समय की करवट (भाग २७)- ‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।

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यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’

– हेन्री किसिंजर

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दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद एकसंध युरोप के निर्माण की दिशा में हुई प्रथम गतिविधि यानी ‘युरोपियन कोल अँड स्टील कम्युनिटी’ और उसके पश्‍चात् की ‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’ ये हालाँकि अपने अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल नहीं हुईं, मग़र फिर?भी उनका मार्गक्रमण सुयोग्य दिशा में ही था। युरोपीय देशों में संभाव्य भविष्यकालीन युद्ध टालने के लिए, युद्धसामग्री में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किये जानेवाले घटक यानी कोयला और फौलाद (स्टील) इनके क्षेत्र में एकसामायिक मार्केट का निर्माण करने का लक्ष्य थोड़ाबहुत सफल हुआ। द्वितीय विश्‍वयुद्धपूर्व समय में गुटबाज़ी कर अपनीं जेबें भरनेवालीं कोयलाक्षेत्र की कंपनियाँ हिटलर के उदय के लिए सहायकारी साबित हुईं थीं। ऐसी कंपनियों पर यह संगठन नकेल कसेगा, ऐसी उम्मीद थी। लेकिन उसके बाद के ‘कोल्ड वॉर’ के कालखंड में इन कंपनियों ने गुटबाज़ी करके ‘प्राईस फिक्सिंग’ के कारनामें शुरू किये। लेकिन इस मामले में ‘युरोपियन कोल अँड स्टील कम्युनिटी’ का ‘हाय ऑथॉरिटी’ यह घटक अधिक जागरूकता से लोकतांत्रिक तत्त्वों के आधार पर, किसी के भी पक्ष में पार्श्यालिटी न करते हुए काम करने लगा। आगे चलकर उत्पाद क्षेत्र में हुए नये बदलावों के कारण हालाँकि स्टील की माँग बढ़ गयी, लेकिन कोयले की माँग कम हुई। उसीके साथ बिजली, तेल आदि वैकल्पिक ईंधनों ने कोयले का महत्त्व कम किया। इस कारण इन निजी कंपनियों की गुटबाज़ी कम हो गयी।

इस संगठन का निर्माण करनेवाले छह देशों ने ही ‘युरोपीय इकॉनॉमिक कम्युनिटी’ की स्थापना की थी। साथ ही, उसमें ‘युरोपियन कोल अँड स्टील कम्युनिटी’ के साथ साथ ‘युरोपियन अ‍ॅटम कम्युनिटी’ भी समाविष्ट हो गयी थी।

‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’ में ब्रिटन को प्रवेश देने के विरोध में होनेवाले फ़्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ‘चार्ल्स डि गॉल’

सन १९६० में ‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’ के विस्तार का पहला प्रयास हुआ। डेन्मार्क, नॉर्वे, आयर्लंड तथा ब्रिटन इन चार देशों ने इन तीन संगठनों में प्रवेश पाने के लिए आवेदनपत्र दाखिल किया। लेकिन फ्रान्स के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष चार्ल्स डि गॉल को इन देशों का, ख़ासकर ब्रिटन का इन संगठनों में प्रवेश मान्य नहीं था। उन्हें ब्रिटन की यह कोशिश यानी अमेरिकापरस्त ‘ट्रोजन हॉर्स’ यानी ब्रिटन को आगे करके इन संगठनों पर कब्ज़ा करने की अमरिका की कोशिश प्रतीत हो रही थी। इसलिए उन्होंने अपने नकाराधिकार (‘व्हेटो’) का इस्तेमाल कर यह कोशिश नाक़ाम कर दी।

सन १९६९ में फ्रान्स में लिये गये जनमतसंग्रह में चार्ल्स डि गॉल पराजित हो जाने के बाद इन चार राष्ट्रों ने फिर से सन १९६७ में प्रवेश के लिए आवेदनपत्र दाखिल किया। गॉल के बाद आये फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष को उसमें कुछ भी आक्षेपार्ह (ऑब्जेक्शनेबल) नहीं लगा और उन्होंने नकाराधिकार पीछे ले लिया। लेकिन ब्रिटन के संदर्भ में उन्होंने कई आक्षेपार्ह मुद्दे उपस्थित किये; जिनमें से मुख्य थे – ‘कॉमन अ‍ॅग्रीकल्चरल पॉलिसी’ और  ब्रिटन का उनके भूतपूर्व साम्राज्य स्थित – कॉमनवेल्थस्थित राष्ट्रों के साथ रहनेवाला रिश्ता।

इनपर चर्चाएँ जारी रहीं और उसके बाद दो-चार वर्षों में डेन्मार्क, आयर्लंड एवं ब्रिटन इन संगठनों में समाविष्ट हुए। नॉर्वे में लिये गए जनमतसंग्रह में, नॉर्वे इन संगठनों में सहभागी न हों, ऐसा कौल आने के कारण उस समय तो नॉर्वे पीछे हट गया।

