क्रान्तिगाथा-३२

क्रान्तिगाथा-३२

प्लेग के संक्रमण को रोकने के लिए पुणे के स्थानीय ब्रिटिश प्रशासन के द्वारा उपायों के नाम पर किये जा रहे अमानुष अत्याचारों ने अब सारी हदें पार कर दी थीं। आम आदमी निरंतर भय के साये में जी रहा था। एक तऱफ बीमारी का डर और दूसरी तऱफ अँग्रेज़ सैनिक कभी भी आकर घर […]

Read More »

नेताजी-९३

नेताजी-९३

पिताजी के अन्तिम दर्शन न करने का सुभाषबाबू को का़फी दुख हो रहा था। उसमें भी, पिताजी के आख़री दिनों में वे सुभाषबाबू के नाम का ही मानो जाप कर रहे थे, यह मेजदा से समझने के बाद तो उनपर ग़म का पहाड़ ही टूट पड़ा। पचास वर्ष के सहजीवन में जिसने हमेशा साथ निभाया, […]

Read More »

परमहंस- ३४

परमहंस- ३४

गत कुछ दिनों से गदाधर जिसकी प्रतीक्षा कर रहा था, वह उस जगतजननी माता का – कालीमाता का दर्शन आख़िरकार उसे हुआ ही था। ज्ञान के उस प्रकाशसागर में आख़िर उसने डुबकी लगायी ही थी! इस घटना के बाद गदाधर ने अपने – ‘गदाधर से रामकृष्ण’ इस आध्यात्मिक प्रवास का महत्त्वपूर्ण पड़ाव पार किया था। […]

Read More »

समय की करवट (भाग ३१) ‘ईयू’ संकल्पना- ‘अगला ठोकर खाये, पिछला देखकर कुछ सीखें’

समय की करवट (भाग ३१) ‘ईयू’ संकल्पना- ‘अगला ठोकर खाये, पिछला देखकर कुछ सीखें’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

Read More »

नेताजी-९२

नेताजी-९२

अत्यवस्थ पिताजी से मिलने हेतु हवाई जहाज़ से निकल चुके सुभाषबाबू पहले रोम में रुके और बाद में कैरो में। मन में बार बार पिताजी की याद आ रही थी और उनसे मिलने की उत्कटा से वे व्याकुल हो रहे थे। बीच बीच में एमिली की भी याद आती थी। फिर वे उसे खत लिखते […]

Read More »

परमहंस-३३

परमहंस-३३

जिस जीवन में माता के दर्शन नहीं होते, ऐसे जीवन को ख़त्म करने के निर्धार से, गदाधर कालीमाता का तेज़ धारवाला खड्ग उठाकर, उसे अपनी गर्दन पर चलाने ही वाला था कि तभी कुछ विलक्षण ही घटित हुआ! आगे चलकर एक बार श्रीरामकृष्ण ने ही इस घटना का निम्नलिखित आशय का वर्णन अपने शिष्यों के […]

Read More »

क्रान्तिगाथा-३१

क्रान्तिगाथा-३१

लोकमान्य टिळक जी की क़लम और विचार से भारतीय जनता जागृत होने लगी है और भारतीयों को अपने अधिकारों का एहसास होने लगा है यह बात अँग्रेज़ सरकार के लिए सिरदर्द साबित होने लगी थी। क्योंकि टिळकजी महज़ जनजागृति करके रूकते नहीं थे, बल्कि अँग्रेज़ सरकार को खत लिखना, उनकी कमिटी से चर्चा करना इन […]

Read More »

नेताजी-९१

नेताजी-९१

१९३४ का नवम्बर। सुभाषबाबू के ग्रन्थलेखनकार्य ने समय के साथ अब गति पकड़ ली थी। मॅटर में कई बार परिवर्तन कर अन्तिम ड्रा़फ़्ट तैयार किये जाने के बाद ही वह कागज़ पास होकर फाईल किया जाता था। एमिली को बार बार टाईप करना पड़ता था, इसका सुभाषबाबू को दुख तो ज़रूर होता था, लेकिन हमेशा […]

Read More »

परमहंस-३२

परमहंस-३२

जिस बात के लिए गदाधर तिलमिला रहा था, वह यानी कालीमाता के दर्शन – उसकी घड़ी अब बहुत ही क़रीब आ रुकी थी। लेकिन माता से मिलने की उसकी प्यास दिनबदिन बढ़ती ही चली जा रही थी। उसी के हिस्से के तौर पर, पूजन करते समय भावावस्था को प्राप्त होने के बाद वह कभी भावनातिरेक […]

Read More »

समय की करवट (भाग ३०)- ‘युरोपियन युनियन’ २१वीं सदी की ओर….

समय की करवट (भाग ३०)- ‘युरोपियन युनियन’ २१वीं सदी की ओर….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

Read More »
1 32 33 34 35 36 55