परमहंस-२८

परमहंस-२८

७ साल की उम्र में ही गदाधर के सिर पर से पिता का साया उठ जाने के कारण, उनके बाद उसके लिए पितासमान रहनेवाले बड़े भाई रामकुमार की मृत्यु गदाधर को अधिक ही अंतर्मुख बना गयी। उसके बाद कई दिनों तक गदाधर शोकाकुल अवस्था में ही था और अपना अधिक से अधिक समय वह कालीमाता […]

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समय की करवट (भाग २८) – ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’ ‘युरोपियन युनियन’

समय की करवट (भाग २८) – ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’ ‘युरोपियन युनियन’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-८६

नेताजी-८६

रशिया में प्रवेश करने की कोशिशें नाक़ाम होने पर सुभाषबाबू ने अब जर्मनी पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जर्मनीप्रवेश की अनुमति तो उन्हें इंडिया ऑफिस से बाक़ायदा मिल ही चुकी थी। १७ जुलाई १९३३ को सुभाषबाबू ने बर्लिन में कदम रखा। उनके आगमन की ख़बर वहाँ की इंडो-जर्मन सोसायटी को दी गयी थी। प्रथम विश्‍वयुद्ध […]

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परमहंस-२७

परमहंस-२७

गदाधर अब दक्षिणेश्‍वर के कालीमाता मंदिरसंकुल का अभ्यस्त हो चुका था और उसका हररोज़ का दिनक्रम भी नियमित रूप से संपन्न होने लगा था। लेकिन कालीमाता के प्रत्यक्ष दर्शन करने की उसकी आस दिनबदिन बढ़ती ही जा रही थी। उसके हररोज़ के दिनक्रम के भजनों में भी अब अधिक आर्तता आने लगी थी। बीच में […]

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क्रान्तिगाथा-२८

क्रान्तिगाथा-२८

२८ दिसंबर १८८५ को हुई एक घटना ने भारत के स्वतन्त्रतासंग्राम के आन्दोलन में एक अहम भूमिका निभायी। वह घटना थी – ‘इंडियन नॅशनल काँगे्रस’ की स्थापना। उस व़क़्त भारत में कई सुधार हो रहे थे। इस प्रक्रिया में से ही भारतीय विचारकों का एक बहुत बड़ा वर्ग उभरकर सामने आ रहा था। विचारकों की […]

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नेताजी-८५

नेताजी-८५

आसमान को मुठ्ठी में समेटने निकले सुभाषबाबू को एक पल भी आराम नहीं था। उनके पैरों को मानो पहिये ही लगे थे। उन्होंने व्हिएन्ना में ‘ऑस्ट्रियन इंडियन सोसायटी’ की स्थापना की। यह सोसायटी व्याख्यानों तथा चर्चासत्रों का आयोजन करती थी। ख़ास कर भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम के बारे में जनजागृती करने के लिए आयोजित किये गये इन […]

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परमहंस-२६

परमहंस-२६

राधाकृष्णमंदिर की टूटी हुई कृष्ण की मूर्ति का पैर ख़ूबी से जोड़ने की घटना के बाद तो गदाधर राणी राशमणि और मथुरबाबू आँखों का तारा ही बन चुका था और उसके साथ अधिक संपर्क बढ़ाकर, उसे धीरे धीरे संभाषण में खींचते हुए, अधिक से अधिक आध्यात्मिक मामलों में उससे मशवरा पूछा जाने लगा था। रामकुमार […]

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समय की करवट (भाग २७)- ‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’

समय की करवट (भाग २७)- ‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-८४

नेताजी-८४

ते़ज ऱफ़्तार के साथ आगे बढ़ रहे असहकार आन्दोलन को अचानक बिनाशर्त स्थगित कर देने के गाँधीजी के निर्णय की आलोचना करनेवाले सुभाषबाबू-विठ्ठलभाई के घोषणापत्र से भारतीय राजकीय वर्तुल में खलबली मच गयी। गाँधीजीसमर्थकों की राय से तो सुभाषबाबू गाँधीजीविरोधक ही थे, लेकिन विठ्ठलभाई भी उनका साथ देंगे यह किसीने सपने में भी नहीं सोचा […]

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परमहंस-२५

परमहंस-२५

राणी राशमणि द्वारा निर्माण किये गये मंदिरसंकुल के किसी भी मंदिर में गदाधर पुजारी का काम सँभालें इसके लिए रामकुमार द्वारा किये गये प्रयास निष्फल साबित हुए थे। जीवन मे पैसे को केंद्रस्थान में लानेवाली, इसलिए कोई भी नौकरी गदाधर को नापसन्द थी। इस कारण, इस व्यवहारी दुनिया में यह अव्यवहारी इन्सान कैसे निबाह पायेगा, […]

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