समय की करवट (भाग २८) – ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’ ‘युरोपियन युनियन’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।

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यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’

– हेन्री किसिंजर

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सन १९८६-८७ में युरोपिअन इकॉनॉमिक कम्युनिटी द्वारा ‘सिंगल युरोपियन अ‍ॅक्ट’ पारित किया गया और उसके तहत सभी सदस्य राष्ट्र यह एक ही ‘सिंगल मार्केट’ में रूपांतरित करने की दृष्टि से ५ साल की अवधि निश्‍चित की गयी। उसीके साथ, युरोप महाद्वीप इस तरह देशों का एक महासंघ बनने के बाद, हर एक देश के राष्ट्रीय क़ानूनों में बदलाव, उस महासंघ के अधिकार, आपसी सहयोग के नियम इसके बारे में उसमें चर्चा की गयी थी।

इस सारे घटनाक्रम को समांतर ऐसा एक और समझौता युरोपीय देशों में किया गया। हालाँकि ‘युरोपिअन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’ से उसका ठेंठ संबंध नहीं था, मग़र फिर भी अखंडित रूप में ‘बॉर्डरलेस’ युरोप निर्माण होने की दिशा में वह एक महत्त्वपूर्ण कदम था। वह समझौता था – ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’। इस समय तक युरोपिअन इकॉनॉमिक कम्युनिटी के जो दस सदस्य बन चुके थे, उनमें से बेल्जियम, फ़्रान्स, लक्झेम्बर्ग, नेदरलँड्स और पश्चिम जर्मनी (तब तक दोनों जर्मनियों का एकत्रीकरण नहीं हुआ था) इन ५ राष्ट्रों ने अलग से यह समझौता किया था। अब इन ५ देशों में से किसी भी देश के नागरिकों को अन्य चार देशों में प्रवेश करने के लिए पासपोर्ट की ज़रूरत पड़नेवाली नहीं थी! ‘युरोपिअन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’ के सदस्य होने के बावजूद भी इन देशों ने यह समझौता अलग से करने का कारण यह था कि अन्य देशों में इस मामले में एकमत नहीं हो रहा था।

इस समझौते को आगे चलकर युरोपीय महासंघ के अधिकृत करारनामों की सूचि में समाविष्ट किया गया। साथ ही, यह समझौता जिस प्रकार, आधे सदस्यों का इस मुद्दे पर एकमत होने के बाद, उन्होंने युरोपीय महासंघ में से बाहर न निकलते हुए भी; लेकिन अलग से किया; उसी में से प्रेरणा लेकर युरोपीय महासंघ की क़ानूनप्रक्रिया में ‘एन्हॅन्स्ड कोऑपरेशन’ इस मुद्दे का अंतर्भाव किया गया। ‘एन्हॅन्स्ड कोऑपरेशन’ यानी किसी मुद्दे पर मानो सभी सदस्य राष्ट्रों का एकमत नहीं हो रहा है, तो युरोपीय महासंघ की सदस्यसंख्या के कम से कम एक-तिहाई सदस्यदेशों का उस मुद्दे पर एकमत हो जाने पर, उस एक-तिहाई इतने संख्याबल के बलबूते पर वे सदस्यराष्ट्र अलग से आपस में फ़ैसला करके उसपर अमल कर सकते हैं और वह भी युरोपीय महासंघ के दायरे में रहकर ही!

