों ने वर्ष २०२५ तक जर्मनी में शुरू अपने कारखाने बंद करने का ऐलान किया है।

जर्मनी की कई शीर्ष कंपनियों ने पुरी तरह से या आंशिक स्तर पर अन्य देशों में स्थानांतरित करना शुरू किया है। जर्मनी के शीर्ष अखबार ‘बिल्ड’ ने साझा किए वृत्त के अनुसार उत्पादन क्षेत्र की तीन में से एक कंपनी विदेश जाने की तैयारी में है। ‘मिएल’ और ‘विझमन’ जैसी कंपनियां पोलैण्ड में स्थानांतरित हुई है और ‘फोक्सवैगन’ ने अपनी नई बैटरी फैक्ट्री अमेरिका में शुरू करने का ऐलान किया है। ‘डेलॉईट’ कंपनी ने साझा की हुई जानकारी के अनुसार ‘मेकैनिकल इंजिनिअरिंग’, ‘इंडस्ट्रिअल गुडस्‌’ और ‘ऑटोमोटिव’ क्षेत्र की ६९ प्रतिशत जर्मन कंपनियों ने अपना पूरा या आंशिक उत्पादन दूसरें देश में शुरू किया है।

जर्मनी की इस औद्योगिक गिरावट के लिए वैश्विक अस्थिरता के साथ ही राजनीतिक स्तर की निर्णय क्षमता का अभाव, बुनियादी सुविधाओं की खराब स्थिति, जनता की बढ़ती आयु, सरकारी कारोबार और शिक्षा व्यवस्था की हुई गिरावट ज़िम्मेदार होने का दावा अमेरिकी वेबसाईट ‘ब्लूमबर्ग’ ने अपने वृत्त में किया है।

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