पैलेस्टिन के मसले को नज़रअंदाज करके इस्रायल से सहयोग करने की कोशिश व्यर्थ होगी – ईरानी विदेश मंत्री की खाड़ी देशों को चेतावनी

दमास्कस – सीरिया की यात्रा कर रहे ईरान के विदेश मंत्री अमीर-अब्दोल्लाहियान ने शनिवार रात पैलेस्टिनी नेताओं से मुलाकात की। इसमें इस्रायल विरोधी आक्रामक भूमिका अपनाने वाले नेताओं का भी समावेश है। इस दौरान पैलेस्टिन का मसला इस्लामी जगत के लिए सबसे अहम था और आगे भी रहेगा, यह दावा किया गया। साथ ही इस्रायल के साथ ताल्लुकात सुधारने की सारी कोशिशें व्यर्थ होंगी, ऐसी चेतावनी भी ईरान के विदेश मंत्री ने दी है। इस्रायल में नई सरकार गठित होने पर भी इस देश की नीति बदलेगी नहीं, क्योंकि इस्रायल चरमपंथी ही है, ऐसा आरोप विदेश मंत्री अब्दोल्लाहियान ने लगाया।

ईरानी विदेश मंत्रीइस्रायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्यान्याहू की सरकार ने देश की बागड़ोर संभाली है और इस सरकार ने फिर से अपनी नीति आगे बढ़ाने की गतिविधियां शुरू की हैं। अरब-खाड़ी देशों के साथ अब्राहम समझौता करके इनके साथ इस्रायल को स्वीकृति प्राप्त करने में और उनसे सहयोग करने में नेत्यान्याहू को पहले के दौर में सफलता मिली थी। यूएई, बहरीन, मोरक्को, सुड़ान और ओमान ने इस्रायल से यह समझौता करके सहयोग स्थापित करने की दिशा में कदम उठाए थे। सौदी अरब भी इस्रायल के साथ यह समझौता करने के लिए उत्सुक होने के संकेत दिए जा रहे थे। इस्रायल के दुबारा प्रधानमंत्री बने बेंजामिन नेत्यान्याहू इसके लिए जरुरी कोशिश करेंगे, ऐसी खबरें प्राप्त हो रही हैं।

ऐसी स्थिति में ईरान के विदेश मंत्री अमीर-अब्दोल्लाहियान ने पैलेस्टिन की समस्या इस्लामी जगत के लिए सबसे अहम होने की याद दिलाई है। अपनी सीरिया यात्रा में पैलेस्टिनी नेताओं से मुलाकात करके ईरान के विदेश मंत्री ने इस्रायल के साथ सहयोग बढ़ाने की कोशिश करने वाले अरब-खाड़ी देशों पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की। पैलेस्टिन की ऐतिहासिक सीमारेखा फिर से स्थापित हुए बिना इस मसले का हल नहीं निकलेगा, ऐसी चेतावनी ईरानी विदेश मंत्री ने दी। साथ ही इस्रायल के ताल्लुकात सुधारकर पैलेस्टिन का मसला खत्म करना मुमकीन ना होने का दावा भी अमीर-अब्दाल्लाहियान ने किया है।

ईरानी विदेश मंत्री

चाहे जो हो जाए, लेकिन इस्रायल के अस्तित्व का स्वीकार नहीं करेंगे, यही ईरान की भूमिका है। अन्य देश भी यही दोहराकर पैलेस्टिन के मसले का हल निकालने के लिए पहल करें, ऐसा ईरान का आग्रह है। अब्राहम समझौता कर रहे देशों ने इस्रायल से संबंध स्थापित करके इस क्षेत्र की शांति और सुरक्षा को खतरे में डाला है, यह आरोप ईरान ने पहले लगाया था। अमीर-अब्दोल्लाहियान ने सीरिया के दौरे में किए बयान भी इसी दिशा में रुख करते हैं।

इसी बीच ईरान के विदेश मंत्री ने हाल ही में दावा किया था कि, हमारे देश को सौदी अरब के साथ फिर से राजनीतिक सहयोग स्थापित करना है। जनवरी २०१६ से सौदी अरब और ईरान के राजनीतिक संबंध खंड़ित हुए थे। तेहरान में अपने दूतावास पर हुए हमले के बाद सौदी ने ईरान स्थित अपने दूतावास को बंद कर दिया था। इसके बाद द्विपक्षीय राजनीतिक सहयोग फिर से शुरू करने के लिए अप्रैल २०२१ से दोनों देशों में इराक की मध्यस्था से बातचीत शुरू हुई। इस बातचीत के पांच दौर होने के बावजूद इसे खास सफलता प्राप्त नहीं हुई थी। लेकिन, सौदी और ईरान के बीच राजनीतिक सहयोग शुरू होने की संभावना को ईरान के विदेश मंत्री के टेढे बयान से अधिक खतरा निर्माण हुआ है।

कुछ भी हो जाए, पैलेस्टिन के मसले को नज़रअंदाज करके इस्लामी देशों को इस्रायल के ताल्लुकात सुधारना मुमकीन नहीं होगा, ऐसे दावे ईरान कर रहा है। वहीं, दूसरी ओर सौदी अरब और सौदी के खाड़ी के मित्रदेश ईरान से खतरे के खिलाफ इस्रायल से सहयोग की कोशिश कर रहे हैं। इसी में अमरीका के बायडेन प्रशासन की घातक नीति के कारण खाड़ी देश अपनी सुरक्षा के लिए इस्रायल के अधिक नज़दिक जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में ईरान ने इस्रायल से सहयोग करने के मुद्दे पर सौदी और सौदी के प्रभाव वाले देशों को दी गई चेतावनी ध्यान आकर्षित करती है।

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