स्वाभाविक है कि इतने सदस्य होनेवाले संगठन के सदस्यराष्ट्रों में किसी भी मुद्दे पर मतभेद रहेंगे ही। यदि मतभेद आवश्यकता से ज़्यादा बढ़ गये, तो कोई भी फ़ैसला नहीं होगा और फिर विकास थम जायेगा। इस ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’ के नक़्शेकदम पर चलकर इस समस्या को सुलझाया गया। सभी सदस्यराष्ट्रों के पैर हर मुद्दे पर एक दूसरे से बाँधे गये, तो कहीं वह ‘तीन पैरों की दौड़’ बन न जायें और अहम बात, युरोपीय महासंघ का अस्तित्व बना रहें, इसलिए यह क्रियाकलाप था। ‘किसी मुद्दे पर अमल किया जाये’ ऐसा यदि कुछ सदस्यों का मत हो; तो उन सदस्यों को अपना संख्याबल कुल सदस्यसंख्या के एक-तिहाई तक बढ़ाकर, फिर युरोपीय महासंघ में रहकर ही, महासंघ की बाक़ायदा अनुमति से ही उस मुद्दे पर अमल करना संभव हो सकनेवाला था। ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’ के समय यह ‘एन्हॅनस्ड कोऑपरेशन’ की सुविधा न होने के कारण उन पाँच देशों को, उनके नागरिकों को इन पाँच देशों में विचरण करते समय पासपोर्ट की ज़रूरत न पड़ना, यह समझौता युरोपीय महासंघ के बाहर करना पड़ा। लेकिन उसके बाद युरोपीय महासंघ का अस्तित्व बनाये रखने के लिए, समय का तकाज़े को पहचानकर युरोपीय महासंघ ने इस मामले में ऐसा बाक़ायदा प्रावधान ही बनाया।

हेन्री किसिंजर
अपने आप को ‘शेन्गेन एरिया’ का हिस्सा कहलानेवाले राष्ट्रों के बीच, एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में प्रवेश करते समय बॉर्डर सिक्युरिटी पोस्ट्स नहीं होते हैं। बल्कि वहाँ केवल उस पर्यटक का उस उस देश में स्वागत करनेवाले युरोपीय महासंघ के ऐसे होर्डिंग्ज़ दिखायी देते हैं। ‘शेन्गन एरिया’ के सदस्य होनेवाले जर्मनी तथा ऑस्ट्रिया इन देशों की सीमारेखा पर इस प्रकार के ‘जर्मनी में आपका स्वागत है’ यह लिखे हुए होर्डिंग्ज़।

तो इस प्रकार यह ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’, युरोप महाद्वीप को एक महादेश में परिवर्तित करने की दिशा में उठाया महत्त्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इस ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’ द्वारा ‘शेन्गन एरिया’ (अर्थात् एकत्रित रूप में ये पाँच देश) निश्चित किया गया, जिनमें इन देशों के नागरिकों को इनमें से किसी भी देश में बिना पासपोर्ट के प्रवेश, समान वीज़ा क़ानून और पुलीस एवं न्यायप्रक्रिया में बढ़ता सहयोग इन मुद्दों को मंज़ूर किया गया था।

दरअसल सन १९१४ के पहले का युरोप ऐसा ही था। उस ज़माने में कोई भी युरोपीय नागरिक किसी भी युरोपीय देश में बिना दिक्कत के प्रवेश कर सकता था, उसके लिए पासपोर्ट की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। आगे चलकर पहले विश्‍वयुद्ध पश्‍चात् के दौर में, अपनी अपनी सुरक्षा की दृष्टि से देशों की सीमारेखाओं पर ये निर्बंध लगाने की ज़रूरत युरोपीय देशों को महसूस होने लगी और पासपोर्टप्रक्रिया का जन्म हुआ।

इस प्रकार ‘युरोपिअन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’ के सदस्यों में आपसी सहयोग बढ़ता गया; आगे चलकर सदस्यों की संख्या भी बढ़ती गयी। ‘शेन्गन अ‍ॅग्रीमेंट’ जैसे क्रांतिकारी कदम उठाये गये और सन १९९२ में ‘मास्ट्रिच ट्रीटी’ (‘ट्रीटी ऑफ़ युरोपियन युनियन’) के द्वारा ‘युरोपीय महासंघ’ का जन्म हुआ। इस ट्रीटी में उससे पहले के यानी सन १९५१ की ‘ट्रीटी ऑफ रोम’ सहित सभी करारनामें एवं सभी संस्थाएँ समाविष्ट करवायी गयी थीं।
लेकिन युरोपीय महासंघ के किसी भी सदस्य देश का नागरिक यह युरोपीय महासंघ का भी नागरिक है, इस भावना को आगे ले जाते हुए, महासंघ के अधिकारों में सन १९९७ में एक समझौते के तहत वृद्धि की गयी, जो कि ‘ट्रीटी ऑफ अ‍ॅम्स्टरडॅम’ के नाम से जानी जाती है।

युरोपीय महासंघ का मंथन अभी भी ख़त्म नहीं हुआ था।

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