परमहंस- १

परमहंस- १

‘‘रामकृष्ण परमहंस का जीवनचरित्र यानी दैनंदिन जीवन में भी धर्मपालन किस तरह किया जा सकता है, इसकी मूर्तिमान् मिसाल ही है। उनके जीवनचरित्र का पठण हमें, परमात्मा का साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के लिए आवश्यक रहनेवाली मन की बैठक प्रदान करता है। उनके जीवनचरित्र का अध्ययन करते हुए, ‘परमात्मा यही एकमात्र सत्य है और बाक़ी […]

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क्रान्तिगाथा-१५

क्रान्तिगाथा-१५

मेरठ के भारतीय सैनिक जिस वक़्त अँग्रेज़ों के खिलाफ़ खड़े हो गये, उसके बाद अन्य जगहों के अँग्रेज़ों ने, खास कर सेना अफ़सर रहनेवाले अँग्रेज़ों ने अधिकतर इलाक़ों में वहाँ पर रहनेवाले अँग्रेज़ों की सुरक्षा व्यवस्था का इंतज़ाम करना शुरू कर दिया था। ५ जून को जब कानपुर स्थित भारतीय सैनिकों ने अँग्रेज़ों के खिलाफ़ […]

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नेताजी- ६०

नेताजी- ६०

गाँधीजी फिर से राजनीति में सक्रिय सहभाग लेकर कायदेभंग जैसा कोई राष्ट्रव्यापी आन्दोलन छेड़ें और सायमन कमिशन के खिला़फ भारत में ख़ौल उठे जनक्षोभ को उचित दिशा दे दें, यह ‘सुभाष-नीति’ नाक़ामयाब हो गयी। भारत के स्वतन्त्रतासंग्राम में आसमान की बुलंदी को छू लेनेवाले दो महामानवों के बीच की वैचारिक दरार अधिक सा़फ़ ऩजर आने […]

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समय की करवट (भाग १४)– ‘मास मेंटॅलिटी’ अर्थात् समूह का मानसशास्त्र

समय की करवट (भाग १४)– ‘मास मेंटॅलिटी’ अर्थात् समूह का मानसशास्त्र

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। जिसके पास संस्कृति की रक्षा की ताकत है और जिससे संस्कृतिरक्षा की उम्मीद की जा सकती है, ऐसे भारतीय मध्यमवर्ग के बारे में हमने देखा। आज तक ‘पूअर मिड्ल क्लास’ ऐसे तानों से जिसे संबोधित किया गया, […]

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नेताजी- ५९

नेताजी- ५९

सन १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहकार आन्दोलन को अचानक से स्थगित कर देने के बाद, आगे के पाँच-छः सालों तक काँग्रेस के पास कोई भी ठोस कार्यक्रम नहीं था। लोग शिथिल हो गये थे। ऐसे समय सायमन कमिशन का भारत आना, यह सुभाषबाबू को स्वर्णिम अवसर जैसा प्रतीत हुआ। भारत में पहले से ही सायमन […]

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क्रान्तिगाथा- १४

क्रान्तिगाथा- १४

भारतीयों को ग़ुलाम बनानेवाले अँग्रेज़ों को शायद लग रहा था कि भारतीयों के रगों में बहनेवाली बहादुरी अब खत्म हो गयी है। लेकिन १८५७ के इस स्वतन्त्रतासंग्राम ने अँग्रेज़ों की इस सोच की धज्जियाँ उडा दी। क्योंकि १८५७ के इस स्वतन्त्रता यज्ञ में एक आम आदमी से लेकर राजा-महाराजाओं तक कई भारतवासी दास्यमुक्त होने के […]

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नेताजी-५८

नेताजी-५८

सन १९२७ के नवम्बर महीने में सभी जातिधर्मों के लोगों का सहभाग रहनेवाली ‘युनिटी कॉन्फ्रेंस’का आयोजन किया गया था और उसका कारण था, भारत के राजकीय माहौल का जाय़जा लेने, साल के अन्त में भारत आ रहा – सायमन कमिशन । सन १९१९ में हुए माँटेग्यू-चेम्सफर्ड सुधारों के अनुसार भारतीयों को धीरे धीरे सत्ता में […]

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क्रान्तिगाथा-१३

क्रान्तिगाथा-१३

जून के महीने की शुरुआत ही हुई थी, सारे भारतवर्ष के सैनिकों के लिए एक चेतना भरा माहौल लेकर। मई के अन्त में और जून के पहले ह़फ़्ते में उत्तरी भारत के इला़कें एक के बाद एक करके आज़ाद होने के लिए युद्ध के मैदान में उतरने लगे थे। दिल्ली का तख़्त अपने कब्ज़े में […]

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नेताजी- ५७

नेताजी- ५७

बिगड़ी हुई तबियत को थोड़ी राहत मिलते ही सुभाषबाबू ने देश की और ख़ासकर बंगाल की परिस्थिति का जाय़जा लेना शुरू किया। बंगाल में – कोलकाता के मेयर, बंगाल असेंब्ली में काँग्रेस के नेता और बंगाल प्रान्तिक काँग्रेस के अध्यक्ष इस तेहरी जिम्मेदारी को समर्थ रूप से सँभालनेवाले दासबाबू का इसवी १९२५ में देहान्त हो […]

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समय की करवट (भाग १३)– जहाँ संस्कार ‘मिड्लक्लास मेंटॅलिटी’ साबित होते हैं….

समय की करवट (भाग १३)– जहाँ संस्कार ‘मिड्लक्लास मेंटॅलिटी’ साबित होते हैं….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। हमने ‘ग्रेट इंडियन मिड्ल क्लास’ के बारे में जाना। बुरी तरह फँसी जागतिक अर्थव्यवस्था किस तरह अपने आप को बचाने के लिए इस भारतीय मध्यमवर्गीय की ओर उम्मीद से देख रही है, यह हमने देखा। आज तक […]

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