श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३७ )

प्रथम अध्याय की इस गेहूँ पीसनेवाली कथा के माध्यम से साईनाथजी हमें जीवन-विकास का गुरु-मंत्र दे रहे हैं। उचित आचरण करके हर एक कार्य को १०८  प्रतिशत यशस्वी कैसे किया जा सकता है, इसका मार्गदर्शन साईनाथ स्वयं के आचरण के द्वारा कर रहे हैं । अब तक हमने छ: मुद्दों का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया :

Saibaba_Dalan - जीवन-विकास१) समय का अचूक नियोजन करना
२) कार्य के साथ-साथ स्वयं से संबंधित अन्य सभी बातों का पूरा ध्यान रखना
३) अंतिम ध्येय की निश्चिति कार्य शुरु करने से पूर्व ही करके उसका सदैव ध्यान रखना
४) समग्र पूर्व तैयारी कर लेना
५) स्वयं की भूमिका का अध्ययन एवं सिद्धता
६) कार्यविरोधी एवं कार्यबाधक बातों का विचार करके पहले से ही इन्तजाम करके तैयार रहना

इसके बाद सातवी महत्त्वपूर्ण बात बाबा के आचरण से जो हम सीखते हैं, वह है- प्रमाणबद्धता । बाबा की गेहूँ पीसने की क्रिया में गेहूँ नाप कर लेने से लेकर आटा सूप में भरने तक की क्रियाओं में हर एक चीज़ ठीक से मौजूद है। बाबा ने कोई भी कार्य अंधेरे में तीर चलाने जैसा नहीं किया है यानी हर कार्य नाप-तोल कर ही किया है । जितना आटा बाबा को चाहिए था उस हिसाब से उतना ही गेहूँ बाबा ने गोनी से निकाला ।

हाथ लेकर एक सूप । गये गेहूँ की गोनी के समीप ।
भरभर कर मापक । गेहूँ सूप में निकाल लिये॥

बाबा ने हाथों से अंजुल भरकर अथवा अन्य किसी भी चीज़ से गेहूँ के दानें नहीं लिये थे, बल्कि अनाज नापनेवाला जो मापक था उसी से नापकर ही गेहूँ के दानें लिये थे । एक पायली (चार सेर) आटे के लिए एक पायली ही गेहूँ के दानें नहीं लिये, बल्कि एक माप गेहूँ बाबा ने जानबूझकर ही ज्यादा लिया क्योंकि पीसते समय थोडा़-बहुत गोनी में चिपक जाता है, थोडा़-बहुत इधर-उधर गिर जाता है । इस तरह सभी पहलुओं के बारे में सोच-समझकर ही बाबा ने गेहूँ थोडा़ ज्यादा ही लिया था । इन सब बातों पर गौर करते हुए अचूक प्रमाण का ज्ञान इस मुद्दे को ध्यान में रखना आवश्यक है, यही बोध मिलता है ।

हम यदि ऐसा कोई काम करते हैं, जिसमें कच्चे माल पर कोई प्रक्रिया होते समय उस में से कुछ प्रमाण में घटौती होती है, तो ऐसे समय पर हमें हमारी अपेक्षित राशि के अनुसार उचित प्रमाण में पदार्थ लेना चाहिए । इन सब बातों का हिसाब-किताब रखकर ही हमें कार्य शुरू करना चाहिए । नहीं तो पाँच किलो कच्चा माल लेकर पाँच किलो पक्का माल मिलने का हिसाब रखकर सिर्फ़ पाँच किलो ही कच्चा माल हम ले लेते हैं तो उसमें से काट-छाँटकर, घट-घटाकर हमें कम उत्पाद मिलता है। हमारा हिसाब-किताब गलत हो जाता है । बाबा यहाँ पर गेहूँ को मापक से नापकर लेने की क्रिया के द्वारा हमें अचूक प्रमाणबद्ध रूप से कार्य करने का महत्त्व सिखा रहे हैं । बाबा को जो एक पायली आटा चाहिए था, उतना ही उन्हें पूरा का पूरा बिना किसी काट-छाँट के मिल गया ।

