जिनपिंग की हुकूमत ने तालिबान का समर्थन करने से चीन की जनता में बेचैनी

बीजिंग/काबुल – चीन की हुकूमत और प्रसारमाध्यम तालिबान चीन की भागिदार बन सकती है, ऐसा चित्र खड़ा करने की कड़ी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, इन कोशिशों पर चीनी जनता तीव्र नाराज़गी जता रही है और सोशल मीडिया पर यह नाराज़गी जतानेवाले पोस्ट प्रसिद्ध हो रहे हैं। तालिबान की हिंसक एवं आतंकी पृष्ठभूमि और उनके महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के मुद्दे चीनी नेटिज़न्स ने आक्रामकता से उठाए हैं। यह बात चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत को मुश्‍किल में डाल सकती है, विश्‍लेषक यह दावा कर रहे हैं।

china-jinping-talibanतालिबान ने अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करने का ऐलान करने के बाद इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दर्ज़ करनेवाले देशों में चीन सबसे आगे था। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने अफ़गानिस्तान की नई हुकूमत से मित्रता और सहयोग के ताल्लुकात रखने के लिए चीन उत्सुक होने का बयान किया था। इसके बाद चीन के राजनीतिक अधिकारी एवं सरकारी प्रसारमाध्यमों ने भी ऐसा प्रचार शुरू किया था कि, तालिबान अफ़गान नागरिकों द्वारा चुना गया विकल्प है। कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ‘पीपल्स डेली’ ने तालिबान पर एक मीनिट का वीडियो भी जारी किया था। इस पूरे वीडियो में तालिबान के आतंक का ज़िक्र बिल्कुल नहीं था।

चीन की सोशल मीडिया वेबसाईट ‘वायबो’ पर यह वीडियो वायरल हुआ और इसके खिलाफ आक्रामक प्रतिक्रियाएं दर्ज़ हुईं। चीन के कई नेटिज़न्स ने तालिबान के हिंसक इतिहास की याद दिलाई। कुछ लोगों ने तालिबान ने बामियान में ध्वस्त किए गौतम बुद्ध की मूर्तियों का ज़िक्र करके तालिबान की मानसिकता का अहसास कराया। तालिबान ने महिलाओं को शिक्षा पाने से एवं काम करने से रोका है, इस ओर भी चीनी नेटिज़न्स ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। ‘वुई चैट’ नामक वेबसाईट पर तालिबान पर आशंका जतानेवाला एक लेख भी प्रसिद्ध किया गया है।

‘इज तालिबान द चॉईस ऑफ अफ़गानिस्तान पीपल?’ नामक लेख को एक लाख से अधिक ‘व्यूज’ मिले हैं। अफ़गानिस्तान की एक नामांकित सिने निर्देशिका का निवेदन चीन की सोशल मीडिया से हटाने पर भी तीव्र प्रतिक्रिया दर्ज़ हुई है। सोशल मीडिया पर कई महिलाओं ने यह आरोप लगाया कि, सत्ताधारी हुकूमत आप अफ़गान महिलाओं की आवाज़ दबा रहे हैं। चीन से संबंधित कुछ विश्‍लेषक भी चीनी हुकूमत तालिबान से सहयोग करने में जल्दबाजी कर रही है, यह बयान करके नाराज़गी जता रहे हैं।

अमरिकी वेबसाईट ‘ब्लूमबर्ग’ द्वारा जारी एक वृत्त में यह इशारा दिया है कि, अफ़गानिस्तान में समावेश बढ़ाना और तालिबान की हुकूमत से सहयोग करना चीन की ‘बेल्ट ऐण्ड रोड इनिशिएटिव’ योजना के लिए खतरा हो सकता है। अफ़गानिस्तान में तालिबान के स्थिर होने पर पाकिस्तान में मौजूद आतंकी गुटों को ताकत मिलेगी और पाकिस्तान में आतंकी हमले बढ़ेंगे, ऐसा कहा जा रहा है।

तो, कनाड़ा के ‘द इंटरनैशनल फोरम फॉर राईटस्‌ ऐण्ड सिक्युरिटी’ नामक अध्ययन मंडल ने तालिबानी हुकूमत के दौर में झिंजियांग प्रांत के उइगरवंशियों का ‘द ईस्ट तुर्कस्तान इस्लामिक मुवमेंट’ (ईटीआयएएम) संगठन चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, यह इशारा भी दिया था। बीते महीने तालिबानी शिष्टमंडल ने चीन की यात्रा की थी और इस दौरान चीन के विदेशमंत्री ने इसी मुद्दे पर चिंता जताकर तालिबान से वादा लिया होने की बात कही जा रही है।

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