अफ़गानिस्तान की तालिबानी हुकूमत को चीन आर्थिक सहायता प्रदान करेगा

बीजिंग – तालिबान ने अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद अमरीका ने अपने देश में मौजूद अफ़गानिस्तान के लगभग ९ अरब डॉलर्स के ऐसेटस्‌ जब्त किए हैं। इसके साथ जल्द ही हो रही ‘जी ७’ की बैठक में तालिबान पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय हो सकता है। ऐसी स्थिति में चीन ने अफ़गानिस्तान को आर्थिक सहायता प्रदान करने का ऐलान किया है। बीते कुछ दिनों में अफ़गानिस्तान में निर्माण हुआ आर्थिक खालीपन मिटाने के लिए यह सहायता आवश्‍यक होने का बयान चीन ने किया है। एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों पर कर्ज़ का फंदा कसने के बाद चीन ने अब इसमें अफ़गानिस्तान को भी फंसाने की पूरी तैयारी जुटाई दिख रही है।

बीते सात दिनों में अमरीका के बाद यूरोपिय महासंघ ने अफ़गानिस्तान के विकास कार्यों के लिए मंजूर किया फंड़ रोक रखा है। इसी बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश ने अफ़गानिस्तान को पारित की हुई ३७ करोड़ डॉलर्स की सहायता तालिबान इस्तेमाल नहीं कर सकेगी, यह स्पष्ट किया। साथ ही अमरीका, यूरोपिय मित्रदेश एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अफ़गानिस्तान की तालिबानी हुकूमत को स्वीकृति प्रदान नहीं की है। रशिया ने अफ़गानिस्तान पर हुए तालिबान के कब्ज़े का समर्थन किया है, फिर भी इस संगठन को ‘टेरर लिस्ट’ से हटाया नहीं है, यह भी स्पष्ट किया है।

पश्‍चिमी देशों की इस भूमिका पर चीन के विदेश मंत्रालय ने आलोचना की है। अमरीका और यूरोपिय देशों का यह निर्णय अफ़गानिस्तान की आर्थिक घेराबंदी करने की आलोचना चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वैंग वेंबिन ने की है। अफ़गानिस्तान की बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करने के लिए और उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए चीन सकारात्मक भूमिका निभाएगा, यह बयान वेंबिन ने किया है। घोषणा किए बगैर अफ़गानिस्तान की तालिबानी हुकूमत को आर्थिक सहायता प्रदान करने के संकेत भी वेंबिन ने दिए हैं।

अफ़गानिस्तान की बुनियादी सुविधाओं में चीन ने करोड़ों डॉलर्स का निवेश किया है। चीन की सरकार अफ़गानिस्तान में कुल गड़बड़ी के लिए अमरीका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया को ज़िम्मेदार ठहरा रही है। अमरीका की वापसी के बाद अफ़गानिस्तान में निर्माण हुई गड़बड़ी की वजह से चीन के इस निवेश को खतरा निर्माण होने की बात विश्‍लेषक कह रहे हैं। लेकिन, इस मामुली निवेश से भी अधिक तकरीबन तीन ट्रिलियन डॉलर्स के ‘रेअर अर्थ’ यानी दूर्लभ खनिज संपत्ति पर चीन की नज़र हैं, इस ओर अंतरराष्ट्रीय विश्‍लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

अफ़गानिस्तान में सोना, लिथियम, कॉपर, र्इंधन एवं अन्य खनिजों के बड़े भंड़ार मौजूद होने के दावे किए जा रहे हैं। अफ़गानिस्तान के खनिजों का खनन किया जाए तो यह देश ‘लिथियम’ से भरा सौदी अरब बन जाएगा, ऐसा बयान अमरिकी रक्षा मंत्रालय ने वर्ष २०१० में किया था। लिथियम का यह भंड़ार चीन को अफ़गानिस्तान में आकर्षित कर रहा है। साथ ही अमरीका की वापसी के बाद चीन की ‘बेल्ट ऐण्ड रोड’ योजना में अफ़गानिस्तान अहम चरण साबित हो सकता है।

इसके लिए चीन अफ़गानिस्तान की तालिबानी हुकूमत को आर्थिक सहायता प्रदान करने के संकेत देता हुआ दिखाई दे रहा है। लेकिन, एशिया और अफ्रीका के अन्य गरीब देशों की तरह चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत अफ़गानिस्तान पर भी कर्ज़ का फंदा कसने की तैयारी इस आर्थिक सहायता के जरिए कर रहा है। इसके लिए तालिबान की क्रूर और तानाशाही हुकूमत चीन के लिए काफी अनुकूल साबित हो सकती है। इसी वहज से चीन तालिबान का जोरदार समर्थन कर रहा है। लेकिन, चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने तालिबान का समर्थन करने की वजह से चीन की जनता ही बेचैन हुई है। इस महीने के शुरू में चीन के विदेशमंत्री वैंग ई ने तालिबान के दूसरे क्रमांक का नेता मुल्ला बरादर से भेंट की थी। इसके बाद चीन के सोशल मीडिया पर नाराज़गी व्यक्त करनेवाले पोस्ट प्रसिद्ध हुए थे।

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