कोई भी कार्य करते समय कम या अधिक प्रमाण में कोई भी पदार्थ न लेकर जितने प्रमाण में आवश्यक है, उतने ही प्रमाण में लेना चाहिए । कम लेने पर हमें हमारी अपेक्षा के अनुसार वह चीज़ नहीं मिलेगी और यदि हम अधिक लेते हैं तो बचा हुआ पदार्थ यूँ ही बेकार होकर पडा रहेगा । और यदि वह खराब होनेवाली चीज़ है तो बची हुई चीज यूँ ही पडी रहने के कारण खराब हो जायेगी और अंतत: हमारा ही नुकसान होगा ।

जाँते के खूंटे का चुनाव करते समय भी हमें इस बात का पूरा पूरा ध्यान रखना चाहिए कि वह जाँते के खाचे में ठीक से बैठ सके, हाथ से ठीक से उसे पकड़ा जा सके उतना ही वह चौड़ा हो और उतना ही ऊँचा हो, जाँते का निचला तह भी बहुत बडा़, वज़नदार अथवा बिलकुल छोटा या हलका नहीं होना चाहिए । जाँते का तह यदि बहुत भारी होगा तब भी पीसते समय वह तकलीफ ही देगा और यदि हलका या छोटा होगा तब भी वह अधिक समय लेगा ।

हर एक चीज प्रमाण के अनुसार लेने से हर तरह से हमें ‘फायदा’ ही होता है । जैसे कि समय, पैसा, परिश्रम आदि बातों की बचत होती है । किसी भी कार्य में यदि हम बचत करते हैं तो वह बचत हमारा लाभ ही होता है ।

जाँते से कितना अंतर रखकर बैठना चाहिए, बोरी कितने दूर तक फैलानी चाहिए, सूप भी कितना बड़ा लेना चाहिए इन सब बातों का प्रमाण भी महत्त्वपूर्ण है । मान लीजिए कि यदि सूप को हम ऊपर तक भर देते हैं तो इस बात का ध्यान भी हमें रखना होगा कि उस गेहूँ के पीसे जाने पर आटा भी बढ़ जायेगा और यदि पीसने के बाद आटा भी हमें उसी में रखना हैं तो इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि सूप कम से कम इतना ऊँचा हो जिसमें गेहूँ के पीसे जाने पर वह आटा उस सूप में ठीक से आ सके, नीचे न गिरने पाये ।

इससे हमें क्या सीखना है? तो हमारा महीने भर का अथवा साल भर का ‘बजट’ हमें प्रमाणबद्ध बनाना चाहिए। श्रीसाईसच्चरित के प्रथम अध्याय में ही साईनाथजी जीवन का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पाठ हमें सिखा रहे हैं । हमारी आमदनी और हमारा कुल मिलाकर होनेवाला खर्च इन दोनों का ताल-मेल बिठाने के लिए हमें गेहूँ पीसनेवाली इस क्रिया के मर्म को समझ लेना बहुत ज़रूरी है ।

जितना गेहूँ है, उतना ही आटा तैयार होनेवाला है और पीसते समय वह थोड़ा-बहुत गिरेगा ही, बोरी में भी चिपकेगा भी और इन जैसे अन्य कारणों से वह कुछ कम तो होगा ही । हमारा खर्च हमारी आमदनी के अनुसार ही होना चाहिए । साथ ही इस आटे को मान लो हमें पूरा महिनाभर चलाना है, तो रोज कितना लगेगा, उसके प्रमाण का अंदाज़ा भी हमें होना चाहिए । इसी तरह ‘आटा’ अगले महीने की एक तारीख तक यदि फिर से गेहूँ पीसते नहीं बना या कोई रुकावट आ गई तो इन सब बातों को ध्यान में रखकर आटा कुछ अधिक मात्रा में बचाकर भी रखने आना चाहिए । फिर यदि कोई मेहमान अचानक आ जाते हैं, तो उस हिसाब से भी हमें आटा कुछ अधिक मात्रा में बचाकर रखने आना चाहिए ।

