नेताजी-१५३

नेताजी-१५३

सुभाषबाबू को ले जानेवाली गाड़ी तेज़ी से दौड़ रही थी। अब हिन्दुकुश पर्वतपंक्तियाँ शुरू हो चुकी थीं। बीच में ही आड़े-टेढ़े मोड़ों सा रास्ता, बीच में ही मीलों दूर तक फ़ैले हुए पठारों में से गुज़रनेवाला सरहरा रास्ता ऐसे मार्ग से गाड़ी रशिया की सीमा की ओर दौड़ रही थी। सदियों से अफ़ग़ानिस्तान यह पूर्वीय […]

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परमहंस-९४

परमहंस-९४

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी के पास आनेवाले कुछ शिष्य कई बार भक्ति की भोली-भोली कल्पनाओं को दिल में समेतकर आते थे….मेरी अब शादी हो चुकी है, अब मैं कहाँ अध्यात्म कर पाऊँगा? या फिर….जग कैसा भी क्यों न बर्ताव करें, मैं अच्छा बर्ताव कर रहा हूँ यह काफ़ी है; ऐसे कुछ विचार उनके […]

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समय की करवट (भाग ६१) – चिनी ड्रॅगन के प्रथम ही दिखायी दिये नाखून

समय की करवट (भाग ६१) – चिनी ड्रॅगन के प्रथम ही दिखायी दिये नाखून

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१५२

नेताजी-१५२

उत्तमचन्द के परिवार को भावपूर्ण रूप से अलविदा कहकर सुभाषबाबू गाड़ी में बैठ गये। उस रात कारोनी ने सुभाषबाबू के क़रिबी लोगों के लिए एक छोटीसी दावत रखी थी। भगतराम तथा उत्तमचन्द भी उसमें शरीक रहनेवाले थे। इसलिए वे भी सुभाषबाबू के साथ गाड़ी में बैठ गये। खाने के बाद उत्तमचन्द कलेजे पर पत्थर रखकर […]

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परमहंस-९३

परमहंस-९३

तत्कालीन भारतीय समाजजीवन में, ख़ासकर बंगाल के समाजजीवन में नवविचारों की कई हवाएँ उस समय बहने लगी थीं। ज्ञानमार्ग-ध्यानधारणा इन मार्गों का अनुसरण करनेवाले कई नवसंप्रदायों ने, ईश्‍वर के सगुण साकार रूपों को अमान्य कर और उनके निर्गुण निराकार स्वरूप को ही सच मानकर, उसपर ही ध्यान केंद्रित करने की सीख देना शुरू किया था। […]

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क्रान्तिगाथा-६२

क्रान्तिगाथा-६२

अब भी गांव-देहातों में रहनेवाले भारतीय कई सुविधाओं-सुधारों से दूर थे। खेती ही अधिकांश देहातों का रोजीरोटी का साधन था। खेती की कमाई पर ही गांव के आम भारतीय अपने परिवार सहित गुजारा करते थे। लेकिन, इसके बावजूद भी कुछ प्रांतों में ‘खेतों में क्या उगाना है’ इसका वहाँ के किसानों को अधिकार नहीं था। […]

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नेताजी-१५१

नेताजी-१५१

कारोनी के साथ हुई मीटिंग के बाद वक़्त न गँवाते हुए सुभाषबाबू धीरे धीरे युरोप के वास्तव्य की तैयारियाँ कर ही रहे थे। जर्मन एम्बसी में जाने से पहले, शरदबाबू को देने के लिए अपनी खुद की बंगाली लिखावट में लिखी हुई चिठ्ठी और अपने सहकर्मी शार्दूल कवीश्‍वर इन्हें देने के लिए ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ के […]

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परमहंस-९२

परमहंस-९२

रामकृष्णजी के साथ हुई पहलीं दो-तीन मुलाक़ातों में भी गिरीशचंद्रजी पर उनका कुछ ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा था। वैसे हर मुलाक़ात के साथ गिरीशचंद्रजी का रामकृष्णजी के बारे में होनेवाला मत बदलता जा रहा था, अधिक से अधिक अच्छा ही बनता जा रहा था; लेकिन अभी तक ‘वह’ पल आया नहीं था। लेकिन इन छोटी-छोटी […]

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समय की करवट (भाग ६०) – ‘कोल्ड़ वॉर इन ऑटो मोड़’

समय की करवट (भाग ६०) – ‘कोल्ड़ वॉर इन ऑटो मोड़’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१५०

नेताजी-१५०

कारोनी के साथ सुभाषबाबू की चर्चा का़फ़ी हद तक सफ़ल हुई और सुभाषबाबू खुशी से उत्तमचन्द के घर लौट आये। अब उनके मन पर का बोझ का़फ़ी कम हो चुका था और वे युरोपीय भेस में काबूल में खरीदारी वगैरा के लिए घुम-फ़िरने भी लगे थे। कुछ भी नया सन्देश आनेपर, हर दो-तीन दिन बाद […]

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