क्रान्तिगाथा-१७

क्रान्तिगाथा-१७

१८५७  के जून के महीने का आखरी सप्ताह कानपुर की तरह लखनौ के लिए भी स्वतंत्रता के सूर्योदय को अपने साथ ले आया। चिन्हत् की हार के बाद लखनौ के अँग्रेज़ों ने अपनी रेसिडन्सी की पनाह ले ली और लखनौ में नवाब का बेटा, जो इस समय बहुत ही छोटा था, उसे राजगद्दी पर बिठाकर […]

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नेताजी-६३

नेताजी-६३

सन १९२८ के कोलकाता काँग्रेस के मंडप में ही संचालित किये गये युवक काँग्रेस के अधिवेशन में सुभाषबाबू द्वारा की गयी स्पष्टोक्ति की गूँज कई दिनों तक फ़ैली हुई थी। हालाँकि इस स्पष्टोक्ती से अरविंदबाबू तथा गांधीजी के समर्थक बहुत ही नारा़ज हो गये थे, लेकिन सुभाषबाबू का विरोध उन व्यक्तियों को नहीं, बल्कि मह़ज […]

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परमहंस- ४

परमहंस- ४

खुदिराम एवं चंद्रमणीदेवी को हुए उन दिव्य दृष्टांतों के बाद वे दोनों भी आगे घटित होनेवाली ‘उस’ दिव्य घटना की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगे। उससे पहले के – रामकुमार, रामेश्वर एवं कात्यायनी इन तीन सन्तानों के बाद अब इस ईश्वरीय सन्तान का आगमन होनेवाला था। इस प्रतीक्षा के दौर में, आम तौर पर ‘शुभशकुन’ […]

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समय की करवट (भाग १६)- ‘हर्ड मेंटॅलिटी’ : झुँड़ का मानसशास्त्र

समय की करवट (भाग १६)- ‘हर्ड मेंटॅलिटी’ : झुँड़ का मानसशास्त्र

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। यह समय की करवट कई बार सैंकड़ों-हज़ारों सालों के बाद बदलती होने के कारण और सैंकड़ों-हज़ारों सालों तक वह स्थिति क़ायम रहती होने के कारण (और स्वाभाविक रूप में, उसके नाम में रहनेवाले ‘समय’ इस शब्द के […]

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परमहंस-३

परमहंस-३

कामारपुकूर में धीरे धीरे खुदिरामजी का जीवन सुचारु रूप से जम रहा था। वैसे तो वे पहले से ही धार्मिक वृत्ति के होने के कारण, जैसा हो सके वैसी तीर्थस्थलों की यात्राएँ भी करते थे। यहाँ कामारपुकूर में थोड़ाबहुत जीवन दस्तूरी हो जाने के बाद खुदिराम ने रामेश्वर की यात्रा की थी। उसके कुछ समय […]

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क्रान्तिगाथा-१६

क्रान्तिगाथा-१६

वह १८५७ के जून महीने का आखिरी ह़फ़्ता था, मग़र अब भी कानपुर के अँग्रेज़ अपने आश्रयस्थल में से हटने के लिए तैयार नहीं थे। आख़िर इसपर एक तरकीब सोची, नानासाहब पेशवा और उनके साथियों ने। २४ जून १८५७ को अँग्रेज़ों के आश्रयस्थल में नानासाहब पेशवा का सन्देश लेकर एक युध्दबंदी चला गया। नानासाहब के […]

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नेताजी- ६२

नेताजी- ६२

गाँधीजी के आदेश के अनुसार मोतीलालजी ने सन १९२८ की कोलकाता काँग्रेस के अध्यक्षस्थान का स्वीकार तो किया, लेकिन अपनी ‘नेहरू रिपोर्ट’ का क्या होगा, यह चिन्ता उन्हें सता रही थी। इस रिपोर्ट पर काँग्रेस कार्यकारिणी में हुई बहस में सुभाषबाबू के विरोधी सूर में उनके बेटे जवाहरलालजी ने मिलाया हुआ सूर और सुभाषबाबू के […]

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परमहंस-२

परमहंस-२

दौर लगभग उन्नीसवीं सदी के पूर्वाध का…. स्थल कामारपुकूर….कोलकाता की वायव्य दिशा में लगभग साठ किलोमीटर की दूरी पर, शहर की भीड़ का संसर्ग न रहनेवाला, हुगळी ज़िले में बसा एक छोटासा गाँव….छोटा यानी इतना छोटा कि मानो गाँव के एक कोने में कोई फुसफुसाया, तो गाँव के दूसरे कोने में सुनायी दें! चावल की […]

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समय की करवट (भाग १५)– ‘मास मेंटॅलिटी’ : झुँड़ या टीम?

समय की करवट (भाग १५)– ‘मास मेंटॅलिटी’ : झुँड़ या टीम?

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इस अध्ययन में, यह ‘मास मेंटॅलिटी’ का – समूह के मानसशास्त्र का अध्ययन करना ज़रूरी है, क्योंकि यही ‘मास मेंटॅलिटी’ समाज को ‘झुँड़’ बना सकती है और यही मास मेंटॅलिटी समाज का रूपांतरण एक बलशाली ‘टीम’ में […]

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नेताजी-६१

नेताजी-६१

सुभाषबाबू ने जमशेदपूरस्थित टाटा स्टील कंपनी के म़जदूरों की जाय़ज माँगों के लिए व्यवस्थापन के साथ किया हुआ यशस्वी संघर्ष और लाहौर में सायमन कमिशन के खिला़फ़ निकाले गये निषेध मोरचे पर किये गये लाठीचार्ज में लालाजी का हुआ निधन इन घटनाओं को अपने में समेटकर १९२८ का वर्ष अपने अस्त की ओर बढ़ने लगा। […]

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