हर घर में सुबह उठते ही सर्वप्रथम यदि कोई क्रिया होती है, तो वह है गेहूँ पीसने की क्रिया । इस गेहूँ पीसने की कथा के माध्यम से साईनाथ हमारी गृहस्थी एवं परमार्थ इन दोनों की नींव मज़बूत करते हैं । हमारा जमा-खर्च, उसका हिसाब-किताब और उसका परस्पर एक-दूसरे के साथ होनेवाला ताल-मेल ठीक होने से ही हमारी गृहस्थी की गाड़ी ठीक से चलती है । नहीं तो ‘आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया’ ऐसा होने पर कर्ज़ के बोझ से हम दबते चले जाते हैं । इसीलिए चद्दर के अनुसार पाँव फैलाना ही बुद्धिमानी कहलायेगी । यह केवल आर्थिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि जीवन के हर एक क्षेत्र में होना चाहिए ।

हमें अपने मासिक खर्च का एक हिस्सा (अपनी क्षमता के अनुसार) भगवान के बच्चों की यानी दीन-दुखियों की सेवा के लिए, सत्पात्री दान के लिए बचाकर रखना ही चाहिए, क्योंकि जिन भगवान की कृपा से मुझे यह सब कुछ मिल रहा है उनके इस ऋण का स्मरण इसी क्रिया से मुझ में बना रहता है । साथ ही, यदि कभी अचानक स्वास्थ्य खराब हो जाता है, तब उसके लिए लगनेवाली धनराशी का इंतजाम भी मुझे करके रखना ही चाहिए । अचानक उद्भवित होनेवाली भी कुछ बातों के लिए (उदाहरण के तौर पर- दुर्घटना होती है, कोई उपकरण यदि बिगड़ जाता है तो आदि के लिए) कुछ रकम सँभालकर रखनी चाहिए ।

जब तक हाथ-पैर सलामत हैं तब तक तो ठीक है, पर बुढ़ापे का क्या? दवा-पानी, खाना-पीना आदि बातों के लिए भी हमें इंतजामकरके रखना चाहिए । मेरी सेवा यह व्यक्ति करेगा, वह व्यक्ति करेगा, बच्चे मेरा ध्यान रखेंगे ऐसी कल्पनाएँ करना व्यर्थ है । गृहस्थी के साथ-साथ अन्य सभी जिम्मेदारियों के साथ आर्थिक समस्या के समान ही अन्य सभी प्रश्नों का विचार करते हुए पहले से ही इंतजाम करके रखने में ही समझदारी है ।

बाबा, मापक से गिनकर गेहूँ लेते हैं और थोड़ा-थोड़ा करके उसे जाते के मध्यभाग में डालते हैं और पच्चड बिठाकर महीन आटे के लिए जितना ज़रूरी है, उतने ही प्रमाण में कितना गेहूँ अंदर डालना चाहिए इस बात का ध्यान वे रखते ही हैं । बाबा हर एक कार्य को प्रमाणबद्ध रूप में ही कर रहे हैं । फिर भला हमारी क्या बिसात है?

रामनाम वही में रोज भगवान का नाम लिखना, चरखा भी समय-समय पर चलाना, श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथराज के, सुंदरकाण्ड के, साईसच्चरित के निर्धारित कुछ पन्ने अथवा पंक्तियाँ पढ़ना इन सब का नियम बनाकर उसके अनुसार ही उनका पठन करना बहुत जरूरी है क्योंकि नित्यनियम के अनुसार किया जानेवाला पठन हमें बरकत के साथ साथ परमेश्वरी उर्जा प्रदान करता है और  इससे हमारा हिसाब-किताब, हमारा निर्णय आदि अधिक से अधिक अचूक होता है ।

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