जिस तरह देशों में चुनाव आयोजित किये जाते हैं, उसी तरह इस संगठन की भी एक आंतर्राष्ट्रीय संसद हों और उस संसद के प्रतिनिधि ठेंठ चुनकर आयें हों, ऐसा प्रावधान ‘ट्रीटी ऑफ रोम’ में किया गया था। लेकिन समान वोटिंगपद्धति किस प्रकार की होनी चाहिए, इसपर एकमत न होने के कारण फिलहाल तो इस संसद के सभी प्रतिनिधि ये नियुक्त प्रतिनिधि ही रहते थे और संसद के लिए केवल आर्थिक प्रावधान करने का काम ही बचा था।
सन १९७५ के बाद संसद द्वारा बहुत ही दबाव डाला जाने पर, सन १९७६ से चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत की गयी। अगले २-३ साल चर्चा करते हुए, आक्षेपार्ह मुद्दों को बाजू में रखते हुए ‘मिनिमम कॉमन पॉईंट्स’ का इस्तेमाल करके सन १९७९ में युरोपीय इकॉनॉमिक कम्युनिटी की संसद का पहला चुनाव आयोजित किया गया।

आधुनिक मानवी इतिहास ता यह पहला आंतर्राष्ट्रीय चुनाव था। इसमें कम्युनिटी के ९ सदस्य राष्ट्रों ने हिस्सा लिया और अपनी अपनी जनसंख्या के अनुपात में उनके प्रतिनिधियों की संख्या तय कर, कुल मिलाकर ४१० संसदसदस्यों को उन्होंने चुनकर भेज दिया। इस संसद के निर्माण होने के बाद उन्होंने, जिस तरह देश का ध्वज होता है, उसी तरह ‘युरोप का ध्वज’ तथा अन्य राष्ट्रचिन्ह तैयार किये।

इस तरह युरोप के इतिहास में एक नये कालखंड की शुरुआत हो चुकी थी। स्वतंत्र, संप्रभुत रहनेवाले विभिन्न देशों ने खुद को एक आंतर्राष्ट्रीय संगठन के माध्यम से ‘स्वेच्छापूर्वक’ बाँध लिया था और एक संघ के रूप में काम करने का तय किया था। किसी लोकतांत्रिक देश में जिस तरह चुनाव आदि व्यवहार होते हैं, वैसे ही व्यवहार अब इन संप्रभुत देशों के संगठन में, यह संगठन यानी मानो कोई महादेश या महासंघ है इस तरह शुरू हुए थे।

अनुशासनबद्ध समूह के तौर पर काम करने के फल दिखायी देने लगे थे। आर्थिक क्षेत्र की मुश्किलें कम होने लगी थीं। करों की पुनरावृत्ति लगभग ना के बराबर होने के कारण वस्तुओं की क़ीमतें कम होने की वजह से तथा बेरोज़गारी भी कम हुई होने की वजह से लोग भी खुश थे।

इस कारण अब इस संगठन का अधिक ही विस्तार करने की माँग ज़ोर पकड़ने लगी। १९७० के दशक में ग्रीस में लोकतंत्र स्थापित होने के बाद ग्रीस ने भी इस संगठन में प्रवेश पाने हेतु आवेदनपत्र दाखिल किया। सन १९८१ में ग्रीस को सदस्यता प्राप्त हुई। ग्रीस के पीछे पीछे स्पेन, पोर्तुगाल इन्होंने भी आवेदनपत्र दाखिल किये और कुछ समय बाद वे भी इस संगठन के सदस्य बन गये।

इस सफलता के बाद अब धीरे धीरे संगठन का स्वरूप बदलने की, सभी सदस्य राष्ट्रों ने अधिक ही नज़दीक आने की माँग शुरू हुई। एक बात अभी भी सदस्यों को चुभ रही थी – कॉमन मार्केट होने की दृष्टि से हालाँकि अच्छे कदम उठाये गये थे, मगर फिर भी ‘एक समूह’ के तौर पर काम करनेवाले इन राष्ट्रों में अभी भी ‘फ़्री ट्रेड’ शुरू नहीं हुआ था। अब उसकी माँग शुरू हुई और इसी माँग में से सन १९८६-८७ में ‘सिंगल युरोपियन अ‍ॅक्ट’ पारित किया गया। यानी सभी सदस्य राष्ट्र यह एक ही मार्केट बनने के लिए ५ साल की मोहलत दी गयी। साथ ही, बिखरी हुई कम्युनिटी को अधिक एकसंध बनाने की दृष्टि से संभाव्य राजनीतिक प्रणालियों पर भी चर्चा शुरू हुई।

इसी ‘सिंगल युरोपियन अ‍ॅक्ट’ में से सन १९९२ में ‘युरोपीय महासंघ’ का जन्म हुआ।

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